Explainer: कलादान प्रोजेक्ट उत्तर पूर्वी राज्यों के लिए होगा वरदान, बाइपास हो जाएगा बांग्लादेश?

कलादान प्रोजेक्ट के तहत वाइज़ैग और कोलकाता से सामान को पहले बंगाल की खाड़ी होते हुए जहाज से 539 किलोमीटर दूर म्यांमार के रखाइन राज्य के सित्वे बंदरगाह पर पहुंचाया जाएगा.

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  • भारत सरकार उत्तर पूर्वी राज्यों के आर्थिक विकास के लिए सड़क, रेल और हवाई संपर्क बेहतर बनाने के प्रयास लगातार कर रही है
  • वर्तमान में उत्तर पूर्वी राज्यों तक सामान पहुंचाने का मुख्य मार्ग सिलिगुड़ी कोरिडोर है, जबकि बांग्लादेश मार्ग राजनीतिक कारणों से लगभग बंद है
  • भारत बांग्लादेश को बाईपास करते हुए म्यांमार के सहयोग से कलादान मल्टी मोडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के तहत नया मार्ग विकसित कर रहा है
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नई दिल्ली:

उत्तर पूर्वी राज्यों के आर्थिक विकास के लिए भारत सरकार लगातार कोशिश करती रही है. इसके जरिए उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ सड़क, रेल और हवाई संपर्क बेहतर किया गया है. अगर सड़क और रेल मार्ग की बात करें तो फिलहाल उत्तर पूर्वी राज्यों तक बाकी भारत से साजो सामान पहुंचाने या यात्रा करने का एकमात्र जरिया सिलिगुड़ी कोरिडोर होकर जाता है.

एक और रास्ता बांग्लादेश से होकर जाता है लेकिन शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटाए जाने और मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार बनने के बाद से वो रास्ता लगभग बंद है. मोहम्मद यूनुस सरकार लगातार भारत विरोधी रवैया अपनाए हुए हैं. इसी के मद्देनजर कुछ अर्सा पहले मोहम्मद यूनुस ने अपने चीन के दौरे में भारत के उत्तर पूर्व को लैंडलॉक्ड बता दिया था.

मोहम्मद यूनुस को इस पर भारत की ओर से कूटनीतिक जवाब मिल गया लेकिन इससे भी बेहतर जवाब जल्द ही मिलने वाला है. भारत बांग्लादेश को बाईपास करते हुए एक और रास्ते से अपने उत्तर पूर्वी राज्यों तक पहुंच बनाने जा रहा है जो छोटा भी होगा और कम समय और लागत भी लेगा. कलादान मल्टी मोडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट. जिसमें पड़ोसी देश म्यांमार की बड़ी भूमिका रहेगी. National Highways and Infrastructure Development Corporation Limited (NHIDCL) इस प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है.

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कलादान प्रोजेक्ट के तहत वाइज़ैग और कोलकाता से सामान को पहले बंगाल की खाड़ी होते हुए जहाज से 539 किलोमीटर दूर म्यांमार के रखाइन राज्य के सित्वे बंदरगाह पर पहुंचाया जाएगा. सित्वे बंदरगाह को बनाने का काम पूरा हो चुका है, उसकी क्षमता बढ़ाने में भारत ने काफी निवेश किया है.

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सित्वे से जहाज इस सामान को म्यांमार की कलादान नदी के जरिए 158 किलोमीटर दूर चिन राज्य के पलेत्वा शहर पहुंचाएंगे. पलेत्वा में रिवर टर्मिनल बन चुका है और कलादान नदी को भी 300 टन तक की बड़ी नावों के आवागमन के लिए गहरा करने का काम पूरा हो चुका है.

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पलेत्वा के बाद सड़क मार्ग शुरू होगा. पलेत्वा से 108 किलोमीटर लंबी चार लेन की सड़क भारत-म्यांमार सीमा पर मिजोरम के जोरिनपुरी तक पहुंचेगी. यानी सामान भारत की सीमा तक पहुंच जाएगा. पलेत्वा से मिजोरम के जोरिनपुरी तक सड़क निर्माण का काम पूरा होना बाकी है. आखिरी 50 किलोमीटर यानी कलेत्वा से जोरिनपुरी के हिस्से पर काम पूरा होना बाकी है.

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समस्या ये है कि म्यांमार में राजनीतिक अस्थिरता है. एक बड़े इलाके में गृह युद्ध चल रहा है. म्यांमार का रखाइन राज्य जहां से ये सड़क गुजरती है वो अराकान आर्मी के कब्ज़े में है जिसे अब रखाइन आर्मी कहा जाता है. ख़ास बात ये है कि रखाइन आर्मी भी इस प्रोजेक्ट के पक्ष में है और उसका दावा है कि वो 2021 में हुए तख़्तापलट के बाद से कलादान प्रोजेक्ट को सुरक्षा दे रही है.

ज़ोरिनपुरी से मिज़ोरम की राजधानी आइजॉल और फिर वहां से आगे सड़क के रास्ते सामान पहुंचाया जाएगा. इस सिलसिले में शिलॉन्ग सिलचर हाई स्पीड कोरिडोर को मिज़ोरम के ज़ोरिनपुरी तक बढ़ाने की तैयारी है. इस सबके बीच भारत सरकार का दावा है कि 2027 तक ये प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा जो पहले 2016 में होना था. देरी होने के कारण इस प्रोजेक्ट पर आने वाली लागत 4 हज़ार करोड़ से अधिक होने की संभावना है.

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