Pakistan Crisis: अफगान सीमा पर पश्तून परेशान, बलूचिस्तान भी कर रहा पाक सेना का विरोध... पाक का सिरदर्द बना Tehrik-i-Taliban

एक ताजा वारदात में पाकिस्तान की सेना ने दावा किया है कि उसने बलूचिस्तान में दो अलग अलग घटनाओं में 10 बलूच लड़ाकों को मार गिराया है. तीन लड़ाके तुर्बत इलाके में एक ऑपरेशन में मारे गए. ज़ियारत ज़िले में भी सात लड़ाकों को मार गिराया गया.

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नई दिल्ली:

इतिहास गवाह है कि कई रोमन शासकों ने अपने अंदरूनी संकटों, गृहयुद्ध और भुखमरी जैसे मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने और इसी बहाने उन्हें अपने पीछे खड़ा करने के लिए युद्धों का सहारा लिया. देश संकट में है, ये डर फैला कर नागरिकों से जुड़े तमाम जरूरी मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया और ये रणनीति दुनिया में तमाम और शासक और सरकारें भी अपनाती रही हैं. युद्ध देश के जरूरी अंदरूनी मसलों से जनता का ध्यान भटकाने की रणनीति का हिस्सा बने रहे हैं. हम आज ये बात इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पाकिस्तान भी इसी राह पर चल रहा है. अपने अस्तित्व के सबसे बड़े संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के अलग-अलग इलाकों में बुनियादी सुविधाओं और नागरिक अधिकारों के लिए लोग आक्रोश में हैं, कई जगह गृह युद्ध जैसे हालात हैं और पाकिस्तान इस सबसे ध्यान भटकाने के लिए पड़ोसी देश भारत के साथ युद्ध को हवा दे चुका है. पहलगाम आतंकी हमले में 26 सैलानियों की हत्या पाकिस्तान सरकार और सेना की इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है.

नाम पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार का है लेकिन असली काम वहां के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर का है. हर कोई जानता है कि पाकिस्तान की नागरिक सरकारें हमेशा से वहां की सेना की कठपुतली रही हैं. मौजूदा सरकार भी सेना के रहमोकरम पर चल रही है. पाकिस्तान के आम चुनावों में धांधली से लेकर जेल में बंद पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं पर जुल्मो सितम तक, सब सेना के इशारे पर हो रहा है. सेना के इशारे पर ही पाकिस्तान सरकार की नीतियां तय होती हैं और नतीजा सामने है पाकिस्तान के अलग अलग इलाके गृह युद्ध, नागरिकों के आक्रोश, आए दिन सेना के दमन और आतंकवाद से जूझ रहे हैं. पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गहरे संकट से गुजर रही है. सामाजिक-राजनीतिक तौर पर अस्थिरता खत्म नहीं हो रही है. कई जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर पाकिस्तान को अस्थिरता के एक नए दौर में धकेल चुके हैं.

बलूचिस्तान, ख़ैबर पख्तून ख़्वाह और पाकिस्तान के कब्जे वाले गिलगित बाल्टिस्तान में लगातार हथियारबंद विद्रोह जारी हैं, इन सभी इलाकों में सेना की सख्ती के खिलाफ नाराजगी रोज बढ़ती जा रही है. सीधे शब्दों में कहा जाए तो 1971 के बाद से पाकिस्तान अपने अस्तित्व के सबसे भयानक दौर से गुजर रहा है. पाकिस्तान के अस्तित्व पर इसी संकट पर हम करेंगे सिलसिलेवार बात कर रहे हैं. सबसे पहले बात बलूचिस्तान की जिसकी राजधानी क्वेटा है और जो आजादी और नागरिक अधिकारों की मांगों को लेकर लगातार सुलग रहा है...

