Rama Ekadashi Katha: आज रमा एकादशी की पूजा में करें इस कथा का पाठ, भगवान विष्णु देंगे मोक्ष का वरदान

Rama Ekadashi Vrat: एकादशी की विशेष धार्मिक मान्यता होती है. हर साल कार्तिक माह में रमा एकादशी की पूजा की जाती है.

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Rama Ekadashi Puja: रमा एकादशी पर पूरे मनोभाव से किया जाता है भगवान विष्णु का पूजन. 

Rama Ekadashi 2024: पंचांग के अनुसार, प्रतिवर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि पर रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस साल 28 अक्टूबर, सोमवार के दिन रमा एकादशी का व्रत रखा जा रहा है. व्रत का पारण अगले दिन यानी 29 अक्टूबर की सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर किया जाएगा. इस एकादशी की विशेष धार्मिक मान्यता होती है और माना जाता है कि रमा एकादशी का व्रत (Rama Ekadashi Vrat) रखने और पूजा संपन्न करने पर जातक को पापों से मुक्ति मिल जाती है. मोक्ष प्राप्ति के लिए भी रमा एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस दिन पूजा के दौरान व्रत की कथा पढ़ना भी बेहद शुभ होता है. माना जाता है कि रमा एकादशी की कथा का पाठ करने से भगवान विष्णु (Lord Vishnu) प्रसन्न होते हैं और अपनी कृपा भक्तों पर बनाए रखते हैं. यहां पढ़िए रमा एकादशी की कथा. 

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रमा एकादशी की कथा | Rama Ekadashi Katha 

रमा एकादशी की यह कथा श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी. कथा के अनुसार, एक नगर था जिसके अधिपति राजा मुचुकुंद थे और नगर का शासन राजा ही चलाते थे. राजा पूजा-पाठ में लीन रहते थे और दान आदि करते रहते थे. राजा की चंद्रभागा नाम की बेटी थी. राजा ने अपनी बेटी का विवाह चंद्रसेन के बेटे शोभन से कर दिया था. विवाह के बाद शोभन एक दिन ससुराल आया. इन दिनों में रमा एकादशी का व्रत आने वाला था. एकादशी पर पूरा राज्य व्रत रखता था और इस दिन खाना नहीं बनता था. 

अपने पति को दुर्बल और कमजोर देखकर चंद्रभागा को चिंता होने लगी. राजा ने घोषणा की हुई थी कि एकादशी पर कहीं भोजन नहीं बनेगा. शोभन ने कहा कि आखिर वह बिना भोजन कैसे रहेगा. शोभन ने आखिर में व्रत रखना ही सही समझा और एकादशी पर व्रत (Ekadashi Vrat) रख लिया. परंतु शोभन व्रत में भूख सहन नहीं कर सका और अगले दिन सुबह होने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई.

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मृत्यु पश्चात शोभन को मंदराचल पर्वत पर देवपुर नामक नगर प्राप्त हुआ जहां वह रहने लगा. यह नगर अस्थिर था क्योंकि शोभन ने एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक नहीं किया था. एक बार राजा मुचुकुंद के नगर का एक ब्राह्मण शोभन से मिला, उसकी व्यथा सुनी और उसकी पत्नी चंद्रभागा को वहां ले आया. चंद्रभागा वामदेव ऋषि से मिली जिसके बाद उसे दिव्य गति प्राप्त हुई और वह अपने पति शोभन से मिल सकी. शोभन को चंद्रभागा का पुण्य प्राप्त हुए और उसका नगर स्थिर हो गया. इस तरह शोभन को मोक्ष की प्राप्ति हुई और शोभन पत्नी चंद्रभागा के साथ सुखपूर्वक रहने लगा. 

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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