Paush Purnima 2023: कल्पवास में ध्यान और स्नान किया जाता है. यह ऐसा ध्यान है जिसमें कल्पवासी को कई तरह के नियमों का पालन करना अनिवार्य होता है. आज 6 जनवरी, पौष पूर्णिमा के दिन से कल्पवास (Kalpavas) का प्रारंभ भी होने जा रहा है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार तीर्थ स्थल पर होने वाली तीन नदियों, गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम को बेहद शुभ माना जाता है. जानिए कल्पवास करने पर कल्पवासी को किस तरह शुभ फल की प्राप्ति होती है.
कल्पवास तकरीबन एक महीने तक चलता है. संगम तट (Sangam Tat) पर होने वाले कल्पवास की शुरूआत आज पौष पूर्णिमा से हुई और अंत अगले माह में होगा. 43 दिनों के लिए संगम को धार्मिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. कल्पवास से जुड़ी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भक्तों या कहें तीर्थों को भगवान से मिलने के लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है तभी उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी. ऐसा इसलिए क्योंकि प्राचीनकाल में इसी स्थल पर ऋषि-मुनि तप, जाप और यज्ञ किया करते थे जिस कारण इसे तपोभूमि भी कहते हैं. इसलिए यहां कल्पवास करने का विशेष महत्व हैं.
प्रयागराज में होने वाले इस माघ मेले (Magh Mela) में कल्पवास करने वाले तीर्थों को अपनी खुद की कुटिया बनाकर रहना होता है. कल्पवास में तीर्थ जमीन पर सोते हैं, निराहर भी रह सकते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं, पूजा में संलग्न होते हैं और दिन में तीन बार गंगा स्नान करते हैं. वे दिन में एक बार ही भोजन करते हैं, शांति, धैर्य, अंहिसा और भक्ति के भाव से पूर्ण होते हैं और सदाचार का पालन करते हैं. माना जाता है कि कल्पवास करने वाले व्यक्ति को अक्षय पूण्य की प्राप्ति होती है और उसके सभी दुख हर जाते हैं.
कई धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति कल्पवास का प्रण अथवा प्रतिज्ञा लेता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में पैदा होता है. वहीं, इस जन्म में उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)