एक ताजा वारदात में पाकिस्तान की सेना ने दावा किया है कि उसने बलूचिस्तान में दो अलग अलग घटनाओं में 10 बलूच लड़ाकों को मार गिराया है. तीन लड़ाके तुर्बत इलाके में एक ऑपरेशन में मारे गए. ज़ियारत ज़िले में भी सात लड़ाकों को मार गिराया गया. इसी समय बलूच लिब्रेशन आर्मी के साथ झड़प के दौरान पाकिस्तान की सेना का एक जवान भी मारा गया. पाकिस्तान के नेता फवाद हुसैन ने ट्वीट पर ये जानकारी दी और बलूचिस्तान के लोगों को पाकिस्तान का दुश्मन बताया. ये तो पिछले एक-दो दिन की वारदात हैं लेकिन बलूचिस्तान में सेना के साथ हथियारबंद लड़ाकों की झड़प रोज की ही बात है.

इस पर आगे बढ़ने से पहले आपको बता दें कि अफगानिस्तान और ईरान की सीमा से लगा बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है. पाकिस्तान के पूरे क्षेत्रफल का 44 फीसदी अकेले बलूचिस्तान का है और पाकिस्तान की आबादी का महज छह फीसदी ही इतने बड़े इलाके में बसता है. बलूचिस्तान कुदरती संसाधनों से भरपूर इलाका है और यही इसकी मुसीबत की सबसे बड़ी वजह है. बलूचिस्तान की 1100 किलोमीटर सीमा समुद्र से लगती है जो समुद्री संसाधनों और व्यापार के लिहाज से काफी अहम है.

इसके बावजूद बलूचिस्तान तबसे ही जल रहा है जबसे पाकिस्तान ने जबरन उसका अपने में विलय किया. बलूच एक अलग राष्ट्रीयता वाले लोग हैं और एक आजाद देश की मांग को लेकर लगातार लड़ रहे हैं और इस क्रम में पाकिस्तान की सेना के दमन का शिकार बन रहे हैं. उनका आरोप है कि पाकिस्तान उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहा है और बदले में बलूच लोगों को उनका हक देने के बजाय उनके मौलिक अधिकारों का भी हनन कर रहा है. बलूचों की आजादी और तमाम नागरिक अधिकारों की मांग को लेकर कई संगठन शांतिपूर्ण तो कई हथियारबंद आंदोलन कर रहे हैं और पाकिस्तान की सेना बलूचों के अधिकारों को देने के बजाय उनके दमन पर उतरी हुई है. बीते कई साल में हजारों बलूच लोग लापता भी हुए हैं. एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011 से अब तक 10 हजार से ज्यादा बलोच लोग लापता हो चुके हैं. बलोच लोग मानते हैं कि वो या तो पाकिस्तान के सुरक्षा बलों की कैद में हैं या उन्हें मार दिया गया है. Human Rights Council of Balochistan के मुताबिक इस साल फरवरी के महीने में ही 144 लोग लापता हुए या अगवा किए गए और 46 लोगों को सरेआम मार दिया गया. 29 अप्रैल को संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने बलूचिस्तान में पाकिस्तान के दमन पर सवाल उठाए और उसे अंतरराष्ट्रीय कानून का सम्मान करने की नसीहत दी. बलूचिस्तान के लोगों के साथ सलूक के मामले में पाकिस्तान से जवाबदेही और पारदर्शिता दिखाने की अपील की गई. 

इस सबसे नाराज एक संगठन बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी यानी BLA बीते ढाई दशक से पाकिस्तान के सैनिक और नागरिक ठिकानों को लगातार निशाना बनाता रहा है. इसी साल 11 मार्च को BLA ने क्वेटा से पेशावर जा रही एक ट्रेन जाफर एक्सप्रेस को अगवा कर लिया था और करीब साढ़े तीन सौ लोगों को बंधक बना लिया था. इसके बाद बलूच लिब्रेशन आर्मी के खिलाफ पाकिस्तान की सेना की कार्रवाई हुई. पाकिस्तानी सेना के मुताबिक 18 पाक सैनिकों, 33 बीएलएल के लड़ाकों समेत कुल 64 लोग मारे गए थे जबकि इसके उलट बीएलए ने दावा किया कि दो सौ से ज्यादा बंधकों के साथ सेना के 50 लोग मारे गए. तथ्य जो भी हो ये साफ है कि बलूचिस्तान में पाक सेना का दमन पलटकर उसे ही निशाना बना रहा है.

