King Ravana's Golden Lanka: हिंदू धर्म में मर्यादा पुरुषोत्तम के गुणों का बखान करने वाली रामायण जिस पात्र के बगैर अधूरी है, उसका नाम दशानन या फिर लंकापति रावण है. रामकथा के जिस खलनायक को दशहरे के दिन पूरे देश भर में जलाया जाता है, उसे यूपी के बिसरख गांव में लोग मूर्ति बनाकर प्रतिदिन पूजते हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि शिव के परम भक्त रावण का जन्म इसी स्थान पर हुआ था. लोक मान्यता है कि विश्रवा ऋषि के नाम पर ही इस स्थान का नाम बिसरख पड़ा. लोक कथाओं के अनुसार रावण ऋषि विश्रवा और कैकसी की संतान था. उसके दादा पुलस्त्य थे, जिन्हें ब्रह्मा जी का मानस पुत्र माना जाता है.
रावण को लेकर लोगों के मन में अक्सर एक सवाल आता है कि वह ग्रेटर नोएडा से सैकड़ों-हजारों मील दूर लंका कैसे पहुंच गया? आखिर उसे हिमालय का पहाड़ या मैदानी इलाकों को छोड़कर दक्षिण में जाकर लंका से राज-काज क्यों सूझी? आइए सोने की लंका और उसके राजा रावण से जुड़े इस सच को धर्म शास्त्र के मर्मज्ञ और इतिहासकार के माध्यम से जानने-समझने की कोशिश करते हैं.
सुरक्षा की दृष्टि से अभेद्य थी लंका
अयोध्या स्थित सिद्धपीठ हनुमत निवास के पीठाधीश्वर आचार्य डा० मिथिलेश नंदिनी शरण जी महाराज के अनुसार रावण ग्रेटर नोएडा के पास बिसरख में पैदा हुआ था इसका कोई पुरातात्विक या फिर भौगोलिक प्रमाण नहीं है, यह सिर्फ लोकमान्यता है. शास्त्रों में भी इस बात को लेकर कोई स्थापित धारणा भी नहीं नजर आती है. उनके अनुसार लंका कुबेर की पुरी थी लेकिन उसे रावण ने उससे छीनकर उसे अपनी राजधानी बनाया था.
चूंकि वह चारों ओर समुद्र से घिरी होने के कारण अभेद्य थी, उस तक आसानी से नहीं पहुंचा जा सकता था, इसलिए उसने इसी स्थान को अपना राज-काज चलाने के लिए चुना. जिस प्रकार वर्तमान में कोई व्यक्ति राजनीति में बहुत ज्यादा आगे बढ़ जाने पर दिल्ली पहुंच जाता है, उसी प्रकार उस काल में रावण ने भी लंका को सुरक्षित मानते हुए वहां पर रहने का निर्णय लिया होगा.
ऐसे मिली रावण को सोने की लंका
हिंदू मान्यता के अनुसार जिस सोने की लंका का राजा रावण बना था, वह न तो उसकी थी और न ही उसके लिए बनवाई गई थी. मान्यता है कि भगवान शिव ने कुबेर को देवताओं का कोषाध्यक्ष बनाते हुए उसके रहने के लिए सोने की लंका बनवाई थी. कुबेर रावण का सौतेला भाई था, जिसका जन्म विश्रवा ऋषि की पहली पत्नी देवांगना इडविडा से हुआ था. जब यह बात रावण को पता चली तो उसने कुबेर के पद पर अपना दावा ठोक दिया. तब उसे वह पद न देकर सोने की लंका दे दी गई थी. मान्यता है कि देवपद न पाने से नाराज रावण ने कुबेर का पुष्पक विमान भी छीन लिया था.
पुलस्त्य ऋषि के समय हुआ आर्य संस्कृति का विस्तार
बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के इतिहासकार डा. सुशील पांडेय रावण द्वारा उत्तर भारत को छोड़कर दक्षिण में लंका को अपना केंद्र बनाने के पीछे उस समय की आर्य संस्कृति और सभ्यता से जोड़कर देखते हैं. उनका तर्क है कि हमें रावण के लंका चुनाव करने के पीछे का सच समझने के लिए आर्य सभ्यता और संस्कृति के विस्तार को देखना और समझना होगा, जो उस काल में धीमे-धीमे वहां तक फैल गई.
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वैदिक काल के ग्रंथों के अनुसार अगस्त्य ऋषि के समय गोरखपुर में गंडक नदी से आगे का क्षेत्र अनार्य क्षेत्र माना गया. माना जाता है कि ऋषि अगस्त्य के उत्तर से दक्षिण की ओर जाने पर तीन संगम आयोजित हुई. वहां तमिल भाषा में साहित्य लिखा गया. उस साहित्य में वैदिक परंपरा और संस्कृति की बातें हुईं. जिसके कारण लोग तेजी से वैदिक संस्कृति की ओर परिवर्तित हुए. डा. सुशील पांडेय के अनुसार यह ऐतिहासिक साक्ष्य आज भी मौजूद है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)