Explainer : हलवा परंपरा.... गोपनीयता, सबसे पहले किसने पेश किया था बजट? जानें इतिहास और बदलाव कहानी

एनडीटीवी एक्सप्लेनर में आज हम बात करेंगे उन ऐतिहासिक बजटों की, जिन्होंने देश की दिशा को बदलने में अहम भूमिका निभाई. इसके अलावा, हम जानेंगे कि बजट लीक होने के बाद किस वित्त मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा, हलवे की परंपरा और गोपनीयता का क्या संबंध है और आखिरकार बजट पेश करने की तारीख और समय में बदलाव क्यों किया गया. पढ़ें पूरी रिपोर्ट..

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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को अपना लगातार 8वां बजट पेश करने जा रही हैं. हर किसी की नजरें इस बजट पर टिकी हैं. खासकर इस पर कि क्या इससे महंगाई पर काबू पाया जाएगा या फिर आयकर दरों में कटौती होगी. लेकिन आम बजट का असर इससे कहीं बड़ा होता है, क्योंकि यह देश की आर्थिक और सामाजिक दिशा को तय करता है. एनडीटीवी एक्सप्लेनर में आज हम बात करेंगे उन ऐतिहासिक बजटों की, जिन्होंने देश की दिशा को बदलने में अहम भूमिका निभाई. इसके अलावा, हम जानेंगे कि बजट लीक होने के बाद किस वित्त मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा, हलवे की परंपरा और गोपनीयता का क्या संबंध है और आखिरकार बजट पेश करने की तारीख और समय में बदलाव क्यों किया गया.

बजट शब्द का क्या होता अर्थ
सबसे पहले यह जान लीजिए कि बजट शब्द फ्रेंच भाषा के "bougette" से आया है, जिसका अर्थ होता है एक छोटा बैग या पाउच. 15वीं सदी में यह शब्द अंग्रेज़ी में शामिल हुआ और बाद में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ. इसके बाद, ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था का लेखा-जोखा इसी नाम से पेश किया जाने लगा.

ब्रिटेन की संसद में पेश हुआ था भारत का पहला बजट
ब्रिटेन की संसद में करीब 160 साल पहले भारत का पहला बजट पेश किया गया था. यह बजट 7 अप्रैल 1860 को स्कॉटिश अर्थशास्त्री जेम्स विल्सन ने पेश किया. यह बजट ब्रिटेन की राजशाही के अधीन भारत के प्रशासन को ईस्ट इंडिया कंपनी से सौंपे जाने के दो साल बाद प्रस्तुत हुआ था. 1857 में भारत में आई वित्तीय दिक्कतों का समाधान इस बजट के जरिए पेश करने की कोशिश की गई, जो ब्रिटिश प्रशासन के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था.

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इंग्लैंड की रानी विक्टोरिया ने जेम्स विल्सन को भारत भेजा था ताकि वे पेपर करेंसी लागू करने, टैक्स प्रणाली को सुधारने जैसे वित्तीय उपायों पर काम करें. जेम्स विल्सन ने दो महत्वपूर्ण बिल पेश किए. इन्कम टैक्स और संशोधित लाइसेंस टैक्स. इसके तहत यह तय किया गया कि जो व्यक्ति साल में 200 रुपये से कम कमाएंगे, उन्हें टैक्स नहीं देना होगा. साथ ही, उन्होंने हर महीने के एकाउंट्स की समीक्षा के लिए ऑडिट सिस्टम भी शुरू किया.

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जेम्स विल्सन की इन पहलियों ने भारतीय बजट की बुनियाद रखी. हालांकि, जेम्स विल्सन खुद अपने काम का असर देखने के लिए जीवित नहीं रहे. उसी साल, 1860 में, उन्होंने कोलकाता में अतिसार (डायसेंट्री) से अपनी जान गंवा दी. जेम्स विल्सन वह ही व्यक्ति थे जिन्होंने 1843 में प्रसिद्ध पत्रिका The Economist की स्थापना की और 1853 में Chartered Bank of India, Australia and China की स्थापना की, जो आज स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक के नाम से मशहूर है.