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पिछले ही साल 26 अगस्त को बीएलए ने आज तक का सबसे बड़ा हमला किया था. दक्षिण पश्चिम बलूचिस्तान में बीएलए ने एक साथ कई हमले किए और दावा किया कि उसकी मजीद ब्रिगेड ने 102 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया है. इन हमलों में पाकिस्तानी सेना के कई कैंपों, कई पुलिस थानों, रेलवे लाइनों और हाइवे को निशाना बनाया गया था. बीएलए ने इसे ऑपरेशन हीरोफ यानी ब्लैक स्टॉर्म बताया था. बीएलए के अलावा बलूचिस्तान की आजादी के लिए लड़ने वाला एक और हथियारबंद संगठन है बलूचिस्तान लिब्रेशन फ्रंट यानी बीएलएफ. इसके अलावा वहां दो और संगठन हैं फ्री बलूचिस्तान मूवमेंट और बलूच रिपब्लिकन पार्टी जिनकी अगुवाई मरी और बुगती परिवारों के वंशज करते हैं. मरी और बुगती कबीलों पर भी पाकिस्तान की सेना ने भारी अत्याचार किए हैं लेकिन ये संगठन पाकिस्तान के ख़िलाफ़ हथियारबंद विद्रोह नहीं करते लेकिन अपनी मांगों को उठाने के लिए लगातार आंदोलन करते हैं.

कई जानकार मानते हैं कि बलूचिस्तान में पाकिस्तान का दमन चक्र 1971 में पूर्वी पाकिस्तान जो आजाद बांग्लादेश बना उसी की तर्ज पर चल रहा है. तब भी पूर्वी पाकिस्तान के लोगों और नेताओं की शिकायतों का हल करने के बजाय सेना द्वारा उनका दमन किया गया जिसके नतीजे के तौर पर तत्कालीन पाकिस्तान में सत्तारूढ़ नेताओं और जनरलों के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान में आंदोलन तेज हुआ, लोग एकजुट हुए और आजादी हासिल कर ली. बलूचिस्तान इस समय पाकिस्तान की सबसे दुखती रग है लेकिन अपनी करनी के चलते पाकिस्तान का दर्द इससे भी आगे जाता है. पाकिस्तान का एक सूबा है ख़ैबर पख्तून ख़्वाह जिसकी राजधानी पेशावर है.

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अफगानिस्तान की सीमा से लगा ख़ैबर पख़्तूनख़्वा प्रांत भी सुलग रहा है. इस इलाके में पाकिस्तान की सेना अलगाववादियों और आतंकियों के खिलाफ लगातार ऑपरेशन करती रही है. खासतौर पर अफगानिस्तान सीमा से लगे इलाकों में. इन इलाकों में कई आतंकी संगठनों का एक समूह तहरीके तालिबान पाकिस्तान यानी TTP लगातार पाकिस्तान के खिलाफ हथियारबंद आंदोलन छेड़े हुए है. TTP पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तून ख़्वाह प्रांत और 2018 में उसमें शामिल किए गए फाटा इलाके में पश्तून बहुल इलाकों से पाकिस्तान का कब्जा हटाना चाहता है, वहां शरिया आधारित शासन चाहता है. विचारधारा के लिहाज से TTP अफगान तालिबान के करीब है जो अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज है. पाकिस्तान की शिकायत है कि तालिबान की शह पर ही TTP पाकिस्तान में आतंकी हमलों को अंजाम दे रहा है. आए दिन TTP के हमलों में सैकड़ों पाक सैनिकों के अलावा हजारों आम लोग भी मारे जा चुके हैं.

