भगवान Jagannath से जुड़ी यह सबसे खास बात क्या आपको है पता, जानिए यहां

Puri Rath yatra 2024 : क्या आपको पता है हर साल यात्रा पर निकलने से पहले प्रभु बीमार पड़ जाते हैं, आखिर ऐसा क्यों होता है आज हम आपको इसके बारे में आर्टिकल में बताने वाले हैं.

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Jagannath Rath Yatra 2024 : कल यानि 7 जुलाई दिन रविवार को विश्व विख्यात भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू हो गई. हर साल यह यात्रा आषाढ़ मास के शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया तिथि को आयोजित की जाती है. इसका आयोजन ओडिशा के पुरी में किया जाता है जिसमें लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से शामिल होते हैं. इस यात्रा के शुरू होने से पहले तीनों रथों की विधि-विधान से पूजा की जाती है. इसके बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण पर रथ पर सवार होकर निकलते हैं. 

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इस यात्रा को लेकर मान्यता है कि इसमें शामिल होने से 100 यज्ञों के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि दुनिया भर से लोग इस यात्रा में प्रभु जगन्नाथ का आशीर्वाद लेने के लिए शामिल होते हैं.

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साथ ही यह भी मान्यता है कि इस यात्रा में शामिल होने से अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी कम होता है. क्योंकि जगन्नाथ रथ यात्रा में नवग्रहों की पूजा की जाती है. 

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लेकिन क्या आपको पता है हर साल यात्रा पर निकलने से पहले प्रभु बीमार पड़ जाते हैं, आखिर ऐसा क्यों होता है आज हम आपको इस आर्टिकल में बताने वाले हैं.

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भगवान क्यों पड़ते हैं बीमार

पौराणिक मान्याताओं के अनुसार, प्रभु जगन्नाथ का भक्त माधव एक बार बीमार पड़ जाता है. लेकिन उसकी देखभाल के लिए कोई नहीं था, तब भगवान जगन्नाथ उसकी सेवा के लिए पहुंच गए. उसे समय पर दवा देते और देखभाल करते. ऐसे में भक्त माधव ने उनसे पूछा आप तो मुझे ठीक कर सकते थे. आपको मेरी सेवा करने की क्या जरूरत है. भक्त के इस सवाल पर प्रभु ने कहा तुम्हारे भाग्य में जितना जितना लिखा है उसे भोगना पड़ेगा. हां, लेकिन तुम्हारी बची हुई 15 दिन की बीमारी को जरूर मैं ले सकता हूं. इसके बाद प्रभु ने भक्त की बची बीमारी को अपने ऊपर ले लिया और वापस मंदिर पहुंचकर बुखार में ही स्नान कर लिया. जिसके बाद उनकी तबीयत और बिगड़ गई. ऐसे में भगवान जगन्नाथ एकांतवास में चले गए, जिसे 'अनासार' के नाम से जाना जाता है. आपको बता दें कि एकांतवास के दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा थी.

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कैसे ठीक किया जाता है प्रभु को

इस दौरान भगवान को कई औषधियां दी जाती हैं और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. 15 दिन तक प्रभु जगन्नाथ शयन कक्ष में रहते हैं. फिर स्वस्थ होने के बाद अपने भाई बहन के साथ यात्रा पर निकलते हैं. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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