ज्‍योति-आलोक मौर्य के केस से समझिए-क्या पत्नी से एलिमनी मांग सकता है पति... दूसरे धर्मों में क्‍या प्रावधान हैं?

इस मामले ने एक बार फिर भारतीय न्‍याय संहिता और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत भरण-पोषण के प्रावधानों पर बहस छेड़ दी है. इन प्रावधानों को विस्‍तार से समझने के लिए हमने पटना हाई कोर्ट के अधिवक्‍ता कुमार आंजनेय शानू से बात की. 

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  • इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आलोक मौर्य की गुजारा भत्ता मांग पर पीसीएस अधिकारी पत्‍नी ज्योति मौर्य को नोटिस जारी किया है.
  • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 और 25 के तहत पति भी आर्थिक रूप से कमजोर होने पर पत्नी से गुजारा भत्ता मांग सकता है.
  • ज्योति-आलोक मौर्य मामले का फैसला पति की गुजारा भत्ता मांग पर भारतीय कानून की व्याख्या में महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है.
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नई दिल्‍ली:

उत्तर प्रदेश की बहुचर्चित पीसीएस अधिकारी ज्‍योति मौर्य और उनके पति आलोक मौर्य का मामला (Jyoti Maurya-Alok Maurya Case) तो आपने पढ़ा ही होगा. ज्‍योति मौर्य ने अधिकारी बनने के बाद पति आलोक मौर्य से तलाक की अर्जी डाली, जो मामला कोर्ट में विचाराधीन है. आलोक ने आजमगढ़ की फैमिली कोर्ट में गुजारा भत्ता वाली अर्जी खारिज होने के बाद अब इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. आलोक ने अफसर पत्‍नी से गुजारा भत्ता (Can Husband Claim Alimony) दिलाए जाने की मांग की है. इस अपील पर हाईकोर्ट ने ज्‍योति मौर्य को नोटिस जारी किया है. हाई कोर्ट ने सुनवाई के लिए 8 अगस्‍त की तारीख मुकर्रर की है. इस मामले ने एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल खड़ा कर दिया है? 

सवाल कि क्या तलाक या न्यायिक अलगाव की स्थिति में पति अपनी पत्नी से गुजारा भत्ता (एलिमनी) मांग सकता है? इस मामले ने एक बार फिर भारतीय न्‍याय संहिता और हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत भरण-पोषण के प्रावधानों पर बहस छेड़ दी है. इन प्रावधानों को विस्‍तार से समझने के लिए हमने पटना हाई कोर्ट के अधिवक्‍ता कुमार आंजनेय शानू से बात की. 

क्या कहता है भारतीय कानून?

सेक्शन 125 सीआरपीसी जो कि अब सेक्शन 144 BNSS यानी भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता का सेक्‍शन 144 हो गया है, वो भरण-पोषण (maintenance) से जुड़ी है, जिसके तहत यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी, बच्चों या माता-पिता का पालन-पोषण नहीं कर रहा है, तो कोर्ट उसे ऐसा करने का आदेश दे सकता है.

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इसमें पति को भरण-पोषण का हकदार माना गया है या नहीं, इस पर कोई स्पष्टता नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने यह जरूर स्पष्ट किया है कि बेटी को भी माता-पिता का पालन करना होगा, यानी माता-पिता के मामले में ये धारा जेंडर न्यूट्रल (Gender Neutral Alimony) है. मगर पति-पत्नी के बीच भरण-पोषण के अधिकारों में कोर्ट ने अब तक स्पष्ट रूप से नहीं कहा है कि पति भी पत्नी से गुजारा भत्ता ले सकता है.

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आलोक मौर्य का तर्क और कानूनी स्थिति

आलोक मौर्य ने अपनी याचिका में दलील दी है कि उनकी पत्नी एक प्रशासनिक अधिकारी हैं, जबकि वह एक सामान्य सरकारी कर्मचारी हैं और कई बीमारियों से भी पीड़ित हैं. आलोक की दलील है कि उसकी पत्नी पीसीएस अफसर है, जबकि उसकी आय बेहद कम है. इन आधारों पर उन्होंने गुजारा भत्ता पाने का दावा किया है.

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अधिवक्‍ता कुमार आंजनेय शानू ने केस की स्थिति देख कर बताया कि आलोक मौर्य का मामला हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) की धाराओं के तहत आता है. आगे उन्‍हीं से समझिए कि हिंदू मैरिज एक्‍ट, 1955 की धारा 24 क्या कहती है?

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हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955

इस कानून में दो अहम धाराएं हैं जो पति को भी गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार देती हैं:

  • सेक्शन 24- अगर पति या पत्नी में से कोई भी व्यक्ति अर्थिक रूप से कमजोर है और तलाक की प्रक्रिया के दौरान खर्च नहीं उठा सकता, तो वह अस्थाई भरण-पोषण (interim maintenance) की मांग कर सकता है. यह धारा जेंडर न्यूट्रल है- यानी पति भी मांग सकता है.
  • सेक्शन 25- यह स्थाई गुजारा भत्ता (permanent alimony) से जुड़ा है. तलाक के बाद यदि कोई पक्ष अपने जीवनयापन में सक्षम नहीं है, तो वह कोर्ट से भरण-पोषण की मांग कर सकता है. यहां भी पति को कानूनी रूप से अधिकार है.

