Sankashti Chaturthi 2021 : आज है संकष्टी चतुर्थी, जानें किस मुहूर्त में करें गजानन की पूजा

संकष्टी चतुर्थी 2021 : सावन माह में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी का महत्व काफी ज्यादा माना गया है. मान्यता है कि इस चतुर्थी पर पूजा करने से संतान के सभी कष्ट दूर होते हैं.

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संकष्टी चतुर्थी 2021 : मान्यता के अनुसार इस दिन माताएं उपवास रखती हैं और विघ्नहर्ता गणेश की पूजा करती हैं.
नई दिल्‍ली:

संकष्टी चतुर्थी 2021 : हिंदू धर्म में चतुर्थी का महत्व क्या है ये किसी से छिपा नहीं है. इसके साथ गणपति बप्पा की महिमा जुड़ने के बाद चतुर्थी की महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है. वैसे तो हर माह में दो अलग अलग चतुर्थियां आती हैं. सभी का अपना अलग महत्व है. विघ्नहर्ता से जुड़ने के बाद चतुर्थी को संकट हरने वाला दिन भी माना जाता है. इस दिन पूजा पाठ का अपना अलग ही महत्व होता है. ऐसी ही एक चतुर्थी होती है संकष्टी चतुर्थी, जो साल में कई बार आती है. हालांकि संकष्टी चतुर्थी का महत्व काफी ज्यादा माना गया है. मान्यता है कि इस चतुर्थी पर पूजा करने से संतान के सभी कष्ट दूर हो सकते हैं. 

कब है संकष्टी चतुर्थी?

अगस्त माह में 25 अगस्त को संकष्टी चतुर्थी पड़ रही है. जिसे बहुला या फिर हेरम्बा संकष्टी चतुर्थी भी कहा गया है. ये तिथि 25 अगस्त को दोपहर 4 बजकर 18 मिनट से शुरू होगी और अगले दिन यानी 26 अगस्त को दोपहर 5 बजकर 13 मिनट पर खत्म होगी.

संकष्टी चतुर्थी का महत्व

हर माह आने वाली चतुर्थियों का अपना अलग ही महत्व है. धार्मिक मान्यता के अनुसार संकष्टी चतुर्थी को पूजा और उपवास संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए की जाती है. कहा जाता है कि जो भी संकष्टी चतुर्थी पर गजानन की पूजा अर्चना करते हैं. विघ्नहर्ता उनकी सभी कामना पूरी करते हैं. खासतौर से सेहत से जुड़े कष्टों को हरते हैं गजानन.

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संकष्टी चतुर्थी की परंपरा

मान्‍यता है कि संकष्टी चतुर्थी संतान के कष्ट हरने की कामना के साथ मनाई जाती है. मान्यता के अनुसार इस दिन माताएं  उपवास रखती हैं और विघ्नहर्ता गणेश की पूजा करते हुए गणेश मंत्र का जाप भी करती हैं. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने और फिर पूजा पाठ की तैयारी की परंपरा रही है. माताएं सुबह उठकर स्नान ध्यान के बाद साफ सुथरे कपड़े पहनती हैं और फिर पूजा करती हैं. पूजन में गजानन को सफेद या लाल रंग के फूल अर्पित किए जाते हैं साथ ही दूर्वा भी अर्पित की जाती है. सुबह की पूजा के बाद माताएं दिन भर उपवास रखती हैं. इस व्रत में केवल फल या फिर जड़े जैसे आलू, गाजर या शक्कर कंद ही खाने की परंपरा रही है. दिनभर के उपवास के बाद चांद निकलने पर पूजा और होती है. चांद के निकलते ही रोली, चंदन और शहद मिले दूध का अर्घ्य दिया जाता है. चांद को अर्घ्य देना भी बहुत जरूरी माना गया है. अर्घ्य देने के बाद ही संकष्टी चतुर्थी का व्रत पूरा माना जाता है.

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