Kurma Dwadashi Ki Puja Kaise Kare: हिंदू धर्म में पौष मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को कूर्म द्वादशी के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लिया था. सनातन परंपरा में इस पावन तिथि का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. मान्यता है कि कूर्म द्वादशी के पावन पर्व पर श्री हरि की विधि-विधान से पूजा करने पर साधक के जीवन में आ रही सभी अड़चनें दूर और कामनाएं पूरी होती हैं. आइए जानते हैं कि कूर्म द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की किस विधि से पूजा करने पर उनकी कृपा बरसती है. साथ ही यह भी जानते हैं कि इस दिन पुण्य की प्राप्ति और दोष से बचने के लिए क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए.
कूर्म द्वादशी का शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार पौष मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि 31 दिसंबर 2025, बुधवार को प्रात:काल 05:00 बजे प्रारंभ होकर अगले दिन 01 जनवरी 2026, गुरुवार के दिन पूर्वाह्न 01:47 बजे समाप्त होगी. ऐसे में इस व्रत को 31 दिसंबर 2025 को रखते हुए इसका पारण 01 जनवरी 2026 को प्रात:काल 07:14 से 09:18 के बीच करना उचित रहेगा.
कूर्म द्वादशी की पूजा विधि
कूर्म द्वादशी के दिन साधक को प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद सबसे पहले भगवान विष्णु के इस व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद अपने पूजा घर में अथवा ईशान कोण में एक चौकी पर पीले रंग आसन बिछाकर उस पर श्री हरि के कच्छप अवतार वाली प्रतिमा या फिर तस्वीर को रखना चाहिए. इसके बाद उसे गंगाजल से पवित्र करने के बाद श्री हरि को चंदन, पुष्प, फल, धूप, दीप आदि अर्पित करना चाहिए. इसके पश्चात् कूर्मावतार की कथा का पाठ तथा श्रीहरि के मंत्र का जप करें. पूजा के अंत में भगवान विष्णु की आरती करके सभी को प्रसाद बांटें और स्वयं भी ग्रहण करें.
कूर्म द्वादशी की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवता और दैत्य ने अमृत को पाने के लिए मदरांचल पर्वत को मथनी और शेषनाग को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन प्रारंभ किया तो नीचे कोई आधार न होने के कारण मदरांचल पर्वत धसने लगा. तब श्री हरि ने एक विशाल कछुए के रूप में कूर्म अवतार लेकर मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर रख लिया. इसके बाद समुद्र मंथन की प्रक्रिया आसानी के साथ पूर्ण हुई थी. जिसमें 14 रत्नों के साथ अमृत कुंभ भी निकला था. मान्यता है कि जिस दिन श्री हरि ने कछुए के रूप में अवतार लिया था वह पौष मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि थी.
कूर्म द्वादशी का महाउपाय
हिंदू मान्यता के अनुसार कूर्म द्वादशी के दिन घर में चांदी का कछुआ लाकर पूजा करने पर शुभ फल की प्राप्ति होती है और पूरे साल श्री हरि का आशीर्वाद बना रहता है. इसी प्रकार आज के दिन किसी तालाब, नदी आदि पर जाकर कछुए को भोजन कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है.
कूर्म द्वादशी पर क्या करना चाहिए
- कूर्म द्वादशी के दिन प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद श्री हरि के व्रत को श्रद्धा और नियम के साथ करना चाहिए.
- कूर्म द्वादशी के दिन यदि संभव हो तो किसी तालाब या नदी किनारे जाकर कछुओं को खाने के हरे पत्तेदार सब्जी, गाजर आदि डालनी चाहिए.
- कूर्म द्वादशी के दिन विशेष रूप से केसर, गोपी चंदन या फिर हल्दी का तिलक लगाना चाहिए.
- कूर्म द्वादशी तिथि के दिन पूजा में विशेष रूप से गाय के घी से बने शुद्ध घी का दीया जलाना चाहिए.
- कूर्म द्वादशी के दिन अपने सामर्थ्य के अनुसार किसी देवालय में जाकर पुजारी को पूजा सामग्री, अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान करना चाहिए.
- कूर्म द्वादशी के दिन विशेष रूप से श्री विष्णु सहस्त्रनाम और कूर्म अवतार की कथा का पाठ करना चाहिए या फिर सुनना चाहिए.
कूर्म द्वादशी पर क्या नहीं करना चाहिए
- कूर्म द्वादशी को दिन के समय नहीं सोना चाहिए.
- कूर्म द्वादशी के दिन काले रंग के वस्त्र पहनने से बचना चाहिए.
- कूर्म द्वादशी के दिन तामसिक चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए.
- कूर्म द्वादशी के दिन किसी की निंदा या फिर किसी के साथ गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए.
- कूर्म द्वादशी के दिन झूठ बोलने और क्रोध करने से बचना चाहिए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)