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26 नवंबर 1947 को पहला अंतरिम बजट पेश किया
आजादी के बाद भारत के पहले वित्त मंत्री बने आरके शणमुगम चेट्टी, जिन्होंने 26 नवंबर 1947 को पहला अंतरिम बजट पेश किया. यह बजट 15 अगस्त 1947 से 31 मार्च 1948 तक के साढ़े सात महीनों के लिए था. हालांकि, इस अवधि के लिए बजट पहले ही तैयार किया जा चुका था, लेकिन भारत-पाक विभाजन के कारण उसे लागू नहीं किया जा सका. इस वजह से, भारत-पाक विभाजन की त्रासदी के बीच आरके शणमुगम चेट्टी को पहला अंतरिम बजट पेश करना पड़ा, जो आज़ाद भारत के लिए पहली बड़ी चुनौती थी. इसके बाद, 28 फरवरी 1948 को आरके शणमुगम चेट्टी ने आज़ाद भारत का पहला पूर्ण बजट पेश किया. यह बजट नए भारत की नई उम्मीदों और ज़रूरतों को पूरा करने की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ.

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 जॉन मथाई और नेहरू के मतभेद
आरके षणमुगम चेट्टी के इस्तीफ़े के बाद भारत के वित्त मंत्री बने जॉन मथाई, जिन्होंने 1949-50 और 1950-51 में दो केंद्रीय बजट पेश किए. जॉन मथाई वही व्यक्ति थे जिन्होंने 1944 में जेआरडी टाटा, घनश्याम दास बिड़ला और कस्तूरभाई लालभाई जैसे बड़े उद्योगपतियों के मार्गदर्शन में बॉम्बे प्लान तैयार किया था. इस योजना का उद्देश्य देश में सड़कों, रेलवे और ऊर्जा के क्षेत्रों में बड़े निवेश को बढ़ावा देना था.

हालांकि, दो आम बजट पेश करने के बाद जॉन मथाई का प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मतभेद हो गया. असल में, मथाई योजना आयोग की बढ़ती ताकत से नाखुश थे, और उन्हें लगता था कि यह एक समानांतर कैबिनेट की तरह काम कर रहा है, जो वित्त मंत्रालय के अधिकारों को कमजोर कर सकता है. कुछ जानकारों का मानना है कि इसी मुद्दे पर उन्होंने सरकार से इस्तीफा दिया और वापस टाटा ग्रुप में लौट गए.

इसके अलावा, उनके इस्तीफे की दूसरी वजह यह बताई जाती है कि उनके बजट के कुछ प्रस्ताव पहले ही लीक हो गए थे. इस दौरान उन पर यह आरोप भी लगा कि वह ताकतवर उद्योगपतियों के हितों के लिए काम कर रहे थे. इन सब घटनाओं के बाद, जॉन मथाई ने बजट के कुछ समय बाद ही इस्तीफा दे दिया.

1957-58 का बजट खासा महत्वपूर्ण माना जाता है
कुछ बजट ऐसे भी थे जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मील के पत्थर साबित हुए. आज़ादी के दस साल बाद, 1957-58 का बजट खासा महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि इसमें वैल्थ टैक्स (संपत्ति कर) समेत कई अन्य टैक्स सुधारों की घोषणा की गई थी. यह बजट तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णाचारी ने पेश किया था. इस बजट में यह निर्णय लिया गया कि वैल्थ टैक्स, यानी व्यक्तिगत संपत्ति के पूरे मूल्य पर कर लगाया जाएगा. यह कदम भारतीय कर व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण बदलाव था और 2015 में इसे समाप्त किए जाने तक यह टैक्स भारत की कर प्रणाली का हिस्सा बना रहा.

राजीव गांधी ने वित्त मंत्री के रूप में पेश किया था बजट
1987 का बजट तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने वित्त मंत्री के रूप में पेश किया था. इस बजट में टैक्स प्रणाली में सुधार और उसमें लचीलापन लाने पर जोर दिया गया. खास बात यह थी कि इसी बजट में MAT (Minimum Alternate Tax) को लागू किया गया, ताकि कंपनियां अपनी टैक्स देनदारी को टालने में सक्षम न हो सकें. यह कदम टैक्स की पारदर्शिता और प्रभावी वसूली के लिए महत्वपूर्ण था.

1991 का बजट सबसे ऐतिहासिक!
भारत के आम बजट में 1991 का बजट सबसे ऐतिहासिक माना जाता है, जब देश एक बड़े आर्थिक संकट का सामना कर रहा था. यह बजट तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने पेश किया था, जिसने भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की. इस बजट में लाइसेंस-परमिट-कोटा सिस्टम को खत्म कर लालफीताशाही को समाप्त किया गया, जिससे भारत दुनिया के बाज़ारों के लिए खुल गया. कस्टम और एक्साइज़ ड्यूटी में कटौती की गई और आयात-निर्यात के ढांचे को सुधारने के लिए महत्वपूर्ण फैसले लिए गए. लाइसेंस राज को समाप्त कर इस बजट ने पूरे देश को बड़ी राहत दी और इसके बाद भारत में विदेशी निवेश को काफी बढ़ावा मिला. इस बजट के परिणामस्वरूप, भारत का आर्थिक विश्वास बढ़ा और वह दुनिया की एक बड़ी आर्थिक ताकत बनने की दिशा में आगे बढ़ने लगा.

