Explainer: दुनियाभर के देशों में हैं गाड़ियों के कबाड़खाने, 10 से 15 साल बाद कार स्क्रैपिंग कराना है जरूरी

जर्मनी में हर साल करीब 4.5 लाख गाड़ियों को रिसाइकिल किया जा रहा है. गाड़ियों के कई पुर्जों को रीयूज भी किया जाता है. फ्रांस में भी दस साल से पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप करने और नई गाड़ियों की खरीद पर वित्तीय इंसेंटिव दिए गए.

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  • बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के कारण पुराने वाहनों को हटाने की योजना पर जोर दिया जा रहा
  • दिल्ली सरकार ने 10 साल पुरानी डीजल और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों को हटाने का निर्णय लिया
  • दिल्ली में अक्टूबर 2024 तक 59 लाख पुरानी गाड़ियों को डिरजिस्टर किया गया, लेकिन केवल 140,342 को स्क्रैप किया गया
  • अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस और इंग्लैंड ने भी पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप करने के लिए इंसेंटिव योजनाएं लागू की हैं
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 नई दिल्ली:

बढ़ता प्रदूषण, आबोहवा में बदलाव दुनिया के बढ़ते तापमान के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है और इसमें गाड़ियों से होने वाला प्रदूषण भी अहम भूमिका निभाता है. यही वजह है कि 10 साल से पुरानी डीजल और 15 साल से पुरानी पेट्रोल वाली गाड़ियों को सड़कों से हटाने के लिए दिल्ली सरकार सख्त हो गई है और गाड़ियों को स्क्रैप में बेचने के लिए कई तरह की इंसेंटिव स्कीम भी लेकर आई है. 

Delhi Statistical Handbook 2023 के मुताबिक दिल्ली में अक्टूबर 2024 तक 59 लाख पुरानी पड़ चुकी गाड़ियों को डिरजिस्टर किया गया लेकिन सिर्फ 140,342 को ही स्क्रैप किया जा सका है. वैसे गाड़ियों की स्क्रैपिंग की योजना भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में रही है.

इस दिशा में दुनिया के कई देशों ने सबसे ज्यादा सक्रियता 2008 के बाद दिखाई जब आर्थिक मंदी के बाद उद्योग जगत में जान फूंकने की जरूरत पर जोर दिया गया. ऑटो उद्योग में तेजी लाने और प्रदूषण से निपटने के लिए अमेरिका की सरकार ने एक scrappage policy तैयार की जिसे “cash for clunkers कहा गया. इसमें लोगों को 25 साल तक पुरानी गाड़ियों को कबाड़ में बेचने के लिए 4,500 डॉलर तक देने का प्रस्ताव रखा गया. ये 3 अरब डॉलर का प्रोग्राम था, जिसने करीब 7 लाख गाड़ियों की बिक्री को तेज किया लेकिन ये नीति 2009 में खत्म हो गई. अमेरिका में हर साल 1 करोड़ 20 लाख से 1 करोड़ 15 लाख तक गाड़ी स्क्रैप की जा रही हैं.

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2008 की आर्थिक मंदी के बाद कई यूरोपीय देशों ने भी ऐसी ही स्कीम्स शुरू कीं. जर्मनी की scrappage policy 2009 में लागू हुई. इसका भी मकसद प्रदूषण कम करने के अलावा ऑटो उद्योग में जान फूंकना था. पुरानी गाड़ियों के बदले में नई और बेहतर फ्यूल इफिशिएंट गाड़ी लेने पर इंसेटिव दिए गए. इसके तहत जिन लोगों ने नई और Euro 4 emissions standards वाली गाड़ी ख़रीदने के लिए कम से कम नौ साल पुरानी गाड़ी बेची उन्हें 2,500 यूरो दिए गए. इसे इकोनॉमिक स्टिमुलस पैकेज कहा गया. इस नीति के लिए शुरुआती बजट 1.5 अरब यूरो था, जो इस नीति की लोकप्रियता के कारण 5 अरब यूरो कर दिया गया. इसी वजह से इसका समय भी बढ़ा दिया गया.

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जर्मनी में हर साल करीब 4.5 लाख गाड़ियों को रिसाइकिल किया जा रहा है. गाड़ियों के कई पुर्जों को रीयूज भी किया जाता है. फ्रांस में भी दस साल से पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप करने और नई गाड़ियों की खरीद पर वित्तीय इंसेंटिव दिए गए. 2009 में सुपर बोनस स्कीम चली और उसके बाद कनवर्ज़न बोनस स्कीम चल रही है.

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इसके तहत मई 2020 में मैक्रों सरकार ने 8 अरब यूरो के पैकेज का एलान किया जिसके तहत पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप में देने और इंधन की कम खपत करने वाली नई कारों की खरीद पर सब्सिडी दी गई. स्क्रैप की गई कारों के लिए 5000 यूरो तक दिए जाएंगे. अगर कोई बदले में इलेक्ट्रिक कार खरीदता है तो उसे 7000 यूरो तक सब्सिडी और मिलेगी.

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इस स्कीम के तहत दो लाख कारों को सड़कों से हटाने की योजना थी और स्कीम इतनी लोकप्रिय हुई कि ये लक्ष्य दो महीने में ही हासिल हो गया. फ्रांस में हर साल औसतन 15 लाख पुरानी गाड़ियां कबाड़ में जा रही हैं. इंग्लैंड में एक इंसेंटिव स्कीम बनी जिसमें पुरानी गाड़ियों को कबाड़ में देने और नई बेहतर माइलेज वाली गाड़ियां खरीदने के लिए कार मालिकों को 2000 पाउंड तक दिए गए.

इस स्कीम को इंग्लैंड की सरकार और वहां के कार उद्योग ने मिलकर फंड किया. हाउस ऑफ कॉमन्स का लाइब्रेरी के एक रिकॉर्ड के मुताबिक Vehicle Scrappage Scheme के तहत 4 लाख क्लेम सेटल किए गए. यानी 4 लाख लोगों ने अपनी पुरानी गाड़ियां बेचीं. इंग्लैंड में हर साल औसतन 14 लाख गाड़ियां स्क्रैप हो रही हैं.

चीन में प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों को सड़क से हटाने के लिए इंसेंटिव आधारित नीति के दो दौर चले. 2011 में ऐसी कारों को हटाया गया जो 1995 या उससे पहले रजिस्टर हुई हों. इन्हें स्क्रैप में देने के लिए लोगों को 350 और 2,300 डॉलर दिए गए. 2014 में एक और नीति आई जिसमें येलो लेबल वाली कारों को हटाने का आदेश दिया गया. येलो लेबल कार वो कारें थीं जो चीन में प्रदूषण के मानकों पर खरी नहीं उतर रही थीं.

चीन की सरकार के रिकॉर्ड के मुताबिक ऐसी कारों की संख्या करीब 3,30,000 थी. चीन में 2025 में एक नीति बनी जिसमें जुलाई 2012 से पहले की पेट्रोल कार और जुलाई 2014 से पहले डीजल कार के बदले नई पेट्रोल, डीजल वाली कार ख़रीदने पर 15 हजार युआन की सब्सिडी दी गई और अगर कार इलेक्ट्रिक हो तो सब्सिडी 20 हजार डॉलर कर दी गई. चीन में हर साल 1 करोड़ 10 लाख मीट्रिक टन वजन की पुरानी कारें कबाड़ में जा रही हैं.

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