तुलसी की तीन पत्तियों को रखकर रोज पढ़ें ये मंत्र, जीवन में आएगी पॉजिटीविटी

Tulsi puja mantra : ||तण्डिद्-विनिन्दी-रोचिच-प्रवाह-स्नपितात्म-वरिन्दे बन्धुक-र्यान्धु-कर्तव्य-दिव्य-वसावरिन्दे नमः ते आन्दरविन्दम्||

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Tulsi mantra significance : हिन्दू धर्म में तुलसी को एक पवित्र पौधा माना जाता है जिसकी पत्तियां न केवल कई शारीरिक समस्याओं को ठीक करती हैं बल्कि आपकी सुबह की चाय का स्वाद भी बढ़ाती हैं. इसका संबंध माता तुलसी की दिव्य उपस्थिति से है. यही कारण है कि सनातन धर्म को मानने वाले सुबह की शुरूआत तुलसी के पौधे में जल चढ़ाकर करते हैं. यह प्रथा सदियों से चली आ रही है. इससे घर में सुख शांति और समृद्धि आती है. इसके अलावा आप अगर रोज तुलसी की 3 पत्तियां रखकर कुछ मंत्रों का जाप करते हैं, तो माता तुलसी का प्रत्यक्ष आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद मिल सकती है.

तुलसी गायत्री मंत्र - Tulsi Gayatri Mantra

 'ૐ श्री तुलसी देवायै विद्मः।'
विष्णु प्रियै धीमहि
तन्नो तुलसी प्रचोदयत'

अर्थ- हम दिव्य तुलसी देवी का ध्यान करते हैं, जो भगवान विष्णु को प्रिय हैं। वह हमें प्रेरित और मार्गदर्शन करें.

तुलसी प्रणाम मंत्र - Tulsi Pranam Mantra 

'वरिन्दायै तुलसी देवायै।'
प्रिययन केसवास्य छ
कृष्ण-भक्ति-प्रदे देवी
सत्यवती नमो नमः'।

अर्थ- मैं भगवान केशव (कृष्ण) की प्रिय देवी वृंदा, देवी तुलसी को नमस्कार करता हूं. हे देवी, आप भगवान कृष्ण की भक्ति करती हैं और सत्यवती के नाम से जानी जाती हैं. मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं.

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संजीवनी तुलसी मंत्र - sanjeevani tulsi mantra

'ॐ संजीवनी वृक्ष मोहिनी तुलसी माता नमः'

अर्थ- मैं दिव्य संजीवनी वृक्ष के समान मंत्रमुग्ध करने वाली माता तुलसी को प्रणाम करता हूं.

तुलसी विवाह मंत्र - tulsi vivah mantra

'ॐ श्री तुलसी विष्णु विवाह मंत्र'

तुलसी पूजा मंत्र

'ॐ श्री तुलसी देव्यै नमः'।

मैं देवी तुलसी को प्रणाम करता हूं.

वृंदा देवी-अष्टका - Vrinda Devi-Ashtaka

||तण्डिद्-विनिन्दी-रोचिच-प्रवाह-स्नपितात्म-वरिन्दे
बन्धुक-र्यान्धु-कर्तव्य-दिव्य-वसावरिन्दे नमः ते आन्दरविन्दम्||

अर्थ- हे वृंदा देवी, मैं आपके चरणकमलों को प्रणाम करता हूं जो गंगा जैसी पवित्र नदियों के पवित्र जल में स्नान करके पवित्र हुए हैं.

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||बिम्बधरोदित्वरा-मण्ड-हस्य-नसग्र-मुक्त-द्युति-द्फित्साये
विचित्र-रथनाभरन-श्रियधेवृन्दे नमः ते वारणरविन्दम्||

अर्थ- भगवान कृष्ण के निवास स्थान, वृंदावन की दिव्य भूमि में निवास करने वाली राजा वृषभानु की धन्य पुत्री, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं.

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||त्वद्-अज्ञाय पल्लव-पुष्प-भृङ्ग-मृगादिभिर् माधव-केली-कुञ्जः मध्व-आदिभिर् भन्ति
विभूश्यामनवृन्दे नमः ते कारनारविन्दम्||

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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