बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बैंच ने जीएन साईबाबा को रिहा करने का आदेश दिया है.
 
                                                                                                                दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बैंच ने माआवोदियों से कथित संबंधों के आरोपों से बरी कर दिया है. साथ ही कोर्ट ने उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश भी दिया है. हालांकि जीएन साईबाबा की रिहाई के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, जिस पर आज सुनवाई होनी है. ऐसे में इस मामले में अब तक क्या हुआ, जानते हैं पूरा घटनाक्रम.
- 22 अगस्त, 2013: महाराष्ट्र में गढ़चिरौली जिले के नक्सल प्रभावित इलाकों में निगरानी के बाद आरोपी महेश तिर्की, पी. नरोटे और हेम मिश्रा को गिरफ्तार किया गया. पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की. इसके बाद 2 सितंबर, 2013 को दो और आरोपी - विजय तिर्की और प्रशांत सांगलीकर को पुलिस ने गिरफ्तार किया.
 - 4 सितंबर, 2013: पूछताछ के दौरान आरोपी मिश्रा और सांगलीकर द्वारा किए गए खुलासे के बाद पुलिस ने मजिस्ट्रेट अदालत से जी एन साईबाबा के घर की तलाशी के लिए वारंट का अनुरोध किया.
 - 7 सितंबर 2013: मजिस्ट्रेट अदालत ने तलाशी वारंट जारी किया और दो दिन बाद 9 सितंबर को पुलिस ने दिल्ली में साईबाबा के आवास की तलाशी ली.
 - 15 फरवरी, 2014: गिरफ्तार किए गए पांचों आरोपियों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों के तहत मंजूरी प्राधिकारी द्वारा मुकदमा चलाने की मंजूरी दी गई.
 - 16 फरवरी, 2014: पुलिस द्वारा मजिस्ट्रेट अदालत के समक्ष अंतिम रिपोर्ट/आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया और 26 फरवरी 2014 को मजिस्ट्रेट अदालत ने मामले को सत्र अदालत में भेजा, क्योंकि अपराध सत्र अदालत में विचारणीय थे.
 - 26 फरवरी, 2014: पुलिस ने साईबाबा को गिरफ्तार करने के लिए गिरफ्तारी वारंट हासिल किया, लेकिन ‘‘सहानुभूति के कारण'' गिरफ्तार करने में विफल रही. हालांकि इसके बाद 9 मई 2014 को साईबाबा को गिरफ्तार करके अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.
 - 21 फरवरी 2015: सत्र अदालत ने सभी छह आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए. सभी आरोपियों ने अपना दोष स्वीकार नहीं किया.
 - 6 अप्रैल, 2015: साईबाबा के खिलाफ यूएपीए के तहत मुकदमा चलाने की मंजूरी, मंजूरी प्राधिकारी द्वारा दी गई. वहीं 31 अक्टूबर 2015 को पुलिस ने पूरक आरोपपत्र दाखिल किया. वहीं 14 दिसंबर 2015 को सत्र अदालत ने दोनों मामलों (साईंबाबा और पांच आरोपी) में संयुक्त सुनवाई का आदेश दिया. इसके साथ ही मामले में सुनवाई शुरू हुई.
 - 3 मार्च, 2017: महाराष्ट्र के गढ़चिरौली की सत्र अदालत ने साईबाबा और पांच अन्य को यूएपीए और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया. साईबाबा और चार अन्य को आजीवन कारावास की सजा और एक को दस साल की कैद की सजा सुनाई गई. इसके बाद 29 मार्च, 2017 को साईबाबा और अन्य ने दोषसिद्धि और सजा के खिलाफ बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ में अपील दायर की.
 - 14 अक्टूबर, 2022: बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने साईबाबा और पांच अन्य दोषियों को बरी किया. 
 
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