4 दिनों तक चलने वाले सूर्य उपासना के पर्व छठ के हर दिन की है विशेष मान्यता, जानें यहां

छठ पर्व का मुख्य दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत नहाय खाय से होती है और यह महापर्व 4 दिनों तक चलता है.

विज्ञापन
Read Time: 6 mins
Chhath Puja Importance: छठ पूजा की विशेष धार्मिक मान्यता होती है.

Chhath Puja 2024: छठ पूजा का महापर्व, जिसे अत्यधिक तपस्या और आस्था का पर्व माना जाता है, इस साल 5 नवंबर से शुरू होगा. इस पर्व में भक्तगण भगवान सूर्य (Lord Surya) और छठी मैया की आराधना करते हैं. छठ पर्व का मुख्य दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत नहाय खाय (Nahay Khaye) से होती है और यह चार दिनों तक चलता है. हालांकि इस पर्व की शुरुआत बिहार और पूर्वांचल में मानी जाती है, लेकिन अब यह देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है. लोग अपनी आस्था को प्रकट करने के लिए इस व्रत को करते हैं जोकि नियम, संयम और तपस्या का प्रतीक है.

Chhath Puja 2024: शुरू हो चुका है सूर्य उपासना का महापर्व, जानें हर दिन की पूजा विधि और महत्व

छठ पर्व की मान्यता

कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि का यह व्रत भगवान सूर्य और षष्ठी देवी यानी छठी मैया (Chhathi Maiyya) को समर्पित है. मान्यता है कि छठी मैया ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं. उन्हें संतान की रक्षा और संतान सुख देने वाली देवी माना जाता है जबकि सूर्य देवता अन्न, संपन्नता और जीवन शक्ति के प्रतीक हैं. छठ पूजा में मुख्य रूप से इन्हीं दोनों की उपासना की जाती है जिसमें सूर्य को अर्घ्य देकर छठी मैया की पूजा की जाती है. इसके साथ ही चैत्र शुक्ल षष्ठी को भी चैती छठ के रूप में मान्यता दी गई है जिससे यह पर्व साल में 2 बार मनाया जाता है.

छठ पूजा का महत्व और विधि

छठ पूजा संतान, परिवार की सुख-समृद्धि और रोगमुक्त जीवन की कामना के लिए की जाती है. छठ महापर्व के दौरान श्रद्धालु कठिन नियमों का पालन करते हैं जो व्रत को और कठिन बना देता है. इसके अलावा, सूर्य की उपासना से भक्तों को ऊर्जा और शक्ति मिलती है जो जीवन में सकारात्मकता लाने में सहायक होती है. इस व्रत की तैयारी भी विशेष होती है और इसके प्रसाद में पूरी शुद्धता का ध्यान रखा जाता है.

Advertisement
नहाय खाय

पहले दिन को नहाय खाय कहा जाता है. इस दिन व्रती नदी या तालाब में स्नान करते हैं और शुद्ध भोजन करते हैं. वे कद्दू की सब्जी, चावल, और सरसों के साग के साथ एक समय का भोजन ग्रहण करते हैं. यह भोजन व्रती के मन और शरीर को शुद्ध करता है और उन्हें व्रत के लिए तैयार करता है.

Advertisement
खरना

दूसरे दिन को खरना (Kharna) कहा जाता है. इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के बाद गुड़ से बनी खीर, रोटी, और फल का भोग छठी मैया को अर्पित करते हैं. इस प्रसाद को परिवार के सभी सदस्य ग्रहण करते हैं. खरना के बाद व्रत रखने वालों के लिए आने वाले दो दिनों का व्रत कठिन होता है क्योंकि इस दौरान जल का भी त्याग किया जाता है.

Advertisement
संध्या अर्घ्य

तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहा जाता है. इस दिन व्रती सूर्यास्त के समय नदी, तालाब या किसी जलाशय के किनारे जाकर सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं. अर्घ्य देने के लिए बांस की टोकरी में ठेकुआ, फल, और चावल के लड्डू आदि सामग्री रखकर अर्पित की जाती है. यह छठ पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है, जहां व्रती पूरे नियम और विधि के साथ सूर्य को अर्घ्य देकर अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं.