यानी कि हिंदू विवाह अधिनियम में पति को गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार दिया गया है, लेकिन कोर्ट तब ही मान्यता देगा जब पति साबित करे कि:

  • वह आर्थिक रूप से असमर्थ है. 
  • पत्नी के पास अच्‍छी आमदनी या संपत्ति है. 
  • तलाक की कार्यवाही चल रही है या पूरी हो चुकी है. 

इसे थोड़ा विस्‍तार से भी समझना चाहें तो ऐसे समझ सकते हैं. 

धारा 24: कार्यवाही के दौरान भरण-पोषण और खर्च 

ये धारा उन मामलों से संबंधित है, जहां तलाक या अन्य वैवाहिक कार्यवाही चल रही होती है. यह प्रावधान करता है कि यदि न्यायालय को यह लगता है कि पति या पत्नी में से किसी एक के पास अपने जीवन-यापन और कानूनी कार्यवाही के खर्चों के लिए पर्याप्त आय नहीं है, तो वह दूसरे पक्ष को आदेश दे सकता है कि वह याचिकाकर्ता को मुकदमे का खर्च और कार्यवाही के दौरान मासिक रूप से एक निश्चित राशि का भुगतान करे. इस राशि का निर्धारण न्यायालय दोनों पक्षों की आय को ध्यान में रखकर करता है. इस तरह के आवेदन का निपटारा आमतौर पर नोटिस मिलने के साठ दिनों के भीतर किया जाना चाहिए.

सरल शब्दों में इसका मतलब ये हुआ कि अगर तलाक का मामला चल रहा है और पति या पत्नी में से कोई एक वित्तीय रूप से कमजोर है और उसके पास मुकदमा लड़ने या अपना गुजारा चलाने के लिए पैसे नहीं हैं, तो वो अदालत से दूसरे पक्ष से मदद मांग सकता है. कोर्ट यह देखेगा कि दोनों कितना कमाते हैं और फिर तय करेगा कि कितनी रकम दी जानी चाहिए.

धारा 25: स्थाई गुजारा भत्ता और भरण-पोषण 

ये धारा तलाक की डिग्री पारित होने के समय या उसके बाद गुजारा भत्ता देने का प्रावधान करती है. इसके अनुसार कोर्ट,  पत्नी या पति द्वारा किए गए आवेदन पर आदेश दे सकता है कि दूसरा पक्ष आवेदक को उसके जीवन-यापन और सहायता के लिए एक निश्चित लंपसम राशि या मासिक/आवधिक राशि का भुगतान करेगा. 

ये अवधि आवेदक के जीवनकाल से अधिक नहीं होगी. न्यायालय प्रत्यर्थी (जिससे गुजारा भत्ता मांगा जा रहा है) की आय और संपत्ति, आवेदक की आय और संपत्ति, दोनों पक्षों के आचरण और मामले की अन्य परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उचित राशि तय करेगा. यदि आवश्यक हो, तो यह भुगतान प्रत्यर्थी की अचल संपत्ति पर भार (charge) द्वारा सुरक्षित किया जा सकता है.

इस धारा के उप-खंड 2 और 3 में यह भी बताया गया है कि यदि परिस्थितियों में बदलाव आता है तो न्यायालय गुजारा भत्ता के आदेश में बदलाव, संशोधन या उसे रद्द कर सकता है. वे बदलाव हैं, जैसे- 

  • किसी पक्षकार की आय में वृद्धि या कमी 
  • यदि गुजारा भत्ता प्राप्त करने वाले पक्षकार ने पुनर्विवाह कर लिया है
  • पत्नी विवाहेतर संबंध में है 
  • या पति ने किसी अन्य स्त्री के साथ संबंध बनाए हैं. 

सरल शब्दों में समझें तो धारा 25 तलाक के बाद दिए जाने वाले 'स्थाई' गुजारा भत्ते से संबंधित है. इसका मतलब है कि तलाक के बाद भी, अगर पति या पत्नी में से कोई एक आर्थिक रूप से कमजोर है, तो वह दूसरे पक्ष से अपने पूरे जीवन या एक निश्चित अवधि के लिए गुजारा भत्ता मांग सकता है. कोर्ट यह तय करेगा कि कितनी रकम दी जानी चाहिए और इसे कब तक दिया जाना चाहिए, यह सब दोनों की आय, संपत्ति और उनके आचरण पर निर्भर करेगा. अगर गुजारा भत्ता पाने वाला व्यक्ति फिर से शादी कर लेता है या उसका आचरण ठीक नहीं रहता है, तो यह गुजारा भत्ता बंद भी हो सकता है.

बाकी धर्मों में कानून क्या कहता है?

पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936-

इसका सेक्शन 39 कहता है कि पति या पत्नी में से कोई भी भरण-पोषण की मांग कर सकता है. यानी यह धारा जेंडर न्यूट्रल है. ये भारत के कुछ ऐसे प्रगतिशील प्रावधानों में से एक है जो सिर्फ महिला नहीं, बल्कि पुरुष के अधिकारों को भी मान्यता देता है. कोर्ट इस दौरान इन बातों का ध्‍यान रखती है:

  • याचिकाकर्ता की आय और संपत्ति
  • प्रतिवादी की आय और संपत्ति
  • दोनों की जरूरतें और जीवन-स्तर
  • याचिकाकर्ता खुद कमाने में सक्षम है या नहीं

इसके आधार पर अदालत तय कर सकती है कि प्रतिवादी को एकमुश्त (lumpsum) राशि देनी होगी या नियमित अंतराल पर (monthly/yearly) भुगतान करना होगा. 

मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 1986

The Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986 में सिर्फ महिला को गुजारा भत्ते का अधिकार है, पति को नहीं.  इस कानून को शाह बानो केस (1985) के बाद लाया गया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने एक मुस्लिम महिला को तलाक के बाद गुजारा भत्ता (maintenance) देने का आदेश दिया था. इस फैसले पर मुसलमानों के कुछ वर्गों ने धार्मिक हस्तक्षेप का आरोप लगाया, जिसके बाद सरकार ने इस विशेष कानून को बनाया.

  • इस एक्‍ट का मकसद तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को इस्लामी शरीयत के अनुसार अधिकार देना था, जिससे उन्हें सीमित समय के लिए, लेकिन तलाक के बाद कुछ आर्थिक सुरक्षा मिल सके. 
  • सेक्‍शन 3 के तहत, तलाक के बाद पति को केवल 'इद्दत' (Iddat) की अवधि तक ही पत्नी का भरण-पोषण देना होता है.
  • इद्दत, तलाक के बाद की वो निर्धारित अवधि जो इस्लामी कानून के तहत महिला को प्रतीक्षा में गुजारनी होती है. आमतौर पर यह 3 महीने या महिला के गर्भवती होने की स्थिति में प्रसव तक होती है. 
  • इद्दत के दौरान पति को गुजारा भत्ता देना होता है. मेहर (दहेज या विवाह के समय तय राशि) चुकाना होता है. शादी के समय दिए गए सामान, गहनों या गिफ्ट को लौटाना होता है. 

पति की जिम्मेदारी इद्दत के बाद खत्म हो जाती है तो सवाल है कि फिर इद्दत के बाद भरण-पोषण कौन देगा? जवाब है- यदि तलाकशुदा महिला खुद कमाने में सक्षम नहीं है, तो वह अपने रिश्तेदारों (जैसे बेटा, भाई, पिता) या वक्फ बोर्ड से भरण-पोषण की मांग कर सकती है. 

8 अगस्‍त को होगी सुनवाई 

अधिवक्‍ता ने बताया कि ज्‍योति मौर्य और आलोक मौर्य के मामले में, आलोक ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के तहत 'कार्यवाही के दौरान भरण-पोषण' की मांग की है. ये मामला इस बात को स्पष्ट करता है कि भारतीय कानून में, विशेषकर हिंदू विवाह अधिनियम के तहत, पति भी कुछ विशेष परिस्थितियों में पत्नी से गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार रखता है, खासकर यदि वह अपनी वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में असमर्थ हो और पत्नी की आय पर्याप्त हो. 

फिलहाल इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पाया कि अपील निर्धारित समय से 77 दिन की देरी से, परिवारिक अदालत की डिक्री की प्रमाणित प्रतिलिपि के बिना दाखिल की गई है. हालांकि, आलोक मौर्य ने देरी के लिए माफी और फैमिली कोर्ट के आदेश की प्रतिलिपि दाखिले की छूट दिए जाने की अर्जी भी डाली है. कोर्ट ने सुनवाई के लिए आठ अगस्त की तारीख तय की है. 

भविष्‍य के लिए मिसाल बन सकता है फैसला 

ज्‍योति-आलोक मौर्य के मामले में इस पूरी चर्चा का निष्‍कर्ष ये है कि केवल CRPC (या BNSS) के तहत पति एलिमनी नहीं मांगा जा सकता. हिंदू मैरिज एक्‍ट में आलोक को पूरा अधिकार है, बशर्ते वह अपनी असमर्थता साबित करे. चूंकि इस मुद्दे पर अभी तक कोई सुप्रीम कोर्ट का ठोस फैसला नहीं है, इसलिए यह मामला कोर्ट की व्याख्या और तथ्यों पर निर्भर करता है.

यानी पति, पत्नी से गुजारा भत्ता मांग सकता है, लेकिन हर केस में नहीं. उसे अदालत में साबित करना होगा कि उसकी स्थिति खराब है और पत्नी सक्षम है. कानून में ऐसे प्रावधान हैं, लेकिन अब तक इस पर अदालतों की राय स्पष्ट नहीं है. इसलिए ज्योति मौर्य केस में जो भी फैसला होगा, वह इस मुद्दे पर मिसाल बन सकता है.

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