Jagannatha Rath Yatra 2025: 27 जून से शुरू हो रही है जगन्नाथ रथ यात्रा, क्या है इसका महत्व और पौराणिक मान्यताएं, जानिए ज्योतिषाचार्य से

डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि जगन्नाथ यात्रा का वर्णन मुख्य रूप से स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में मिलता है. जिसमें इसका महत्व और इतिहास विस्तार से बताया गया है...

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History of Jagannatha Rath Yatra : यह उड़ीसा का सर्वप्रिय भव्य उत्सव है.

Jagganath rath yatra Significance 2025 : हर साल आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि को उड़ीसा के पुरी भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकलती है. जिसमें जगन्नाथ जी के साथ उनके भाई बलभद्रजी और बहन सुभद्रा का रथ शामिल होता है. भगवान जगन्नाथ का रथ 45 फुट ऊंचा और 35 फुट लम्बा और उतनी ही चौड़ाई होती है, जबकि बल भद्र जी का रथ 44 फुट और सुभद्रा का 43 फुट ऊंचा होता है. भगवान जगन्नाथजी के रथ में 16 पहिये, बल भद्र जी के 14 और सुभद्रा के रथ में 12 पहिए होते हैं. ये रथ हर साल नए बनाए जाते हैं. आपको बता दें कि मंदिर के सिंह द्वार पर बैठकर भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा करते हैं. 

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इस रथ यात्रा में शामिल होने के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आते हैं. क्योंकि इस मंदिर की प्रतिमाओं को वर्ष में एक बार मंदिर से बाहर निकाला जाता है. 

हर साल निकलने वाली इस यात्रा को लेकर कई पौराणिक कथाएं है प्रचलित हैं. आज के इस लेख में हम उन्हीं के बारे में ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से जानेंगे... 

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जगन्नाथ रथ यात्रा की पौराणिक मान्यताएं

डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि जगन्नाथ यात्रा का वर्णन मुख्य रूप से स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में मिलता है. जिसमें इस यात्रा का महत्व और इतिहास विस्तार से बताया गया है. इस यात्रा से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं.

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एकबार देवी सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ से नगर भ्रमण की इच्छा जताई, तब भगवान ने अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथ पर बैठकर नगर भ्रमण किया. इस यात्रा के दौरान वे अपनी मौसी गुंडीचा देवी के घर भी गए और 7 दिनों तक वहां विश्राम किया. बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ का अपनी मौसी के घर जाना ही बाद में रथ यात्रा के रूप में प्रसिद्ध हुआ.

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भगवान कृष्ण की मथुरा यात्रा का है प्रतीक

एक अन्य कथा के अनुसार यह यात्रा भगवान कृष्ण की मथुरा यात्रा का प्रतीक है. दरअसल जब श्री कृष्ण मथुरा गए थे, तब उनके साथ बलराम और सुभद्रा भी थे. यह रथ यात्रा उसी घटना की स्मृति में भी मनाया जाता है.

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सालबेग की मजार के सामने क्यों रुकता है रथ 

एक कथा और है, जो भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्त सालबेग से जुड़ी है. हर साल जब रथ यात्रा निकाली जाती है, तो भगवान जगन्नाथ का रथ सालबेग की मजार के सामने कुछ देर के लिए अपने आप ही रुक जाता है. मान्यता है कि जगन्नाथ जी का सालबेग नाम का एक मुस्लिम भक्त था, जिसे भगवान ने एक बार सपने में दर्शन दिए. जिसके बाद उसी क्षण सालबेग ने प्रभु के चरणों में प्राण त्याग दिए थे. बाद में जब भगवान की रथ यात्रा निकली, तो रथ अचानक मजार के पास आकर रुक गया. तब लाखों की भीड़ ने प्रभु से सालबेग की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की थी. तभी से यह परंपरा बन गई कि रथ यात्रा के दौरान सालबेग की मजार पर रोका जाता है.

आपको बता दें कि इन सबमें सबसे लोकप्रिय कथा है बहन सुभद्रा का नगर भ्रमण की भगवान जगन्नाथ से इच्छा जताना.

जगन्नाथ रथ यात्रा 2025 की तिथि और शुभ योग

इस साल यह रथ यात्रा 27 जून 2025 को आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि शुक्रवार को निकाली जाएगी. द्वितीया तिथि दिन में 11 बजकर 19 मिनट तक रहेगी. वहीं, इस दिन पुनर्वसु नक्षत्र प्रातः 7 बज कर 21 मिनट तक रहेगा, इसके बाद पुष्य नक्षत्र शुरू हो जाएगा. 

इस दिन जगन्नाथ जी और उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा जी को लकड़ी के बने विशाल रथों में विराजमान करके शोभायात्रा जगन्नाथ पुरी उड़ीसा में निकाली जाएगी. यह उड़ीसा का सर्वप्रिय भव्य उत्सव है, जिसमें देश देशांतर से आने वाले श्रद्धालु भक्तजन भगवान के विशाल रथों को रस्सियों से खींचते हुए ढोल, नगाड़े, मंजीरा बजाते,नाचते गाते प्रसन्न मुद्रा में बहुत शोभायमान लगते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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