जैन मुनि के 6 महीने लंबे निराहार व्रत से दुनिया हुई हैरान, आत्मबल से असंभव को बनाया संभव

आचार्य हंसरत्न सूरीश्वरजी महाराज एक ऐसे जैन मुनि हैं, जिन्होंने अपने आत्मबल से 2-3 नहीं बल्कि 180 दिन यानि छह महीने का निराहार व्रत करके देश-दुनिया के लोगों को हैरान कर दिया है. उनकी इस दिव्य साधना और तपोबल के पीछे का राज क्या है, जानने के लिए एनडीटीवी ने उनके साथ खास बातचीत की.

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  • 30-40 दिन के उपवास से प्रारंभ करके दृढ़ संकल्प से पूरा किया 180 दिनों का कठिन तप.
  • छह महीने लंबे उपवास के लिए ईश्वरीय और गुरु कृपा के साथ मन के संकल्प को बताया जरूरी.
  • कठिन तप के पुण्यफल से संसार में परस्पर प्रेम, मैत्री भाव में वृद्धि तथा शांति की है कामना.
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जैन मुनियों की तप साधना का एक लंबा इतिहास रहा है, जिन्होंने अपने तप बल से देश दुनिया को शांति, प्रेम और बंधुत्व का मार्ग दिखाया है. इसी कड़ी में जैन मुनि हंसरत्न सूरीश्वर जी महाराज का नाम जुड़ गया है, जिन्होंने अपने आत्मबल से असंभव को संभव करके दिखाया है. उन्होंने 180 दिनों का कठिन निराहार व्रत करके दुनिया को हैरान कर दिया है. खास बात ये कि उनका यह पहला नहीं बल्कि आठवीं बार किया गया निराहार व्रत है. उनकी इस तप साधना की सफलता के पीछे का राज क्या है? इस तप के जरिए वे देश-दुनिया को क्या संदेश देना चाहते हैं और सबसे अहम बात उनका आध्यात्मिक अनुभव क्या रहा है, जानने के लिए एनडीटीवी ने उनसे विस्तार से बातचीत की.

180 दिनों के इस तप की क्यों की शुरुआत?

जैन मुनि हंसरत्न सूरीश्वर जी महाराज के अनुसार जब कभी भी किसी जैन मुनि को दीक्षा दी जाती है तो वह आत्मकल्याण के लिए होती है, ताकि उसके भीतर के जो क्रोध, मान, माया, लोभ आदि शत्रु हैं, वह उन पर विजय प्राप्त कर सकें. यह साधना पांच इंद्रिय - स्पर्शनेन्द्रिय, रसनेन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, चक्षुरीन्द्रिय, श्रोत्रेन्द्रिय: और छठे मन पर नियंत्रण पाने के लिए होती है. जैन मुनि के अनुसार जैसा अन्न वैसा रहे मन. आपका अन्न जितना सादा और साधारण रहता है, आप उतना ही इन सभी चीजों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, इसलिए जिस आत्मा को भी अच्छा जीवन जीना है, फिर चाहे वह सन्यास परंपरा से जुड़ा हो या फिर सांसारिक जीवन में जी रहा हो, वह अपने खान-पान पर जितना नियंत्रण करेगा, उसका उतना ही अपने विचारों पर कंट्रोल रहेगा.

इस कठिन साधना का राज क्या है? 

जैन मुनि हंसरत्न सूरीश्वर जी महाराज 180 दिनी साधना की सफलता के लिए कई चीजों को श्रेय देते हैं. उनके अनुसार इसमें विशेष रूप से ईश्वरीय कृपा और गुरु का आशीर्वाद शामिल रहता है. उनके मुताबिक जैन मुनि की दीक्षा को प्राप्त करना काफी कष्टकारी है. जिसमें पैदल नंगे पैर चलना, जो मिल गया उसी को ग्रहण करना, 24 घंटे में 12 घंटे स्वाध्याय करना आदि शामिल है. जैन परंपरा में 12 प्रकार के तप में यह शारीरिक साधना भी है. जिसे उनके जैसे तमाम संत इसे डेवलप करते हुए आगे बढ़ते हैं. इसमें ईश्वरीय और गुरु कृपा के बाद अगर कुछ रहता है तो हमारा माइंड सेट रहता है, जिसमें यह संकल्प होता है कि कुछ भी दिक्कत आये पारणा नहीं करना है. कहने का तात्पर्य है कि दृढ़ संकल्प से ही यह साधना सफल होती है. 

शरीर की थकान होने पर मन को कैसे कंट्रोल करते हैं?

