Tulsi Puja tips : आज मोहिनी एकादशी है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. आपको बता दें तुलसी श्रीहरि को बेहद पसंद हैं. ऐसे में तुलसी की पूजा एकादशी के दिन करने से आपको पुण्य लाभ (tulsi puja ke labh) मिल सकता है. इससे साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. आइए जानते हैं गुरुवार के दिन देवी तुलसी की पूजा (tulsi puja niyam) का नियम... Mohini Ekadashi vrat katha : मोहिनी एकादशी के दिन जरूर सुनें यह कथा, मिलेगा पुण्य
देवी तुलसी की पूजा कैसे करें - How to Worship Goddess Tulsi
धार्मिक मत है कि तुलसी मां की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. यही कारण है हर दिन विवाहित और अविवाहित महिला देवी तुलसी की पूजा करती हैं.
गुरुवार के दिन आप ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाइए. इस समय आप लक्ष्मी नारायण जी का ध्यान करके उन्हें प्रणाम करें. फिर आप घर की सफाई करिए . फिर गंगाजल वाले पानी से स्नान करिए. इसके बाद आप पीले रंग का कपड़ा धारण करिए. अब आप सूर्य देव को जल अर्पित करें. इसके बाद आप गंगाजल में रोली मिलाकर तुलसी के पौधे को अर्घ्य दीजिए. अंत में आप लाल रंग की चुनरी तुलसी देवी को अर्पित करिए.
इस दौरान आप तुलसी माता का मंत्र जाप करिए. ऐसा आप परिक्रमा करते समय करें. इस दौरान देवी मां को तुलसी फल और फूल अर्पित करिए. इस दिन आप तुलसी चालीसा का पाठ करिए. पूजा का समापन आरती के साथ करें.
तुलसी चालीसा
श्री तुलसी महारानी, करूं विनय सिरनाय। जो मम हो संकट विकट, दीजै मात नशाय।।
नमो नमो तुलसी महारानी, महिमा अमित न जाय बखानी। दियो विष्णु तुमको सनमाना, जग में छायो सुयश महाना।।
विष्णुप्रिया जय जयतिभवानि, तिहूँ लोक की हो सुखखानी। भगवत पूजा कर जो कोई, बिना तुम्हारे सफल न होई।।
जिन घर तव नहिं होय निवासा, उस पर करहिं विष्णु नहिं बासा। करे सदा जो तव नित सुमिरन, तेहिके काज होय सब पूरन।।
कातिक मास महात्म तुम्हारा, ताको जानत सब संसारा। तव पूजन जो करैं कुंवारी, पावै सुन्दर वर सुकुमारी।।
कर जो पूजन नितप्रति नारी, सुख सम्पत्ति से होय सुखारी। वृद्धा नारी करै जो पूजन, मिले भक्ति होवै पुलकित मन।।
श्रद्धा से पूजै जो कोई, भवनिधि से तर जावै सोई। कथा भागवत यज्ञ करावै, तुम बिन नहीं सफलता पावै।।
छायो तब प्रताप जगभारी, ध्यावत तुमहिं सकल चितधारी। तुम्हीं मात यंत्रन तंत्रन, सकल काज सिधि होवै क्षण में।।
औषधि रूप आप हो माता, सब जग में तव यश विख्याता, देव रिषी मुनि औ तपधारी, करत सदा तव जय जयकारी।।
वेद पुरानन तव यश गाया, महिमा अगम पार नहिं पाया। नमो नमो जै जै सुखकारनि, नमो नमो जै दुखनिवारनि।।
नमो नमो सुखसम्पति देनी, नमो नमो अघ काटन छेनी। नमो नमो भक्तन दुःख हरनी, नमो नमो दुष्टन मद छेनी।।
नमो नमो भव पार उतारनि, नमो नमो परलोक सुधारनि। नमो नमो निज भक्त उबारनि, नमो नमो जनकाज संवारनि।।
नमो नमो जय कुमति नशावनि, नमो नमो सुख उपजावनि। जयति जयति जय तुलसीमाई, ध्याऊँ तुमको शीश नवाई।।
निजजन जानि मोहि अपनाओ, बिगड़े कारज आप बनाओ। करूँ विनय मैं मात तुम्हारी, पूरण आशा करहु हमारी।।
शरण चरण कर जोरि मनाऊं, निशदिन तेरे ही गुण गाऊं। क्रहु मात यह अब मोपर दाया, निर्मल होय सकल ममकाया।।
मंगू मात यह बर दीजै, सकल मनोरथ पूर्ण कीजै। जनूं नहिं कुछ नेम अचारा, छमहु मात अपराध हमारा।।
बरह मास करै जो पूजा, ता सम जग में और न दूजा। प्रथमहि गंगाजल मंगवावे, फिर सुन्दर स्नान करावे।।
चन्दन अक्षत पुष्प् चढ़ावे, धूप दीप नैवेद्य लगावे। करे आचमन गंगा जल से, ध्यान करे हृदय निर्मल से।।
पाठ करे फिर चालीसा की, अस्तुति करे मात तुलसा की। यह विधि पूजा करे हमेशा, ताके तन नहिं रहै क्लेशा।।
करै मास कार्तिक का साधन, सोवे नित पवित्र सिध हुई जाहीं। है यह कथा महा सुखदाई, पढ़े सुने सो भव तर जाई।।
तुलसी मैया तुम कल्याणी, तुम्हरी महिमा सब जग जानी। भाव ना तुझे माँ नित नित ध्यावे, गा गाकर मां तुझे रिझावे।।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)