पी चिदंबरम का 'ड्रीम बजट' 
1997-98 का बजट, जिसे तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने पेश किया, को ड्रीम बजट कहा जाता है. इस बजट ने मध्यवर्ग को बड़ी राहत दी, क्योंकि इसमें पर्सनल इनकम टैक्स की दरों में कमी की गई थी, जिससे टैक्स चोरी को कम करने में मदद मिली. इसके अलावा, भारत के आर्थिक परिदृश्य में कई महत्वपूर्ण बदलाव भी आए.

यशवंत सिन्हा का 'मिलेनियम' बजट पेश
2000 में वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने मिलेनियम बजट पेश किया, जिसे इक्कीसवीं सदी का पहला बजट माना गया. यह बजट भारत के आईटी सेक्टर को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए याद किया जाता है. इसमें आईटी सेक्टर से जुड़ी 21 वस्तुओं पर कस्टम्स ड्यूटी को कम किया गया, जिससे भारत को दुनिया में आईटी सेक्टर का हब बनने का अवसर मिला.

2003 का बजट, जिसे वाजपेयी सरकार के वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने पेश किया, बुनियादी ढांचे को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए अहम साबित हुआ. इस बजट में विशेष रूप से सड़कों के नेटवर्क को तेज़ी से फैलाने पर जोर दिया गया.

इसमें देश के चार बड़े शहरों को गोल्डन क्वाड्रिलेट्रल के जरिए जोड़ने के लिए 75 हज़ार करोड़ रुपए का आवंटन किया गया. इसके अतिरिक्त, दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों को आधुनिक बनाने और हैदराबाद और बेंगलुरु में नए अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बनाने की मंज़ूरी भी दी गई. ये दोनों एयरपोर्ट 2008 में बनकर तैयार हुए. इससे पहले, बेंगलुरु के लिए HAL एयरपोर्ट और हैदराबाद के लिए बेगमपेट एयरपोर्ट का उपयोग किया जा रहा था, जो 1930 में निज़ाम के दौर में बनाए गए थे.

2018 का बजट... कृषि अर्थव्यवस्था को सुधारने पर केंद्रित
मोदी सरकार के तहत 2018 का बजट ग्रामीण भारत और कृषि अर्थव्यवस्था को सुधारने पर केंद्रित था. यह बजट तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया, जिसमें 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया. इस बजट में ग्रामीण भारत में लोगों की ज़िंदगी सुधारने और बुनियादी ढांचे के विकास के लिए ₹14.34 लाख करोड़ का आवंटन किया गया. यह कदम ग्रामीण क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि लाने के लिए महत्वपूर्ण था.

आम बजट से जुड़ी कुछ ख़ास और दिलचस्प जानकारियां हैं जो समय के साथ बदलती रही हैं. कई पुरानी परंपराएं खत्म हो गईं, तो कुछ नई परंपराएं भी अस्तित्व में आईं.

1998 तक, केंद्रीय बजट हमेशा शाम 5 बजे पेश किए जाते थे, जो ब्रिटिश दौर से चली आ रही परंपरा थी और यह ब्रिटेन की संसद के समय के हिसाब से तय हुआ था. हालांकि, 1999 में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने इस परंपरा को बदलते हुए बजट पेश करने का समय सुबह 11 बजे कर दिया, जो भारतीय समय के अनुसार अधिक उपयुक्त था.

जब बदली गई तारीख
बजट तैयार करने की प्रक्रिया में 2017 से महत्वपूर्ण बदलाव हुए, जब बजट पेश करने की तारीख़ को 28 फरवरी से बदलकर 1 फरवरी कर दिया गया. इसका फायदा यह हुआ कि 1 अप्रैल से शुरू होने वाले नए वित्त वर्ष से पहले ज्यादा फंड्स को आवंटित करने के लिए अधिक समय मिल गया.

रेल बजट को आम बजट में शामिल 
साथ ही, उसी साल रेल बजट को आम बजट में शामिल कर लिया गया. इससे पहले, 92 साल तक रेल बजट को आम बजट से अलग पेश किया जाता था और इसे रेल मंत्री पेश करते थे. लेकिन इस बदलाव के बाद, देश में एक ही बजट पेश किया जाने लगा.