मेडिकल साइंस के अनुसार बगैर कुछ खाए पिये हम एक महीने से ज्यादा चल नहीं सकते हैं, लेकिन हमारे तीर्थंकर भगवान कहते हैं कि खाना और नींद बढ़ाने से बढ़ती है और घटाने से घटती है. यदि आप पांच घंटे सोते हैं तो आपको पांच घंटे में ही संतोष मिलेगा. यदि आप चार घंटे सोते हैं तो आपकी चार घंटे में नींद खुल जाती है. इसी प्रकार यदि आप दिन में चार बार खाते हैं तो आपको चार भूख लगेगी. जैन मुनि हंसरत्न सूरीश्वर जी महाराज बताते हैं कि एक बार 8 साल के महाराज जी ने जब दीक्षा लेने के बाद पहली बार 30 दिन का उपवास किया तो मुझे लगा कि इतनी कम उम्र में इतना लंबा उपवास कर सकता है तो मुझे ऐसा विचार क्यों नहीं आया. उनसे मिली प्रेरणा के बाद मैंने 30 दिन का उपवास सफलता के साथ किया.

कब-कब कितना किया तप?

जैन मुनि हंसरत्न सूरीश्वर जी महाराज के अनुसार तीर्थंकर भगवान बोलते हैं आत्मा में अनंत शक्ति है और उससे भी बड़ी मन की शक्ति है. जब आप अपने मन को नियंत्रण में रखते हैं तो आत्मा भी नियंत्रित होती है. मैंने 30 दिन के बाद 40 दिन का उपवास किया. ऐसे करते हुए 68, 77 दिनों का उपवास करने के बाद वापस 30 दिन का उपवास किया. उसके बाद 99 दिन का उपवास किया. फिर इसके बाद 120, 150 और 180 दिनों का उपवास करने के लिए मुझे 14 साल तक अभ्यास करना पड़ा.

भौतिकता के दौर में तप की क्या महत्ता है?

हमें यह समझना होगा कि खाने से ताकत तो आती है, लेकिन आवश्यकता से अधिक भोजन करने से हमारे शरीर को नुकसान पहुंचता है. प्रत्येक चीज उचित मात्रा में अच्छा रहता है. बिल्कुल वैसे ही जैसे दाल में नमक रहता है. हमारा शरीर सादा और अल्प भोजन मांगती है. यानि कम खाओ और उससे ज्यादा काम लो, लेकिन लोग यह बात भूलकर तमाम तरह खाने की ओर आकर्षित होता है. यही कारण है कि 100 साल पहले और अब में बीमारियां घटने की बजाय बढ़ी हैं.  वर्तमान में व्यक्ति पेट की भूख के लिए नहीं मन की भूख के लिए खाता है. ऐसे में यदि व्यक्ति आयुर्वेद और धर्म दोनों के नियम का पालन करे तो उसका शरीर स्वस्थ रहेगा. 

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180 दिनी उपवास का आध्यात्मिक अनुभव 

यह उपवास सिर्फ भोजन से संबंधित नहीं है, बल्कि इसका जुड़ाव धर्म से भी है. खाली समय में हम भगवान का ध्यान करते हैं. आगम को पढ़ते हैं. चातुर्मास खत्म होने के बाद अब हम विहार करेंगे. इस तप से हमारा मनोबल मजबूत हुआ है. आप जितना ज्यादा सादा भोजन करेंगे और व्यसन से मुक्त रहते हुए कठिन परिश्रम करेंगे, आप उतने ही ज्यादा आरोग्य रहेंगे. उतना ही आपका क्रोध और ईर्ष्या पर नियंत्रण रहेगा. आपकी हर चीज आपके नियंत्रण में रहेगी और आप एक स्वस्थ जीवन जिएंगे. आपको डॉक्टर की जरूरत नहीं पड़ेगी.

अपने तप को किन शब्दों में बयां करेंगे 

देखिए, जो मीठा खाता है, वही बता सकता है कि शक्कर का स्वाद कैसा है. इस तप को करने के बाद जब आत्मा के अंदर की गंदगी निकलती है और जो शरीर और व्यवहार अनुभूति होती है, वह जो करता है, उसे ही पता होता है. 

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आम लोगों के लिए संदेश 

आपको जो संस्कार की अनमोल धरोहर मिली हुई है, उसे संभाल कर रखें तथा व्यसन से दूर रहें। अपने मां-बाप के उपकार से जुड़े रहें. ऐसा करने पर आपको मन की शांति और प्रसन्नता मिलेगी. आप अपने भीतर जितना मैत्री भाव बढ़ाएंगे, उतना आपके भीतर प्रेम और शांति बढ़ेगी.

विश्व को दिया ये संदेश

मैं यह जो तप कर रहा हूं वह मैं अपनी आत्मा की गंदगी को निकालने के लिए कर रहा हूं. उसका जो भी पुण्यफल मिलेगा, उसके शुभ प्रभाव से जगत के भीतर मैत्री भाव और परस्पर प्रेम में वृद्धि हो, कहीं भी युद्ध न हो, सभी भाईचारे के साथ रहें, सभी को सद्बुद्धि मिले, यही कामना है.

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