हिंदू पौराणिक कथाओं कि मान्यता के अनुसार यह माना गया है कि आयुध पूजा करने से भक्त को भगवान का आशीर्वाद मिलता है. दक्षिण भारत के राज्यों में यह दिन सरस्वती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है. जहां छात्र प्रार्थना करते हैं और विस्तृत ज्ञान के लिए देवी सरस्वती की पूजा अर्चना करते हैं. आयुध पूजा त्योहार के कई नाम हैं, जैसे महारा नवमी, विश्वकर्मा पूजा, महानवमी, अस्त्र पूजा, सरस्वती पूजा और शस्त्र पूजा वगैरह और हर राज्य या यूं कहे जगह और मान्यता के अनुसार ये नाम बदल जाते हैं. पर आस्था एक ही है.
आयुध पूजा खासतौर पर औजारों की पूजा करने के लिए की जाती है और आयुध पूजा के अवसर पर अनुष्ठान और रीति-रिवाजों में सबसे पहले सभी औजारों और उपकरणों को साफ किया जाता है. औजारों और कई औजारों को साफ व पॉलिश भी की जाती है और फिर उन्हें सजाया जाता है. औजारों पर कुमकुम, चंदन से टिका लगाया जाता है और फिर पूजा अर्चना की जाती है. वहीं, व्यापारिक बही-खाते और छात्रों की किताबों की भी इस दिन पूजा की जाती है.
आयुध पूजा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं. देवी दुर्गा द्वारा भैंस रूपी राक्षस महिषासुर को हराने की है. इस राक्षस को हराने के लिए सभी देवताओं ने अपने हथियारों, प्रतिभा और शक्तियां मां दुर्गा को दी थीं. पूरा युद्ध नौ दिनों की अवधि तक चला और नवमी की संध्या पर, देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करके लड़ाई खत्म की. इस तरह यह दिन महानवमी के रूप में मनाया जाने लगा और आयुध पूजा का अनुष्ठानकिया जाने लगा.
ऐसी मान्यता है कि देवी दुर्गा के इस्तेमाल किए गए सभी शस्त्रों और औजारों से उनका उद्देश्य पूरा हुआ था. और अब यह उन उन शस्त्रों का सम्मान करने का समय था और उन्हें संबंधित देवताओं को वापस लौटना था. इस तरह युद्ध समाप्त होने के बाद सभी हथियारों की विधि विधान से पूजा की गई और एक जगह पर रखकर उनकी सफाई और सजावट के बाद वापस लौटाए गए.