रोहिणी व्रत होता है बेहद खास, यहां जानिए इसकी कथा, महत्व और उपवास की तारीख

Rohini vrat katha : रोहिणी 27 नक्षत्रों में से एक है, जो हर महीने आता है. आज इस लेख में इस व्रत के पीछे की कथा क्या है उसके बारे में बताएंगे ताकि आपको इसके महत्व के बारे में पता चल सके.

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Rohini poja vidhi : अतः इस व्रत को करने समय फलाहार सूर्यास्त से पूर्व कर लेना चाहिए.

Rohini vrat 2023 : इस बार रोहिणी व्रत 17 जून दिन शनिवार को रखा जाएगा. यह उपवास हिन्दू और जैन धर्म में बहुत महत्व रखता है. यह दिन दोनों धर्मों के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है. आपको बता दें कि आषाढ़ मास में पड़ने वाले रोहिणी व्रत का उपवास खास तौर से महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए करती हैं. आपको बता दें कि रोहिणी 27 नक्षत्रों में से एक है, जो हर महीने आता है. आज इस लेख में इस व्रत के पीछे की कथा क्या है उसके बारे में बताएंगे ताकि आपको इसके महत्व के बारे में पता चल सके.

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रोहिणी व्रत पूजा विधि

  • इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ सफाई करें.
  • इसके बाद गंगाजल युक्त पानी से स्नान-ध्यान से निवृत होकर व्रत संकल्प लें.
  • इसके बाद आमचन कर अपने आप को शुद्ध करें.
  • अब सबसे पहले सूर्य भगवान को जल का अर्घ्य दें.
  • कनकधारा स्तोत्र का पाठ भी किया जाता है.
  • गरीबों और जरूरतमंदों को दान दिया जाता है
  • जैन धर्म में रात्रि के समय भोजन करने की मनाही है.
  • मृगशिरा नक्षत्र के आकाश में उदय होने पर व्रत समाप्त हो जाता है.
  • अतः इस व्रत को करने समय फलाहार सूर्यास्त से पूर्व कर लेना चाहिए.
  • रोहिणी व्रत का समापन उद्यापन से करना चाहिए.

रोहिणी व्रत की कथा

इसकी कहानी है एक बदबूदार रानी की. असल में प्राचीन काल में एक राजा थे जिनका नाम था माधव अपनी पत्नी लक्ष्मीपति के साथ राज करता था. उनकी एक पुत्री थी रोहिणी जिसके विवाह की बड़ी चिंता थी. एक दिन उसने एक ज्योतिषी को बुलाकर बेटी रोहिणी के विवाह के बारे में पूछा, तब ज्योतिषी ने कहा इसका विवाह हस्तीनापुर के राजा अशोक से होना है. उनकी बात मानकर राजा ने अशोक से बेटी की शादी करा दी.  इसके पश्चात दोनों हस्तीनापुर में राज करने लगे. एक दिन उनके वन में चारण मुनि आते हैं. राजा रानी उनके पास जाते हैं. तब राजा ने ऋषि से पूछा मुनि मेरी रानी इतनी शांत चुप चाप क्यों रहती हैं. इसपर ऋषि मुनि ने रानी के पिछले जन्म की कथा सुनाई. हस्तीनापुर में ही एक वस्तुपाल नाम का एक राजा राज करता था. उसके प्रिय मित्र धनमित्र को दुर्गंधा नाम की एक कन्या हुई जिसके शरीर से इतनी गंदी बदबू आती थी कि उससे कोई विवाह करने को तैयार नहीं था. ऐसे में धनमित्र में पैसों का लालच देकर वस्तुपाल के बेटे से विवाह करा दिया. लेकिन वास्तुपाल का बेटा उसकी दुर्गंध बर्दाश नहीं कर सका और एक महीने में उसे छोड़कर चला गया. इसके बाद दुर्गंधा और उसके पिता को दूसरा रास्ता नहीं सूझ रहा था, तबी वहां पर अमृतसेन मुनि राज आए. तब उन्होंने अपनी सारी कहानी मुनि को बताई जिसके बाद ऋषि ने बताया, वह पिछले जन्म में गिरनार के राजा की रानी थीं. एक बार जब दोनों वन में विचरण कर रहे थे तो उनके सामने मुनिराज आए. तब मुनि ने रानी से उनके लिए भोजन बनाने के लिए कहा. लेकिन रानी ने गुस्से में खाना बहुत कड़वा बनाया. जिसे खाकर मुनि की मृत्यु हो गई. इस पाप के चलते रानी को राज्य से निकाल दिया गया. फिर रानी को कोढ़ हो गया और कष्ट सहने के बाद उसकी भी मृत्यु हो गई. इसके बाद वह पशु योनि में फिर दुर्गंधा के रूप में जन्म लिया. इस पर धनमित्र ने मुनि से पूछा, इस पाप से कैसे छुटकारा पाया जाए? तो मुनि ने उन्हें रोहिणी व्रत का महत्व बताया. इसके बाद दुर्गंधां ने इस व्रत को विधि विधान के साथ किया जिससे उनके सारे पाप दूर हो गए और वह स्वर्गसिधार गईं. इसके बाद वह रोहिणी के रूप में जन्म लेती हैं. 

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है. यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है. अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें. एनडीटीवी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है.

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