Advertisement
प्रातः अर्घ्य और पारण

चौथे और अंतिम दिन को प्रातः अर्घ्य का महत्व है. इस दिन व्रती उगते सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा करते हैं और इस व्रत का समापन करते हैं. पारण के साथ इस कठिन व्रत को समाप्त किया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है. इस दिन प्रसाद (Prasad) में ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, नारियल, और विभिन्न फलों का समावेश होता है.

छठ पूजा का प्रसाद

छठ पर्व के प्रसाद में शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है. व्रती ठेकुआ, मालपुआ, चावल के लड्डू, और नारियल जैसे पदार्थों का प्रसाद तैयार करते हैं. इन सभी प्रसादों को पवित्र मानते हुए सूर्य देवता और छठी मैया को अर्पित किया जाता है. यह प्रसाद पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ बनाया जाता है और व्रत के समापन के बाद इसे सभी में बांटा जाता है.

छठ पूजा के परंपरागत और आधुनिक गीत

छठ पर्व के दौरान कुछ प्रसिद्ध परंपरागत गीत गाए जाते हैं जो इस पर्व की महिमा का बखान करते हैं, जैसे "कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाये", "उग हो सूरज देव, भइल अर्घ के बेर" और "केलवा के पात पर उगेलन सूरज देव". इन गीतों के माध्यम से लोग अपनी श्रद्धा और समर्पण को प्रकट करते हैं. साथ ही, छठ पर्व पर आधारित कई आधुनिक गीत भी गाए जाते हैं, जिनमें "पार करो हे गंगा मइया" और "छठी मैया आओ, अर्घ ले लो" जैसे गीत शामिल हैं. ये गीत इस पर्व के दौरान उल्लास और भक्ति का माहौल बनाते हैं.

छठ पर्व कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि और चैत्र शुक्ल षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. इस पर्व में छठी मैया और सूर्य देव की पूजा की जाती है. छठी मैया ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन मानी जाती हैं. मान्यता है कि छठ पर्व का आरंभ सतयुग में राजा प्रियव्रत ने किया था.

छठ पर्व की पौराणिक कथा

छठ पर्व से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा (Chhath Vrat Katha) राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी की है जो संतानहीनता के कारण अत्यंत दुखी थे. संतान की प्राप्ति के लिए उन्होंने ऋषि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हुईं और एक पुत्र को जन्म दिया. लेकिन दुर्भाग्यवश वह पुत्र मृत पैदा हुआ.

इस गहरे दुख से व्याकुल राजा प्रियव्रत आत्महत्या करने का निर्णय लेने लगे. उसी समय षष्ठी देवी, जो ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन मानी जाती हैं, प्रकट हुईं. देवी ने राजा को समझाया कि अगर वे उनकी पूजा और व्रत करेंगे, तो उनकी मनोकामना पूर्ण होगी और उन्हें एक संतान का सुख प्राप्त होगा. देवी षष्ठी ने राजा को बताया कि वे संतान और परिवार की रक्षा करने वाली देवी हैं और उनकी पूजा करने से संतान प्राप्ति की संभावना बढ़ जाती है.

राजा ने देवी षष्ठी के निर्देशों का पालन किया और व्रत किया. उनकी श्रद्धा और तपस्या के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर संतान की प्राप्ति हुई. तब से षष्ठी देवी की पूजा का यह विधान शुरू हुआ और इसे छठ पूजा के रूप में मनाया जाने लगा. इस पर्व में विशेष रूप से सूर्यदेव और षष्ठी देवी की आराधना की जाती है जिससे संतान, परिवार की सुख-समृद्धि और आरोग्यता की कामना की जाती है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

Featured Video Of The Day
PM Modi में वैश्विक शांतिदूत बनने के सभी गुण: Former Norwegian minister Erik Solheim
Topics mentioned in this article