Sheetala Ashtami 2025 Vrat Katha: शीतला अष्टमी व्रत में पढ़ें यह कथा, इसके बिना अधूरी मानी जाती है पूजा

Sheetala Ashtami 2025 Vrat Katha: शीतला अष्टमी की पूजा करते समय व्रत कथा सुनने का विशेष महत्व है. कथा के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. ऐसे में आप यहां से माता शीतला की व्रत कथा पढ़ सकते हैं.

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Sheetala Ashtami Vrat Katha: यहां पढ़ें शीतला अष्टमी व्रत की कथा.

Sheetala Ashtami 2025: आज यानी शनिवार 22 मार्च को शीतला अष्टमी मनाई जा रही है. हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का विशेष महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता शीतला आरोग्य की देवी हैं. उनकी पूजा-अर्चना करने से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है. ऐसे में भक्त शीतला अष्टमी पर सच्चे मन में से माता शीतला की पूजा-अर्चना करते हैं और उनके नाम का उपवास रखते हैं. वहीं, शीतला अष्टमी की पूजा करते समय व्रत कथा सुनने का भी विशेष महत्व है. माना जाता है कि इस कथा के बिना माता की पूजा अधूरी रहती है. ऐसे में अगर आपने भी शीतला अष्टमी का उपवास रखा है, तो पूजा के दौरान आप यहां से माता शीतला की व्रत कथा पढ़ सकते हैं. 

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शीतला अष्टमी व्रत की कथा (Sheetala Ashtami Vrat Katha)

एक गांव में एक ब्राह्मण परिवार रहता था, जिसमें एक बुजुर्ग दंपत्ति, उनके दो बेटे और दो बहुएं थीं. दोनों बहुओं के अपने-अपने दो बेटे थे. उनका पूरा परिवार प्रेम और एकता के साथ रहता था. एक दिन शीतला अष्टमी का पर्व आया, जिसपर बहुओं की सास ने उन्हें पूरे विधि-विधान से माता शीतला के नाम का उपवास रखने को कहा. सासा ने बहुओं को समझाया कि व्रत के विधान के अनुसार, शीतला अष्टमी पर ताजा खाना नहीं बनाया जाता है. इस दिन एक दिन पुराना यानी बासी भोजन किया जाता है. ऐसे में वे भी केवल बासी भोजन ही खाएं. 

सास की बात सुनकर बहुओं ने सोचा कि उनके बेटे छोटे हैं ऐसे में बासी खाना खाने से उनके बच्चों की तबीयत बिगड़ सकती है. इस सोच के साथ दोनों बहुओं ने सास से छिपकर अपने बच्चों के लिए ताजा खाना पकाया और उन्हें खिला दिया. इसके बाद वे शीतला माता का पूजन करने मंदिर चली गईं. पूजा के बाद जब दोनों बहुएं घर लौटीं, तो उन्होंने देखा कि दोनों बच्चे मृत अवस्था में थे. यह दृश्य देख दोनों बहुएं शोक-संतप्त हो गईं और जोर-जोर से रोने लगीं.

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इस पर उनकी सास ने क्रोध जताते हुए कहा, 'मेरे समझाने के बाद भी तुमने शीतला माता के व्रत का पालन ठीक से नहीं किया और ताजा खाना अपने बच्चों को खिलाया. इस कारण ही शीतला माता नाराज हो गईं. अब तुम दोनों को यह सजा मिली है कि जब तक तुम अपने बच्चों को जीवित न कर लो, घर वापस मत आना.'

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यह सुनकर दोनों बहुएं अपने बच्चों को लेकर घर से बाहर निकल पड़ीं. वे दोनों गांव-गांव भटक रही थीं, तभी उन्हें एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे दो बहनें मिलीं. दोनों बहनें बहुत गंदगी और जूं से परेशान थीं. उनका दुख दोनों बहुओं से देखा नहीं गया और उन्होंने अपने दुख को भूलकर उन दोनों बहनों की मदद करने का निर्णय लिया.

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बहुएं उन बहनों के सिर से जूएं निकालने लगीं. थोड़ी देर बाद उन्होंने बहनों के सिर से सारी जूं साफ कर दीं. इसपर बहनों ने बहुओं को धन्यवाद देते हुए कहा, 'तुम्हारी मदद से हम बहुत प्रसन्न हैं. हम तुम्हें आशीर्वाद देते हैं कि तुम दोनों जल्द ही पुत्रवती होगीं.'

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यह सुनकर दोनों बहुएं अपना दुख याद कर रोने लगीं. तभी अचानक शीतला माता स्वयं प्रकट हुईं. उन्होंने अपनी दिव्य आवाज में कहा, 'तुम दोनों ने इन बहनों की मदद की है और इन्होंने तुम्हें सच्चे मन से आर्शीवाद दिया है. ऐसे में मैं अपना क्रोध भुलाकर तुम्हारे बच्चों को पुनः जीवित कर रही हूं.'

शीतला माता के साक्षात दर्शन और उनके आशीर्वाद से दोनों बहुएं अत्यंत खुश हो गईं. वे धन्यवाद देती हुईं, अपने जीवित बच्चों के साथ घर वापस लौटीं. घर पहुंचने पर, उन्होंने शीतला माता की पूजा और व्रत विधिपूर्वक शुरू किया और यह संकल्प लिया कि वे आगे से कभी भी व्रत के विधान में कोई चूक नहीं करेंगी.

इस प्रकार, शीतला माता की कृपा से दोनों बहुओं के जीवन में खुशहाली और समृद्धि आ गई. उन्होंने अपनी गलती से सीखा और हमेशा शीतला माता की पूजा और व्रत करते हुए अपना जीवन बिताया. इस घटना के बाद, गांव में भी शीतला अष्टमी का महत्व और श्रद्धा बढ़ गई और लोग इस दिन माता शीतला के भोग और व्रत को पूरी श्रद्धा से करने लगे.

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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