जानिए प्रेमानंद महाराज से नहाते समय शरीर के क‍िस अंग पर डालें सबसे पहले पानी? क्या कहता है शास्त्र

नहाने की विधि न केवल धार्मिक मान्यताओं को सिद्ध करती है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी फायदेमंद है. यह न केवल शरीर की सफाई और मानसिक ताजगी का माध्यम है, बल्कि शारीरिक ऊर्जा को संतुलित रखने में सहायक है.

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यह ब्रम्हा मुहूर्त में अर्थात सूर्योदय से ठीक पहले के समय में किया जाता है.

Bathing Astro Tips : नहाना हमारे जीवन में डेली रूटीन का एक जरूरी हिस्सा है. यह केवल हमारे शरीर को साफ-सुथरा करने का माध्यम नहीं है, बल्कि मानसिक ताजगी का भी स्त्रोत है. सुबह उठकर नित्यकर्म के बाद नहाना एक ऐसी आदत है जिससे हमारे दिन की शुरुआत होती है. खासकर ठंड के मौसम (Scriptures bathing rules) में लोग गर्म पानी से नहाना चाहते हैं. लेकिन कुछ लोग ठंडे पानी से नहाने की चाह रखते हैं, भले ही तापमान कितना भी कम हो. प्राचीन धार्मिक (Bathing Specific Rules) ग्रंथों और शास्त्रीय पद्धतियों में नहाने के भी विशेष नियमों के बारे में बताया गया है. इनमें से एक जरूरी सवाल यह है कि नहाते समय शरीर के किस अंग (Premanand Maharaj Tips) पर सबसे पहले पानी डालना चाहिए. नहाने की विधि न केवल धार्मिक मान्यताओं को सिद्ध करती है, बल्कि वैज्ञानिक रूप से भी फायदेमंद है. यह न केवल शरीर की सफाई और मानसिक ताजगी का माध्यम है, बल्कि शारीरिक ऊर्जा को संतुलित रखने में सहायक है.

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प्रेमानंद महाराज के अनुसार, स्नान के दौरान ठंडे पानी का उपयोग करना अत्यंत लाभकारी होता है. ठंडे पानी का नियमित इस्तेमाल शरीर को अनगिनत लाभ देता है और इसे हमारी दिनचर्या में जरूरी शामिल किया जाना चाहिए.

नहाने के समय सबसे पहले पानी शरीर के किस अंग पर डालें - On which part of the body do you pour water first while taking a bath?

प्रेमानंद महाराज का कहना है कि जब हम स्नान करने जाएं, तो जल सबसे पहले नाभि पर डालना चाहिए. इसके पीछे एक शास्त्रीय पद्धति है जिसे विशेषकर ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले लोगों के लिए जरूरी माना जाता है. नाभि से स्नान करने से शरीर में ऊर्जा का संतुलन बना रहता है और पॉजिटिव प्रभाव पड़ता है.

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उन्होंने स्नान के दौरान साबुन या सोडा का उपयोग न करने की भी सलाह दी है. ऐसा इसलिए क्योंकि ये प्रोडक्ट फैक्ट्री में बनते हैं और इसमें रासायनिक तत्व होते हैं, जो स्किन को नुकसान पहुंचा सकते हैं. सामान्यतः, हमारे शरीर पर मैल तब जमता है जब हम तेल का उपयोग करते हैं. तेल पर गंदगी आसानी से चिपक जाती है, जो स्नान के दौरान साफ नहीं हो पाती.

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मिट्टी का इस्तेमाल फायदेमंद - Use of soil is beneficial for body

इस समस्या के समाधान के लिए महाराज मिट्टी का उपयोग करने की सलाह देते हैं. मिट्टी लगाना एक प्राकृतिक प्रक्रियाओं का हिस्सा है और यह शरीर से मैल को पूरी तरह से हटा सकता है. इसके अलावा, मिट्टी स्किन को शुद्ध करती है और स्किन संबंधी समस्याओं से भी छुटकारा दिलाती है. इसलिए, अगली बार जब आप स्नान करें, तो इन सुझावों का पालन करें और खुद फर्क का अनुभव करें.

प्रेमानंद महाराज का मानना है कि ब्रह्मचर्य केवल शारीरिक संयम नहीं है, बल्कि यह विचारों और आचरण में शुद्धता का प्रतीक है. प्रेमानंद महाराज के अनुसार, इस पवित्र पथ पर चलते हुए साधकों को न केवल अपनी जीवनशैली में अनुशासन का पालन करना चाहिए, बल्कि अपनी व्यक्तिगत देखभाल की आदतों में भी सावधानी बरतनी चाहिए.

उनके उपदेश के अनुसार, शरीर की साफ सफाई में नेचुरल प्रोडक्ट्स का उपयोग करना ज्यादा सही है. वे कहते हैं कि रीठा और अन्य प्राकृतिक तत्वों का उपयोग बालों की सफाई के लिए किया जा सकता है. उनका मानना है कि महकते हुए साबुन या केमिकल युक्त प्रोडक्ट्स का उपयोग करने से व्यक्ति में राग की भावना उत्पन्न हो सकती है, जो ब्रह्मचर्य के मार्ग में बाधक होती है.

प्रेमानंद महाराज का यह भी कहना है कि स्किन की सफाई के लिए तेल का उपयोग न करना अधिक श्रेयस्कर है. उनके अनुसार, जब व्यक्ति ब्रह्मचर्य के मार्ग पर होता है, तो शरीर की देखभाल के लिए तेल की आवश्यकता नहीं होती. वे ठंडे पानी से स्नान करने की सलाह देते हैं, जिसे वह ब्रह्मचरियों के लिए अत्यधिक लाभकारी मानते हैं.

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कितने तरह के होते हैं स्नान (How many types of baths)

शास्त्रों में स्नान का विशेष महत्व दिया गया है और इसे चार तरह से बांटा गया है. पहला प्रकार है ऋषि स्नान. यह स्नान सूर्योदय से पहले, तारों की छांव में किया जाता है. इस स्नान का महत्व यह है कि यह व्यक्ति को ऋषि-मुनियों की तरह संयमित और तपस्वी जीवन जीने का बोध कराता है.

ब्रह्म स्नान- यह ब्रम्हा मुहूर्त में अर्थात सूर्योदय से ठीक पहले के समय में किया जाता है.

देव स्नान- तीर्थ नदियों के आह्वान मंत्रों के साथ इस स्नान को किया जाता है. इस प्रक्रिया में जल को पवित्र माना जाता है, जो व्यक्ति के पापों का नाश करता है और उसे देवतुल्य पवित्रता देता है.

अंतिम स्नान है दानव स्नान-  यह स्नान सूर्योदय और भोजन के बाद किया जाता है. इसे आलस्य और अज्ञानता का प्रतीक माना जाता है, जो मनुष्य में नकारात्मकता बढ़ाता है.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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