जन्मदिन विशेष : हर किरदार में सद्गुरु दमदार, खाना पकाने के शौकीन, सांप पकड़ने में भी माहिर

"एक समय था, जब मैं तकरीबन हर रोज कुछ न कुछ पकाता ही था. खासकर अपनी बेटी के लिए. जब भी वह मेरे साथ होती तो मैं उसके खाने के लिए कुछ तैयार करता.''

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आदियोगी कौन हैं? आत्मा का क्या रहस्य है? परमात्मा कहां हैं? हिंदू धर्म की मान्यताओं का व्यक्ति पर क्या असर होता है? ऐसे कई सवाल आपके मन में भी आते होंगे. इन सवालों का जवाब देते दिखते हैं सद्गुरु. उनके सानिध्य में आयोजित होने वाला 'महाशिवरात्रि उत्सव' दुनियाभर में लोकप्रिय है. हर साल महाशिवरात्रि पर होने वाले इस विशेष कार्यक्रम की साक्षी एक बड़ी आबादी होती है. जग्गी वासुदेव 'सद्गुरु' का जन्म 3 सितंबर 1957 को मैसूर में हुआ था.

उनके पिता बीवी. वासुदेव मैसूर रेलवे अस्पताल में डॉक्टर थे. मां सुशीला वासुदेव गृहिणी थीं. सद्गुरु परिवार में सबसे छोटे हैं. सद्गुरु 13 साल की उम्र से हर दिन मल्लाडिहल्ली राघवेंद्र के साथ योग सीखते थे. उस समय उनकी आध्यात्मिकता में कम रुचि थी. हालांकि, बाद में उनकी रुचि बढ़ती गई. सद्‌गुरु लोगों के लिए अलग-अलग तरह से मायने रखते हैं. कोई उन्हें गुरु कहता है, कोई योगी, कोई दिव्यदर्शी, कोई मित्र, बहुत से लोग उन्हें कवि, सलाहकार और आर्किटेक्ट के रूप में भी जानते हैं. कई लोगों के लिए सद्गुरू पिता हैं और पति भी.

आध्यात्मिक गुरु और ईशा फाउंडेशन के संस्थापक सद्गुरु के व्यक्तित्व के कई आयाम हैं. आपको यकीन नहीं होगा कि उन्हें खाना बनाना भी बेहद पसंद है. सद्‌गुरु के खाना पकाने का शौक किसी से छिपा नहीं है. सद्‌गुरु की जीवनी 'मोर दैन ए लाइफ' में अरुंधति सुब्रमण्यम ने इस बारे में लिखा है. वह लिखती हैं, "जीवन के प्रति उनका प्रेम अन्य पहलुओं से भी झलकता है. उन्हें जब भी समय मिलता है, वे कुछ पकाना पसंद करते हैं और इस ग्रह का सबसे शानदार डोसा बनाने का दावा करते हैं. उनकी बेटी इसकी गवाह रही हैं. वे इस दुनिया के बेस्ट कुक हैं."

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खास बात यह है कि अपने अनूठे तरीकों के लिए प्रसिद्ध ब्रिटिश शेफ गोर्डोन रामसे जब ईशा योग केंद्र में आए थे, तो सद्‌गुरु की पाककला और आश्रम के भोजन की बहुत तारीफ की थी. इस बातचीत को 'ईशा डॉट सद्गुरु डॉट आर्ग' वेबसाइट पर पढ़ा और देखा भी जा सकता है. सद्‌गुरु कहते हैं कि आजकल वे अपनी व्यस्तता की वजह से डोसा नहीं बना पाते हैं.

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सद्‌गुरु कहते हैं, "एक समय था, जब मैं तकरीबन हर रोज कुछ न कुछ पकाता ही था. खासकर अपनी बेटी के लिए. जब भी वह मेरे साथ होती तो मैं उसके खाने के लिए कुछ तैयार करता. इन दिनों सुबह के समय पर मेरा वश नहीं रहा और बहुत सारे दूसरे काम भी करने होते हैं. मैं अब भी कभी-कभी शाम को कुछ पकाता हूं, पर वह भी बहुत कम ही संभव हो पाता है."

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सद्गुरु की शिक्षा की बात करें तो उन्होंने महाजन प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज और मैसूर के डिमॉन्स्ट्रेशन स्कूल में पढ़ाई की. उन्हें मैसूर विश्वविद्यालय से अंग्रेजी स्नातक की डिग्री प्रदान की गई. समाज कल्याण के लिए सद्गुरु को साल 2017 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया. उन्हें 'इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार' भी मिला है. सद्गुरु के बचपन से जुड़ी रोचक कहानियां भी काफी लोकप्रिय हैं. जिनके बारे में पढ़ने और सुनने को मिलता रहता है.

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कहा जाता है कि बालक जग्‍गी वासुदेव को प्रकृति से खूब लगाव था. अक्‍सर ऐसा होता था कि वह कुछ दिनों के लिए जंगल में गायब हो जाते थे, जहां वे पेड़ की ऊंची डाल पर बैठकर हवाओं का आनंद लेते थे. इस दौरान वह गहरे ध्यान में भी चले जाते थे. यहां तक कहा जाता है कि जब वह घर लौटते थे तो उनकी झोली सांपों से भरी होती थी, जिन्हें पकड़ने में उन्हें महारत हासिल है.

सद्गुरु कई किताबों के लेखक भी हैं. इनमें 'इनर इंजीनियरिंग : ए योगीज़ गाइड टू जॉय', 'डेथ : एन इनसाइड स्टोरी' और 'कर्मा : ए योगीज़ गाइड टू क्राफ्टिंग योर डेस्टिनी' बेस्ट सेलर हैं. सद्गुरु एक प्रसिद्ध वक्ता भी हैं. उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भाषण देने के लिए आमंत्रित किया जा चुका है. सद्गुरु को बाइक चलाना भी बेहद पसंद है. इसकी फोटो-वीडियो भी सामने आती रहती है.

सद्गुरु का कुछ लोग विरोध करते हैं. उनकी आलोचना होती है. लेकिन, सद्गुरु अपने पथ पर अडिग चले जा रहे हैं. सद्गुरु कहते भी हैं, "जो आस्तिक हैं, वो सकारात्मक रूप से विश्वास करते हैं. जो नास्तिक हैं, वो नकारात्मक रूप से विश्वास करते हैं. दोनों ही यह बात स्वीकार करना नहीं चाहते कि वे नहीं जानते हैं."

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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