Naag Panchami Katha: इस कहानी को पढ़े बिना अधूरी मानी जाती है नाग पंचमी की पूजा, यहां जानें पौराणिक कथा

नाग पंचमी की विशेष धार्मिक मान्यता होती है. जानिए इस साल कब मनाई जाएगी नाग पंचमी और पढ़िए नाग पंचमी को मनाने से जुड़ी कहानी. 

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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर मनाई जाती है नाग पंचमी.

Naag Panchami 2024: हिंदू धर्म में नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. इसे कुछ इलाकों में भैया पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. पंचांग के अनुसार, हर साल श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर नाग पंचमी मनाई जाती है. नाग पंचमी के दिन मान्यतानुसार नाग देवता (Naag Devta) की पूजा की जाती है. माना जाता है कि इस दिन नाग देवता की पूजा करने और सांपों को दूध पिलाने पर जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है. इस साल नाग पंचमी 9 अगस्त, शुक्रवार के दिन नाग पंचमी मनाई जाएगी. नाग पंचमी के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त 5 बजकर 47 मिनट से 8 बजकर 27 मिनट तक रहेगा. नाग पंचमी की पूजा में नाग पंचमी की कथा पढ़ना बेहद शुभ माना जाता है. कहते हैं नाग पंचमी की पूजा (Naag Panchami Puja) इस कथा को पढ़े बिना अधूरी होती है. 

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नाग पंचमी की कथा | Naag Panchami Katha 

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक सेठजी हुआ करते थे जिनके सात पुत्र थे. इन सातों ही पुत्रों का विवाह हो चुका था और सबसे छोटे पुत्र की पत्नी सभी में सबसे सुशील और श्रेष्ठ चरित्र की थी. सबसे छोटे पुत्र की पत्नी का कोई भाई नहीं था. एक बार हुआ यह कि सबसे बड़ी बहु घर लीपने के लिए पीली मिट्टी लाने के लिए सभी बहुओं के साथ डलिया और खुरपी लेकर मिट्टी लेने निकल पड़ीं. 

जब मिट्टी को खोदने के लिए मिट्टी में खुरपी गाड़ी गई तो एक सर्प (Snake) निकल आया जिसे मारने के लिए बड़ी बहु खुरपी चलाने लगी. सबसे छोटी बहू ने उन्हें रोका और समझाया कि यह सर्प निरपराध है और इसे मारना पाप होगा. यह सुनकर बड़ी बहू ने उस सर्प को वहां से सही सलामत जाने दिया. इसके बाद सर्प एक और जाकर बैठा रहा. छोटी बहू ने इस सर्प को देखकर कहा कि हम अभी लौटकर आएंगे इसलिए तुम यहां से मत जाना. छोटी बहू बाकी बहुओं के साथ घर चली गई लेकिन घर जाने के बाद वह घर के कामों में उलझ गई और सांप से किया हुआ वादा भूल गई. अपना वादा छोटी बहू को अगले दिन याद आया. 

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छोटी बहू को याद आया कि उसने सर्प से कुछ वादा किया था और उसे वहां रुकने के लिए कहा था. वह जंगल की तरफ भागकर गई. छोटी बहू ने देखा कि सांप अभी भी उसी स्थान पर बैठा है जहां छोटी बहू ने उसे रुकने के लिए कहा था. उसने सर्प से कहा कि सर्प भईया प्रणाम. यह सुनकर सर्प ने कहा कि मैं तुझे झूठ कहने पर डस लेता लेकिन तूने मुझे भाई कहा है इसलिए छोड़ रहा हूं. इसपर छोटी बहू ने क्षमा याचना की. सर्प ने यह सुनकर क्षमा तो दी ही, साथ ही यह कहा कि आज से तू मेरी बहन और मैं तेरा भाई. 

