हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी को स्कन्द षष्ठी बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है. बता दें कि इस वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी 06 फरवरी को है. भक्त स्कंद षष्ठी का उपवास भक्त भगवान शिव शंकर के बड़े पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय) की कृपा पाने के लिए रखते हैं. दक्षिण भारत (South India) में स्कन्द षष्ठी एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे जोरो-शोरो से मनाया जाता है. इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव शंकर के पुत्र कार्तिकेय का विधि-विधान से पूजन और व्रत किया जाता है. बता दें कि भगवान स्कन्द को मुरुगन, कार्तिकेयन, सुब्रमण्यम स्वामी के नाम से भी पूजा जाता है.
मान्यता है कि स्कन्द षष्ठी के दिन भगवान मुरुगन के पूजन से जीवन में आ रही किसी भी प्रकार की कठिनाइंया दूर हो जाती हैं. कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने वाले भक्तों को सुब्रमण्यम स्वामी की कृपा से सुख और वैभव की प्राप्ति होती है, साथ ही संतान के कष्टों को कम करने और उसके सुख की कामना के लिए भी मुरुगन को प्रसन्न किया जाता है. बता दें कि दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को सुब्रह्मण्यम के नाम से भी जाना जाता है, जिनका प्रिय फूल चंपा है, यही वजह है कि इस व्रत को चंपा षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. भगवान कार्तिकेय को षष्ठी तिथि और मंगल ग्रह का स्वामी भी माना जाता है. आइए जानते हैं स्कन्द षष्ठी के दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा का महत्व, शुभ मुहूर्त, मंत्र और पूजा विधि.
स्कन्द षष्ठी पूजा के लिए मंत्र | Skanda Sashti Mantra
देव सेनापते स्कन्द कार्तिकेय भवोद्भव, कुमार गुह गांगेय शक्तिहस्त नमोस्तु ते॥
ऊँ ऐं हुं क्षुं क्लीं कुमाराय नमः
ऊँ नमः पिनाकिने इहागच्छ इहातिष्ठ
ऊँ नमः पशुपतये
स्कन्द षष्ठी शुभ मुहूर्त | Skanda Sashti Shubh Muhurat
स्कन्द षष्ठी तिथि का आरंभ- 7 जनवरी, शुक्रवार, प्रातः 11:10 मिनट से,
स्कन्द षष्ठी तिथि का समापन- 8 जनवरी, शनिवार प्रातः 10:42 मिनट तक.
व्रती कार्तिकेय देव की पूजा उपासना 6 फरवरी को दिन में कर सकते हैं.
स्कन्द षष्ठी का महत्व | importance of skand sashti
बताया जाता है कि इस दिन कार्तिकेय भगवान (Lord Kartikeya) ने दैत्य ताड़कासुर का वध कर दिया था. यह व्रत भगवान शिव शंकर के पुत्र स्कन्द को समर्पित है, यही वजह है कि इस व्रत को स्कन्द षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि स्कन्द षष्ठी का व्रत करने से काम, क्रोध, मद, मोह, अहंकार से मुक्ति मिल सकती है. कहते हैं कि भगवान कार्तिकेय को चंपा के फूल बेहद पसंद हैं, इसीलिए स्कन्द षष्ठी के अलावा इस व्रत को चम्पा षष्ठी भी कहा जाता है.
स्कन्द षष्ठी की पूजा विधि | Skanda Sashti Puja Vidhi
- ब्रह्म बेला में उठकर घर की अच्छी तरह साफ-सफाई कर लें.
- स्कन्द षष्ठी के दिन ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर खुद को शुद्ध करें.
- संभव हो तो उपवास का संकल्प लें.
- एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं. इस पर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा को स्थापना करें.
- सर्वप्रथम गौरी गणेश का पूजन करें. वहीं भगवान शिव समेत माता पार्वती की भी प्रतिमा स्थापित करें.
- भगवान कार्तिकेय जी के सामने कलश स्थापित करना बिल्कुल ना भूलें.
- सबसे पहले गणेश वंदना करें और फिर पूजा की शुरुआत करें.
- अगर हो सके तो अखंड ज्योत जला सकते हैं, इस दिन पूजा घर में सुबह-शाम दीपक जरूर जलाएं.
- भगवान कार्तिकेय पर जल अर्पित करें और नए वस्त्र चढ़ाएं.
- देवों के देव महादेव, माता पार्वती और कार्तिकेय की पूजा जल, मौसमी फल, फूल, मेवा, कलावा, दीपक, अक्षत, हल्दी, चंदन, दूध, गाय का घी, इत्र आदि से करें.
- पुष्पों की माला अर्पित कर फल, मिष्ठान का भोग लगाएं.
- मान्यता है इस दिन विशेष कार्य की सिद्धि के लिए की गई पूजा फलदायी होती है.
- अंत में आरती आराधना करें. शाम में कीर्तन-भजन और आरती करें. इसके पश्चात फलाहार करें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)