रविवार के दिन इस कथा को पढ़ना माना जाता है बेहद शुभ, कहते हैं प्रसन्न हो जाते हैं सूर्य देव

Surya Dev Puja: कहते हैं सूर्य देव की आराधना करने से कुंडली के सभी दोष दूर हो जाते हैं. कुंडली में सूर्य मजबूत अवस्था में हो तो समाज में खूब मान-सम्मान मिलता है और सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है. इसलिए सूर्य देव की पूजा में इस व्रत कथा को पढ़ने का भी बहुत महत्व है. 

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Surya Puja Katha: इस कथा को पढ़ना माना जाता है बेहद शुभ.

Ravivaar Vrat Katha: जैसे सोमवार का दिन भोलेनाथ को समर्पित किया जाता है. शनिवार शनि देव का दिन माना जाता है. ठीक उसी तरह रविवार का दिन सूर्य देव (Surya Dev) को समर्पित किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक सूर्य देव को 9 ग्रहों में राजा माना गया है. कहते हैं सूर्य देव की साधना आराधना करने से कुंडली के सभी दोष दूर हो जाते हैं. कुंडली में सूर्य मजबूत अवस्था में हो तो समाज में व्यक्ति को खूब मान-सम्मान मिलता है और सुख-समृद्धि की वृद्धि होती है. इसलिए सूर्य देव की पूजा के साथ-साथ रविवार के दिन इस व्रत कथा को पढ़ने का भी बहुत महत्व है. 

रविवार की व्रत कथा | Ravivar Vrat Katha

 रविवार व्रत की तरह व्रत की कथा भी बहुत ही ज्यादा रोचक है. इस कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में एक वृद्धा रहती थीं. वह रविवार नियम से घर आंगन को गोबर से लीप कर भोजन तैयार किया करती और सूर्य देव को भोग लगाने के बाद ही खुद भोजन करती थी. ऐसा व्रत करने से उनका घर धन-धान्य से पूर्ण था. हरि की कृपा घर में किसी प्रकार का विग्रह या दुख नहीं होने देती थी. घर में सब कुछ आनंद मंगल था.

 इसी तरह कुछ दिन बीत जाने पर वो पड़ोसन जिसके गौ का गोबर वृद्धा लाया करती थी वो विचार करने लगी कि यह वृद्धा हमेशा मेरी गौ का गोबर ले जाती है. यह सोचकर उसने अपनी गाय को घर के अंदर बांधना शुरू कर दिया. गोबर न मिलने पर वृद्धा रविवार के दिन अपने घर को लीप नहीं पाई इसलिए ना उन्होंने भोजन बनाया ना भगवान को भोग लगाया और ना ही खुद भोजन किया. इस प्रकार उन्होंने निराहार व्रत किया. रात हो गई और वह भूखी ही सो गई.

 रात में भगवान ने उन्हें सपना दिया और भोजन ना बनाने और भोग न लगाने का कारण पूछा. वृद्धा ने भगवान को बताया कि गोबर न मिलने के कारण वो भोजन नहीं बना सकीं. तब भगवान ने कहा कि माता हम तुमको ऐसी गौ देते हैं जिससे सभी इच्छाएं पूरी होती हैं, क्योंकि तुम हमेशा रविवार को गोबर से लीप कर भोजन बनाती हो और भोग लगाकर ही खुद भोजन करती हो इससे मैं खुश होकर तुम्हें वरदान देता हूं. सपने में भगवान का यह वरदान पाकर जब वृद्धा की आंख खुली तो देखा कि आंगन में एक अति सुंदर गौ और बछड़ा बंधे हुए हैं. गाय और बछड़े को देखकर वह खुश हो जाती हैं और घर के बाहर बांध देती है और खाने को चारा डाल देती हैं. 

 जब पड़ोसन ने वृद्धा के घर के बाहर अति सुंदर गौ और बछड़े को देखा तो द्वेष भावना से प्रेरित होकर उसका हृदय जल उठा और जब उसने देखा की गाय ने सोने का गोबर दिया है तो वो गाय का सोने का गोबर ले गई और अपनी गाय के गोबर को उसकी जगह रख दिया. रोजाना वह ऐसा करती रही और सीधी-सादी वृद्धा को कानों कान इसकी खबर तक नहीं होने दी. तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन की वजह से वृद्धा ठगी जा रही है तो उन्होंने शाम के समय अपनी माया से बड़े जोर की आंधी ला दी.आंधी के भय से वृद्धा ने अपनी गाय को अंदर बांध दिया सुबह जब गाय ने गोबर दिया तो वृद्ध आश्चर्य चकित रह गए और फिर वो रोजाना अपनी गौ को घर के अंदर ही बांधने लगी. 

 उधर पड़ोसन ने देखा कि गौ घर के अंदर बंधने लगी है तो उसका सोने का गोबर उठाने की चाल कामयाब नहीं हो पा रही है तो कुछ उपाय न देख पड़ोसन ने राजा की सभा में जाकर सारी बात बता दी. उसने राजा से कहा कि मेरे पड़ोस में एक वृद्धा के पास ऐसी गाय है जो आप जैसे राजाओं के ही योग्य है. वह गौ रोजाना सोने का गोबर देती है. आप सोने से प्रजा का पालन करिए. वृद्धा उस सोने का क्या करेगी.

 राजा ने यह बात सुनकर अपने दूतों को वृद्धा के घर जाकर गौ लाने की आज्ञा दी. वृद्धा सुबह ईश्वर को भोग लगाकर भोजन करने ग्रहण करने ही जा रही थी तभी राजा के कर्मचारी गाय खोलकर ले गए. यह देख वो काफी रोई चिल्लाई लेकिन कर्मचारी ने एक ना सुनी. उस दिन फिर वृद्धा गौ के वियोग में भोजन न कर सकी और रात भर रो-रो कर ईश्वर से गाय को पुनः पाने की प्रार्थना करती रही. वहीं दूसरी और राजा गौ को देखकर प्रसन्न हुआ और सुबह जैसे ही वह उठा सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा.

 राजा यह देखकर घबरा गया. भगवान ने रात में राजा को स्वप्न में कहा था है राजा गाय वृद्धा को लौटा देने में ही तुम्हारी भलाई है. रविवार के व्रत (Ravivaar Vrat) से प्रसन्न होकर मैंने उसे यह गाय दी थी. सुबह होते ही राजा ने वृद्धा को बुलाकर बहुत सारे धन के साथ सम्मान सहित गौ और बछड़ा लौटा दिया. इसके साथ ही पड़ोसन को बुलाकर उचित दंड भी दिया. ऐसा करने से राजा के महल की गंदगी दूर हुई और उसे दिन राजा ने नगर वासियों को आदेश दिया कि अपनी समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रविवार का व्रत रखा करें. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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