TTP के हमलों और आत्मघाती धमाकों से पाकिस्तान के अंदरूनी इलाके भी नहीं बचे हैं. दिसंबर 2014 में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल में तहरीके तालिबान पाकिस्तान का भयानक हमला कोई भी नहीं भूला होगा जब डेढ़ सौ लोग मारे गए थे जिनमें अधिकतर स्कूली बच्चे थे. पाकिस्तान के इतिहास में इस सबसे भयानक आतंकी हमले ने पूरी दुनिया को दहला दिया था. उसके बाद से TTP पर पाकिस्तान की कार्रवाई और तेज हो गई, जवाब में TTP के हमले भी. ये इलाका पश्तून बहुल है और आम पश्तून लोग दोनों ओर से पिस रहे हैं.

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पश्तून लोग अपने इलाकों में अमन चैन चाहते हैं और पाकिस्तान सेना की लगातार होने वाली कार्रवाई को रोकने के लिए रैलियां निकालते रहे हैं. अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान की नीति से भी पश्तून लोग सहमत नहीं हैं. वो कहते हैं कि हमारे इलाके में तालिबान के लिए कोई जगह नहीं है तो पाकिस्तान की सेना की हिंसा के लिए भी कोई जगह नहीं है. इस दिशा में एक मानवाधिकार कार्यकर्ता मंज़ूर पश्तीन के नेतृत्व में पश्तून तहाफ़ुज़ मूवमेंट शुरू हुआ. सेना के अत्याचारों का विरोध, सीमांत इलाकों में बिछी बारूदी सुरंगों को हटाने, लापता लोगों का पता लगाने और स्थानीय संसाधनों पर हक जैसे नागरिक अधिकारों की मांग के साथ पश्तून तहाफ़ुज़ मूवमेंट एक शांतिपूर्ण आंदोलन के तौर पर शुरू हुआ लेकिन इस संगठन को भी लगातार फौजी दमन झेलना पड़ा है. पाकिस्तान की सेना और सरकार के इस रवैये ने पश्तून युवाओं का सरकार से मोहभंग कर दिया है और अब वो अपनी पहचान के लिए लड़ रहे हैं. एक अलग देश की मांग भी कर रहे हैं. 

पाकिस्तान की एक और दुखती रग है गिलगित-बाल्टिस्तान, हमारे कश्मीर का वो इलाका जिस पर पाकिस्तान ने कब्जा किया हुआ है. पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तान की सेना द्वारा किए जा रहे अन्याय के खिलाफ यहां के लोग आए दिन आंदोलन करते रहे हैं. पाकिस्तान की सेना पर गिलगित बाल्टिस्तान की जमीनों और वहां के खनिजों को लूटने का आरोप लगता है. इसके खिलाफ वहां की जनता बीते रविवार को भी विरोध प्रदर्शन पर उतरी. यहां के शिगार जिले में पाकिस्तान की सेना और सरकार के खिलाफ आंदोलन किया गया. प्रदर्शनकारियों ने कहा कि प्रस्तावित खनन और खनिज कानून से उनकी जमीनों, पहाड़ों और खनिजों पर स्थानीय लोगों की इजाजत के बिना कब्जा किया जा रहा है. प्रदर्शन के दौरान, कब्जे पर कब्जा नामंजूर जैसे नारे गूंजते रहे. लोगों की शिकायत है कि प्रस्तावित कानून के पास होने से इस खूबसूरत इलाके में खनन बहुत तेज हो जाएगा, स्थानीय लोगों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी और इलाके की कुदरती संपदा को छीन लिया जाएगा.

