Pradosh Vrat: आज है प्रदोष व्रत, जानिए प्रदोष काल का समय और पूजा सामग्री के बारे में

Pradosh Vrat Shubh Muhurt: प्रदोष व्रत रखने वाले प्रदोष काल में महादेव और माता पार्वती की पूजा करते हैं. जानिए पूजा में किन चीजों को किया जाता है शामिल.

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Pradosh Vrat Puja: जानिए कैसे की जाती है प्रदोष व्रत की पूजा. 

Budh Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत की विशेष धार्मिक मान्यता होती है. इस व्रत को रखने पर माना जाता है कि घर में सुख-समृद्धि आती है और भगवान शिव (Lord Shiva) की विशेष कृपादृष्टि भक्तों पर पड़ती है. पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि आज 11 अक्टूबर को है जिस चलते आज ही प्रदोष व्रत रखा जा रहा है. प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है और साथ ही माता पार्वती का भी पूजन होता है. जानिए इस दिन पूजा में कौन-कौनसी सामग्री को सम्मिलित किया जाता है और किस तरह से होती है प्रदोष व्रत की पूजा. 

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प्रदोष व्रत की पूजा | Pradosh Vrat Puja 

प्रदोष व्रत के दिन सुबह के समय निवृत्त होकर स्नान किया जाता है. स्नान के पश्चात भक्त स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और व्रत का संकल्प लेते हैं. इसके बाद सुबह के समय भक्त शिव मंदिर जाते हैं. प्रदोष व्रत की असल पूजा रात के समय होती है. 
इस व्रत की पूजा आज रात प्रदोष काल में की जा सकती है. प्रदोष काल शाम 5 बजकर 56 मिनट से रात 8 बजकर 25 मिनट तक रहेगा. इस बीच पूजा करना अति-उत्तम माना जाता है. प्रदोष व्रत की पूजा सामग्री (Puja Samagri) में आक के फूल, बेलपत्र, धूप, दीप, रोली, मिठाई, पुष्प, अक्षत और पंचामृत को सम्मिलित किया जाता है.

प्रदोष व्रत में शिव आरती

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे। सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालनकारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

लक्ष्मी, सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥
ओम जय शिव ओंकारा॥

त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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