चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा, जानें सही विधि, भोग, मंत्र, शुभ रंग और कथा

Navratri Day 7: चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं मां कालरात्रि की पूजा विधि, भोग, मंत्र, शुभ रंग और कथा.

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Chaitra Navratri: चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन होती है मां कालरात्रि की पूजा, जानें सही विधि.

Chaitra Navratri 2025 Day 7: चैत्र नवरात्रि का पावन पर्व चल रहा है. नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा के स्वरूप, मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. मां को अंधकार और दुष्ट शक्तियों का नाश करने वाली देवी माना जाता है. इनका रूप भयावह होता है, लेकिन भक्तों के लिए मां मंगलकारी हैं. मां को शुभंकारी, काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, चंडी भी कहा जाता है. मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा अर्चना करने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है, अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं भी दूर हो जाती हैं. ऐसे में आइए जानते हैं मां नवरात्रि की पूजा विधि, भोग, मंत्र, शुभ रंग और कथा.

​मां कालरात्रि की पूजा विधि (Maa Kalaratri Puja Vidhi)

  • सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और मां कालरात्रि की पूजा का संकल्प लें.
  • मंदिर को गंगाजल से शुद्ध कर पूजा स्थान पर कालरात्रि माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें.
  • मां को रोली, कुमकुम, अक्षत, फूल, धूप, दीप आदि अर्पित करें.​
  • इसके बाद मां कालरात्रि को भोग लगाएं.
  • मां कालरात्रि के मंत्रों का जाप करें.​
  • अंत में मां की आरती उतारें और परिवार में मां का प्रसाद बाटें.

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मां कालरात्रि का मंत्र  (Maa Kalaratri Mantra)

एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥

बीज मंत्र

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नमः॥

स्तोत्र मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता। 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

मां कालरात्रि का भोग (Maa Kalaratri ka bhog)

नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा के बाद उन्हें गुड़ और चने का भोग लगाया जाता है.

मां कालरात्रि शुभ रंग (Maa Kalaratri ka Shubh Rang)

नवरात्रि के सातवें दिन का शुभ रंग नीला है.

मां कालरात्रि की कथा (Maa Kalaratri ki Katha)

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब दैत्य शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था, तब मां दुर्गा ने अपने सातवें स्वरूप में कालरात्रि का अवतार लिया. रक्तबीज को वरदान था कि उसके रक्त की एक-एक बूंद से नया राक्षस उत्पन्न हो जाएगा. ऐसे में मां कालरात्रि ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को मां ने जमीन पर गिरने से पहले ही अपने मुख में भर लिया. मां कालरात्रि की पूजा से भय, नकारात्मकता और बाधाओं से मुक्ति मिलती है. भक्तों को साहस, शक्ति और आत्मविश्वास प्राप्त होता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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