प्रदर्शन के दौरान कहा गया कि अगर पाकिस्तान अपने कर्जे चुकाना चाहता है, अमीर बनना चाहता है, हमारे खनिज चाहता है तो उसे यहां के हर बच्चे से इजाजत मांगनी होगी. हम पाकिस्तान को ख़ैरात दे देंगे अगर उसे जरूरत है लेकिन अगर वो जबरन हमारी जमीन पर कब्जे करने आएगा तो खुदा की कसम हम इनही पहाड़ों पर उनकी कब्र खोद देंगे. ये बताता है कि गिलगित बाल्टिस्तान की जनता किस कदर पाकिस्तान से नाराज है. इसके पीछे एक बड़ी वजह ये है कि बुनियादी सुविधाओं खासतौर पर बिजली के मामले में पाकिस्तान की सरकार ने इस इलाके के लोगों के साथ बहुत अन्याय किया है. गिलगित बाल्टिस्तान से होकर China-Pakistan Economic Corridor गुजरता है जो बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक जाता है. इस वजह से भी इस इलाके में पाकिस्तान की काफी फौज तैनात है जो स्थानीय लोगों को रास नहीं आती.

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उधर पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के मुजफ्फराबाद, मीरपुर और रावलकोट में भी आए दिन पाकिस्तान की सरकार के खिलाफ आंदोलन होते रहे हैं. मौलिक सुविधाओं के अभाव और आजादी की मांग को लेकर यहां के लोग सड़कों पर उतरते रहे हैं. उनकी शिकायत रही है कि पाकिस्तान की सरकार उनके इलाकों के साथ भेदभाव करती रही है. वहां के संसाधनों का इस्तेमाल करती है लेकिन लोगों को आर्थिक तरक्की के मौके मुहैया नहीं कराए जाते. यहां तक कि बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए भी लोगों को तरसना पड़ता है. आवाज उठाने पर यहां के हजारों लोगों को सेना और पुलिस की ज्यादती झेलनी पड़ती है. यहां भी सैकड़ों परिवार ऐसे हैं जिनके अपने लापता हो गए, अगवा कर लिए गए या मुठभेड़ों में मार दिए गए लेकिन उनकी शिकायत सुनने वाला कोई नहीं है. कुदरती तौर पर बेहद खूबसूरत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का ये इलाका पाकिस्तान के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक रहा है. मानवाधिकार संगठनों ने अक्सर यहां के लोगों पर पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के जुल्म का मुद्दा उठाया है.

भारी महंगाई और कर्ज के संकट से जूझ रहे पाकिस्तान के कई इलाकों में लोगों के रोष की और भी वजहे हैं. पाकिस्तान का एक बड़ा इलाका सूखे की चपेट में रहा है और पाकिस्तान मौसम विभाग के मुताबिक आने वाले दिनों में सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान के कई इलाकों में सूखा पड़ने के आसार हैं. इस सबके बीच भारत द्वारा सिंधु नदी समझौता स्थगित करना पाकिस्तान के लिए नई मुसीबत बन सकता है. यही नहीं पानी को लेकर पाकिस्तान के सिंध प्रांत की शिकायत रही है कि पंजाब प्रांत उसके साथ भेदभाव कर रहा है. सिंध के लोगों की इसी शिकायत के चलते पाकिस्तान को सिंधु नहर परियोजना को फिलहाल स्थगित करना पड़ा है जबकि फरवरी में ही इसका एलान किया गया था. इसके बावजूद सिंध के लोगों को पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार की मंशा पर यकीन नहीं है. सिंध के लोगों ने इस परियोजना के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए हैं जिन्हें कुचलने के लिए पुलिस ने हिंसा का सहारा लिया है. सिंध में लोगों ने परियोजना के विरोध में कराची बंदरगाह जाने वाले हाइवे को भी कई दिन बंद रखा जिससे करीब एक लाख ट्रकों के पहिए थम गए. इस परियोजना को सेना का समर्थन हासिल है और सिंध के लोगों को चिंता है कि इससे उनके इलाके में खेती और अन्य जरूरी कामों के लिए पानी की कमी हो जाएगी, सूखा और बढ़ जाएगा. सिंध को पहले से ही ख़ुद को दिए गए पानी से 20% कम पानी मिलता है.

आने वाले दिनों में पाकिस्तान में पानी को लेकर संघर्ष और बढ़ने के आसार हैं. पाकिस्तान के लिए आफ़तें कम नहीं हैं. पहलगाम हमले के बाद भारत की संभावित कार्रवाई से ये और बढ़ने वाली हैं.

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