गौरी गणेश को प्रसन्न करने के लिए द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी पर किया जाता है इस कथा का पाठ

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी या द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि माना जाता है कि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गौरी गणेश की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन इस कथा का पाठ किया जाता है.

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द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की कथा से प्रसन्न हो सकते हैं भगवान गणेश
नई दिल्ली:

साल 2022 में फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) या द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी (Dwijapriya Sankashti Chaturthi) 20 फरवरी को मनाई जाएगी. इस दिन गणपति महाराज (Lord Ganesha) का विधि-विधान से पूजन और व्रत किया जाता है. बता दें कि हर माह दो चतुर्थी (Chaturthi) तिथि पड़ती है. एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में. यूं तो चतुर्थी तिथि हर माह में आती है, लेकिन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी या द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व होता है.

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मान्यता है कि माना जाता है कि द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गौरी गणेश की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है. द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी के दिन इस कथा का पाठ किया जाता है.

Dwijapriya Sankashti Chaturthi: इस दिन मनाई जाएगी द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी, यहां जानें पूजन विधि और व्रत का महत्व

द्विजप्रिय संकष्टी चतुर्थी की कथा | Dwijapriya Sankashti Chaturthi Katha

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब भगवान शिव शंकर और माता पार्वती नदी किनारे बैठे हुए थे, तभी अचानक माता पार्वती ने भगवान शिव से चौपड़ खेलने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की. उस वक्त तीसरा वहां कोई मौजूद नहीं था, जिसको खेल में सम्मलित किया जा सके. इस स्थिति में भगवान शिव और माता पार्वती ने मिलकर एक मिट्टी की प्रतिमा बनाकर उसमें जान डाल दी.

इसके बाद मिट्टी से बने बालक को माता पार्वती और भगवान शिव ने आदेश दिया कि खेल को अच्छी तरह देखे और कौन जीता कौन हारा उसका फैसला करे. खेल के दौरान माता पार्वती बार-बार भगवान शिव को मात देते हुए विजयी हो रही थीं. इस बीच लगातार चलते खेल में एक समय ऐसा आया, जब बालक ने माता पार्वती को हारा बताकर गलत फैसला सुना दिया.

बालक की इस गलती से माता पार्वती को गुस्सा आ गया और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को श्राप दे दिया, माता पार्वती के श्राप से वह बालक लंगड़ा हो गया. इस बीच बालक ने अपनी भूल के लिए माता पार्वती से क्षमा मांगी. माता ने कहा कि श्राप तो वापस नहीं लिया जा सकता, लेकिन इसका एक उपाय जरूर किया जा सकता है, जिसके चलते तुम्हें इस श्राप से मुक्ति मिल जाएगी. माता ने कहा कि संकष्टी वाले दिन इस जगह पर कुछ कन्याएं पूजा करने आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और उस व्रत को सच्चे मन से करना.

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बालक ने पूजा करने आई कन्याओं से व्रत की विधि जान ली और पूरी श्रद्धापूर्वक विधि-विधान से इस व्रत को किया. अनुसार उसे किया. बालक की सच्ची आराधना से भगवान श्री गणेश प्रसन्न हो गए और उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा, बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की अपनी इच्छा को ज़ाहिर किया. भगवान श्री गणेश ने बालक की मांग को पूरा कर दिया और उसे शिवलोक पहुंचा दिया, लेकिन जब वह पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले.

माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गयी थीं. जब भगवान शिव ने उस बच्चे को पूछा की तुम यहां कैसे आए तो उसने उन्हें बताया कि श्री गणेश की पूजा से उन्हें यह वरदान प्राप्त हुआ है. ये जानने के बाद भगवान शिव ने भी माता पार्वती को मनाने के लिए उस व्रत को किया, जिसके बाद माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न होकर वापस कैलाश वापस लौट आयीं. मान्यता है कि इस तरह संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले जातक की गणपति महाराज सभी मनोकामनाएं पूर्ण कर देते हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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