महिमा छठी मईया के ई जहान जाने ला...

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सूर्योपासना का पर्व छठ साल में दो बार मनाया जाता है. साल का पहला छठ चैत्र महीने में मनाया जाता है जिसे चैती छठ कहते हैं. दूसरी बार यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती हैं जिसे कार्तिक छठ कहते हैं. वैसे तो यह पर्व देशभर में मनाया जाती है, लेकिन यूपी, बिहार, झारखंड और नेपाल में इसे बड़े पैमाने पर मनाया जाता है.

वेद पुराणों में है सूर्योपासना का जिक्र
भारत में सूर्योपासना ऋग वैदिक काल से होती आ रही है. सूर्य और इसकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भगवत पुराण, ब्रह्मा वैवर्त पुराण आदि में विस्तार से की गई है. ऐसी मान्यता है कि भगवान राम जब माता सीता से स्वयंबर करके घर लौटे थे और उनका राज्य अभिषेक किया गया था तब उन्होंने पूरे विधान के साथ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को परिवार के साथ पूजा की थी.  

...इसलिए होती है उगते और डूबते सूर्य की पूजा
सूर्य की शक्तियों का मुख्य श्रोत उनकी पत्नी ऊषा और प्रत्यूषा हैं. छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है. सुबह सूर्य की पहली किरण (ऊषा) और शाम में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्ध्य देकर दोनों से प्रार्थना की जाती है.

नहाय खाय से शुरू होता छठ
चार दिनों का ये पर्व नहाय खाय से शुरू होता है. इस दिन वर्त करने वाले स्त्री या पुरुष गंगा स्नान के बाद  सेंधा नमक में पका दाल-चावल और कद्दू खाते हैं. व्रती इस दिन बस एक वक्त का खाना खाते हैं.

खरना भी है बेहद खास
दूसरे दिन व्रत करने वाले दिन भर कुछ नहीं खाते-पीते हैं. शाम को पूजा के बाद गुड़ से बनी खीर का प्रसाद खाते हैं. इस दिन आस-पड़ोस के लोगों को भी बुलाया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है.

अस्ताजलगामी सूर्य को अर्घ्य
तीसरे दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को पानी या दूध के अर्घ्य दिया जाता है. लोग नदी या पोखरे के किनारे जाकर पूजा अर्चना करते हैं, गीत गाए जाते हैं. पूजा के लिए खास तौर पर बांस की टोकरी में सूप तैयार की जाती है जिसमें गुड़ से बना ठेकुआ, ईख, फल, केले,दीए और चावल के लड्डू प्रमुख तौर पर शामिल किए जाते हैं.

उगते सूर्य को अर्घ्य
चौथे दिन उपासक उगते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और परिवार की खुशहाली की प्रार्थना करते हैं और हवन करते हैं. फिर लोगों को प्रसाद बांटी जाती है और हवन किया जाता है. इसी के साथ ये कठिन व्रत संपन्न होता है. उपासक प्रसाद खाकर व्रत तोड़ते हैं.

कुछ बातों का रखना होता है खास ध्यान
  •     व्रत करने वाली महिलाएं केवल साड़ी पहनती हैं और साथ में कोई सिलाई किया हुआ वस्त्र धारण नहीं करतीं.
  •     मान्यता है कि सिलाई के वक्त सूई में धागा डालते वक्त वो जूठे हो जाते हैं.
  •     जिस जगह पर व्रति चार दिन रहते हैं वहां प्याज-लहसुन आदी चीजें भी निषेध होती हैं.
  •     व्रत के पहले दो दिन उपासक केवल दो वक्त का खाना खाते हैं.
  •     व्रत के बाकी के दो दिन उपासक पानी तक नहीं पीते. इस दौरान वे जमीन पर चटाई डालकर ही सोते हैं.
  •     कहा जाता है कि ये व्रत एक तपस्या के समान है.
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