आशा दशमी किस दिन मनाई जाएगी, यह व्रत कौन सी देवी को है समर्पित, क्या है महत्व और कथा

आशा दशमी व्रत चंद्र कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है. इस साल यह दशमी 5 जुलाई को मनाई जाएगी.

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यह पूजा व्रत शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है. 

Asha dashmi 2025 : "आशा" शब्द का अर्थ है आशा या इच्छा, और "दशमी" चंद्र पखवाड़े के दसवें दिन को दर्शाता है. यानी आशा दशमी व्रत आपकी इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति का एक दिन है. यह व्रत देवी पार्वती की पूजा अर्चना के लिए है समर्पित है, जो शक्ति, भक्ति और वैवाहिक सद्भाव का प्रतीक हैं. आपको बता दें कि आशा दशमी विशेष रूप से उत्तर भारत में मनाया जाता है. ऐसे में आइए जानते हैं इस साल आशा दशमी कब है, महत्व क्या है और इसकी कथा. 

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कब है आशा दशमी तिथि 2025

आशा दशमी व्रत चंद्र कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह में शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है. इस साल यह दशमी 5 जुलाई को मनाई जाएगी. एक बात का ध्यान में रखें कि कुछ जगहों पर इसे कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भी मनाई जाती है. इसे गिरिजा पूजा के रूप में भी जाना जाता है. 

आशा दशमी महत्व

यह पूजा व्रत शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है. ऐसी मान्यता है इससे आपकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. 

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आशा दशमी कथा

प्राचीन काल में निषध देश में नल नाम के राजा राज्य करते थे. उनके भाई पुष्कर ने जुआ में जब उन्हें पराजित कर दिया, तब नल अपनी भार्या दमयंती के साथ राज्य से बाहर चले गए. वे प्रतिदिन एक वन से दूसरे वन भ्रमण करते रहते थे और केवल जल ग्रहण करके अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे. वह जन शून्य वनों में घूमते रहते थे.

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एक बार राजा ने वन में भ्रमण करते हुए सोने की चमक वाले पक्षियों को देखा. उन्हें पकड़ने की इच्छा से राजा ने उनके ऊपर एक कपड़ा फेंका, लेकिन सभी पक्षी कपड़े को लेकर आकाश में उड़ गए. इससे राजा बड़े निराश हो गए और दमयंती को नींद में छोड़कर वहां से चले गए.

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जब दमयंती नीद से उठी, तो उसने देखा कि राजा नल वहां नहीं हैं. राजा को वहां न पाकर वह जोर-जोर से रोने लगी. वह विलाप करती हुई राज नल को ढूंढती हुई इधर-उधर भटकने लगी. इसी प्रकार कई दिन बीत गए और भटकते हुए वह चेदी देश में पहुंची. जहां वहां फिर से जोर-जोर से रोने लगी. ऐसे में वहां के छोटे-छोटे बच्चे उसे इस अवस्था में आशचर्य से घेरे रहते थे.

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एक बार कई लोगों में घिरी हुई दमयंती को चेदी देश की राजमाता ने देखा. उस समय दमयंती चंद्रमा की रेखा के समान भूमि पर पड़ी हुई थी. जिसके बाद राजमाता ने उसे अपने राजमहल में बुलाया और पूछा- तुम कौन हो? इस पर दमयंती ने शर्मिंदा होते हुए कहा- मैं विवाहित स्त्री हूं. मैं न किसी के चरण धोती हूं और न किसी का जूठा भोजन करती हूं. यहां रहते हुए कोई मुझे प्राप्त करेगा तो वह आपके द्वारा दंडनीय होगा. देवी, इसी प्रतिज्ञा के साथ मैं यहां रह सकती हूं.

राजमाता ने कहा, ठीक है. तब दमयंती ने वहां रहना स्वीकार किया. इसी प्रकार कुछ समय बीता,फिर एक ब्राह्मण दमयंती को उसके माता-पिता के घर ले आया लेकिन माता-पिता तथा भाइयों का भरपूर स्नेह पाने पर भी पति के बिना वह बहुत दुःखी रहती थी.

एक बार दमयंती ने एक श्रेष्ठ ब्राह्मण को बुलाकर उससे पूछा- ‘हे ब्राह्मण देवता! आप कोई ऐसा दान एवं व्रत बताएं जिससे मेरे पति मुझे मिल जाएं. इस पर उस ब्राह्मण ने आशा दशमी व्रत करने की सलाह दी. तब दमयंती ने ‘आशा दशमी' व्रत का अनुष्ठान किया और इस व्रत के प्रभाव से दमयंती ने अपने पति को पुन: प्राप्त कर लिया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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