जानिए कहां है एकादशमुखी हनुमान जी का ये मंदिर, जहां होती है हर मनोकामना पूरी!

माना जाता है कि हनुमान जी की पूजा से हर तरह का संकट दूर हो जाते हैं. देवता भी संकट से उबारने के लिए हनुमान जी का वंदन करते रहे हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, एक असुर का संहार करने के लिए हनुमान जी को ग्यारह मुखी रूप रखना पड़ा था. आइए आपको बताते हैं एकादशमुखी अवतार का ये मंदिर कहां स्थित है.

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यहां स्थित है हनुमान जी के एकादशमुखी अवतार का ये मंदिर, दर्शन के लिए दूर-दूर से आते हैं लोग
नई दिल्ली:

भगवान पवनपुत्र हनुमान हिंदू धर्म में पूजे जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक हैं. कलयुग के प्रमुख देवों में से एक बजरंगबली को चिरंजवी माना जाता है. हनुमान जी का जन्म हिन्दू पंचांग के चैत्र माह की पूर्णिमा पर चित्रा नक्षत्र और मंगलवार को मेष लग्न में हुआ था. हनुमान जी की माता अंजनी और पिता का नाम केसरी था, इसलिए इन्हें अंजनी पुत्र और केसरी नंदन भी कहा जाता है. वहीं कुछ ग्रंथों में इन्हें वायुपुत्र भी कहा गया है. मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त मंगलवार के दिन विधिवत रूप से भगवान हनुमान की पूजा करता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, सिर्फ मनुष्य ही नहीं, बल्कि देवता भी संकट से उबारने के लिए हनुमान जी का वंदन करते रहे हैं. ऐसी ही एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवताओं की मदद के लिए और सभी लोकों में हाहाकार मचा रहे दुष्ट असुर का संहार करने के लिए पवनपुत्र हनुमान जी को ग्यारह मुखी (Gyarahmukhi) रूप रखना पड़ा था. आइए आपको बताते हैं हनुमान जी के एकादशमुखी अवतार का ये मंदिर कहां स्थित है.

मंगलवार का दिन हनुमान जी को समर्पित है. मंगलवार के दिन हनुमान जी का विधि-विधान से पूजन करना शुभ और उत्तम माना गया है. वहीं हनुमान जी को भगवान श्री राम के परम भक्त के रूप में जाना जाता है, इसलिए इन्हें भक्त हनुमान भी कहा जाता है. हनुमान जी हिंदू महाकाव्य रामायण के केंद्र पात्रों में प्रमुख है. माना जाता है कि हनुमान जी अष्टचिरंजीवियों में से भी एक हैं. भगवान हनुमान जी को बल और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है. माना जाता है कि हनुमान जी की पूजा से हर तरह का संकट दूर हो जाते हैं, इसलिए इन्हें संकट मोचन भी कहा गया है.

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आज हम आपको भगवान बजरंग बली के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो देश का एक मात्र ग्यारह मुखी हनुमान मंदिर है. बताया जाता है कि ये देश का बड़ा ही अद्भुत एकादशमुखी यानि 11 मुखी हनुमान मंदिर है. यह मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के देहरादून में स्थित है. देहरादून शहर से जामुनवाला स्थित उत्तराखंड का एकमात्र 11 मुखी हनुमान मंदिर श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है. इस मंदिर के पीछे कई कथा प्रचलित हैं.

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पहली कथा

एक समय रावण ने महामृत्युंजय का जाप कर भगवान शिव को प्रसन्न किया था, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को मनचाहा वरदान मांगने को कहा, इस पर रावण ने भगवान शिव से दस मुख से परिपूर्ण शक्ति का वरदान प्राप्त किया. भगवान शिव के इस वरदान का रावण ने गलत इस्तेमाल किया, जिसके चलते भगवान शिव ने हनुमान के रूप (11 वें रुद्रअवतार के रूप) में जन्म लिया. इसके साथ ही मां जानकी से अजर अमर अविनाशी होने का भी वरदान प्राप्त किया.

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वहीं जब लक्ष्मण जी को मेघनाथ से युद्ध करते समय मूर्छा आयी थी, तब सुषेन वैद्य की सलाह पर संजीवनी लेने हनुमान उत्तराखंड की पर्वत श्रृंखला के द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी लेने आये थे. कहते हैं कि जब हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने यहां आये तो कुछ पल के लिए जोशीमठ के ठीक ऊपर औली शिखर पर रुके थे.

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दूसरी कथा

पवनपुत्र हनुमान जी के ग्यारहमुखी रूप लेने के पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है. बताया जाता है कि प्राचीन काल में ग्यारह मुख वाला एक शक्तिशाली राक्षस हुआ करता था, जिसका नाम  कालकारमुख था. उसने एक समय भगवान ब्रह्मा जी को अपने कठोर तप से प्रसन्न कर मनचाहा वरदान मांग लिया था. उसने कहा था, आप मुझे कुछ ऐसा वर दीजिए की जो भी मेरी जन्मतिथि पर ग्यारह मुख धारण करे, वही मेरा अंत करने में सक्षम हो. ब्रह्मा जी ने भी कालकारमुख को ये वरदान दे दिया. इस दौरान कालकारमुख ने सभी लोकों में आतंक मचा रखा था. उसके आतंक से परेशान सभी देवों ने श्री हरि विष्णु के कहने पर भगवान श्री राम से इस मुश्किल घड़ी से सभी को निकालने की विनती की. इस पर श्री राम ने देवताओं से कहा कि इस संकट से आपको सिर्फ हनुमान जी ही निकाल सकते हैं.

कथा के अनुसार, प्रभु श्री राम की आज्ञा से हनु्मान जी ने चैत्र पूर्णिमा के दिन 11 मुखी रुप ग्रहण किया, जो राक्षस कालकारमुख की जन्मतिथि थी. जब असुर कालकारसुर को इसका पता चला तो वह हनुमान जी का वध करने के लिए सेना के साथ निकल पड़ा. कालकारमुख की इस हरकत को देखकर हनुमान जी क्रोधित हो गए और उन्होंने क्षणभर में ही उसकी सेना को नष्ट कर दिया. फिर हनुमान जी ने कालकारमुख की गर्दन पकड़ी और उसे बड़ी वेग से आकाश में ले गए, जहां उन्होंने कालकारसुर का वध कर दिया.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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