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छोटी बहू ने सर्प को बताया कि उसका कोई भाई नहीं है और आज उसे एक भाई मिल गया, उसके जीवन में एक ही कमी थी जो पूरी हो गई. इसके बाद एक दिन सर्प लड़के का रूप धारण करके छोटी बहू के ससुराल पहुंचा और अपना परिचय छोटी बहू के भाई के रूप में दिया. सर्प ने बतलाया कि मैं बचपन में ही घर से दूर चला गया था और अब अपनी बहन को कुछ दिन के लिए लेने आया हूं. यह सुनकर छोटी बहु को घरवालों ने उसके साथ जाने दिया. छोटी बहू को अब भी इस लड़के के बारे में कुछ नहीं पता था. रास्ते में सर्प ने बताया कि मैं वही सांप हूं जो उसदिन मिला था. यह सुनकर छोटी बहू खुश हुई और सांप के साथ चली गई. 

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सर्प के घर में छोटी बहू को ढेर सारा धन दिखा. छोटी बहू कुछ दिन वहीं रहने लगी. एक दिन सर्प की माता ने छोटी बहू से कहा कि मैं बाहर जा रही हूं और तू अपने भाई को ठंडा दूध पिला देना. छोटी बहू को ठंडे दूध वाली बात याद नहीं रही और उसने सांप को गलती से गर्म दूध पिला दिया. इससे सांप का मुंह जल गया और उसकी माता अत्यधिक क्रोधित हो गई. आखिरकार सांप के कहने पर मां का गुस्सा तो दूर हुआ लेकिन उसने छोटी बहू को उसके घर लौट जाने के लिए कह दिया. सर्प और उसके पिता ने छोटी बहू को ढेर सारा धन देकर साथ भेजा. 

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घर गई तो छोटी बहू के पास इतना धन देखकर बड़ी बहू ने कहा कि तेरा भाई इतना धनवान है तो और धन लाकर दे. यह बात सर्प को पता लगी तो वह धन ला-लाकर छोटी बहू के घर देने लगा. एक दिन सर्प ने अपनी बहन को हीरो और मणियों का हार लाकर दिया. इस हार की अद्भुत सुंदरता की बात राजा और रानी तक भी पहुंच गई. 

राजा ने घर के सेठ को बुलावाया और सेठ ने डर से छोटी बहू का हार रानी को दे दिया. इसपर छोटी बहू बहुत निराश हुई और अपने सर्प भाई को बोली कि रानी ने मेरा हार छीन लिया है, कुछ ऐसा करो कि रानी जब मेरा हार पहने तो हार सांप बन जाए और जब मैं वो हार पहनूं तो वो फिर से हीरों का हो जाए. सर्प ने बहन की प्रार्थना सुनकर ऐसा ही किया. 

जब रानी ने उस हार को पहना तो हार सांप बन गया जिसे देखकर रानी डर के मारे चिल्लाने और चीखने लगी. राजा को यह देखकर छोटी बहू की चाल समझ आ गई और उसे बुलवाकर कहा कि अगर तूने जादू किया है तो वापस ले ले नहीं तो तुझे दंड दिया जाएगा. छोटी बहू ने बताया कि यह वही हार है और उस हार को गले में डाल लिया. छोटी बहू के गले में जाते ही हार फिर से हीरों और मणियों का हो गया. छोटी बहू ने बताया कि मेरे अलावा कोई और इस हार को पहनता है तो हार खुद ही सांप बन जाता है. 

यह देखकर और सुनकर राजा प्रसन्न हुए और छोटी बहू को उन्होंने कई उपहार पुरस्कार में दिए. यह सब देखकर बड़ी बहू को ईर्ष्या होने लगी. बड़ी बहू ने छोटी बहू के पति के कान भरने शुरू किए और उसे भड़काया कि तेरी पत्नी ना जाने कहां से धन लाती है. छोटी बहू का पति उससे सवाल-जवाब करने लगा तो सर्प भाई वहां प्रकट हुआ और पूरी गाथा सुनाई. सर्प ने यह भी कहा कि अगर मेरी बहन को किसी ने तकलीफ दी तो मैं उसे डस लूंगा. यह सुनकर छोटी बहू कृतज्ञता से ओतप्रोत हो गई. इसके बाद से ही हर साल वह नाग पंचमी का त्योहार मनाने लगी और तभी से सभी स्त्रियां सर्प को भाई मानकर पूजा करने लगीं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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