जब लीक हो गई थी जानकारी
1950 से बजट को गोपनीय रखने पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा, खासकर जब उस साल जॉन मथाई द्वारा पेश बजट की कुछ जानकारी पहले ही लीक हो गई थी. इसके बाद सरकार ने बजट को गोपनीय रखने के लिए एक नया कदम उठाया और बजट की छपाई का काम दिल्ली के मिंटो रोड की एक विशेष प्रेस को सौंपा गया. 1980 में, गोपनीयता को और सख़्त करने के लिए बजट की कॉपियां छापने का काम नॉर्थ ब्लॉक की भूमिगत प्रेस में शुरू कर दिया गया, ताकि बजट से संबंधित जानकारी लीक न हो सके.

एक खास परंपरा...हलवा समारोह
बजट पेश करने से एक हफ्ता पहले वित्त मंत्रालय में एक खास परंपरा, हलवा समारोह, आयोजित किया जाता है. भारत में किसी भी शुभ काम की शुरुआत मीठे से करने की परंपरा रही है, ताकि काम का नतीजा शुभ हो. इस समारोह के दौरान, वित्त मंत्रालय की रसोई में एक बड़ी कढ़ाई में हलवा तैयार किया जाता है, जो सभी अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच बांटा जाता है. इसे आप प्रसाद के रूप में भी समझ सकते हैं.

यह परंपरा बजट को छापने की प्रक्रिया की शुरुआत होती है, जो पूरी तरह से गोपनीय रहती है. इसी गोपनीयता को सुनिश्चित करने के लिए, बजट से जुड़े सभी अधिकारी और कर्मचारी बजट पेश होने तक अपने घर नहीं जाते. वे पूरी तरह से नॉर्थ ब्लॉक में रहते हैं और बाकी दुनिया से कटे रहते हैं.

प्रधानमंत्रियों  ने भी पेश किया है बजट
भारत में कुछ मौकों पर प्रधानमंत्रियों को खुद भी बजट पेश करना पड़ा. उदाहरण के लिए, 1958 में जब वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी ने इस्तीफा दिया, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बजट पेश करना पड़ा. 1970 में इंदिरा गांधी को वित्त मंत्री मोरारजी देसाई के इस्तीफे के बाद बजट पेश करना पड़ा. इसके अलावा, 1987 में राजीव गांधी ने तत्कालीन वित्त मंत्री वीपी सिंह के इस्तीफे के बाद बजट पेश किया. इन घटनाओं में, प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालते हुए बजट पेश किया. भारत में सबसे अधिक आम बजट पेश करने का रिकॉर्ड पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के नाम है, जिन्होंने कुल 10 बजट पेश किए. इसके बाद, पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने 9 बजट पेश किए.

मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इस बार लगातार अपना आठवां बजट पेश कर रही हैं. वो इस मायने में एक रिकॉर्ड बना चुकी हैं कि उन्होंने सबसे अधिक लगातार बजट पेश किए हैं. इससे पहले, मोरारजी देसाई ने लगातार छह बजट पेश किए थे.


निर्मला सीतारमण के नाम ये  रिकॉर्ड
निर्मला सीतारमण के नाम पर सबसे लंबे बजट भाषण का रिकॉर्ड भी है, जब उन्होंने 2020 में 2 घंटा 42 मिनट का भाषण दिया. 2021 का बजट खास था क्योंकि उसमें पहली बार संसद में पेपरलेस बजट पेश किया गया.उससे पहले, बजट की मोटी-मोटी कॉपियां सांसदों को वितरित की जाती थीं, और उसके बाद मीडिया को. उस समय की बजट की पहली तस्वीरों में यही कॉपियां दिखाई देती थीं, जिन्हें सबसे पहले प्राप्त करने और पढ़कर बजट से संबंधित खबरें लिखने की होड़ मची रहती थी.

भारत के ऐतिहासिक बजट

26 नवंबर, 1947 का अंतरिम बजट
यह बजट भारत के पहले वित्त मंत्री आरके शणमुगम चेट्टी द्वारा पेश किया गया था. यह बजट भारत-पाक विभाजन के बाद पेश किया गया, और इसका उद्देश्य विभाजन के कारण उत्पन्न वित्तीय चुनौतियों से निपटना था. यह अंतरिम बजट 15 अगस्त, 1947 से लेकर 31 मार्च, 1948 तक के लिए था.

28 फरवरी, 1948 का पहला पूर्ण बजट
इसके बाद, 28 फरवरी, 1948 को आरके शणमुगम चेट्टी ने भारत का पहला पूर्ण बजट पेश किया. यह बजट आज़ाद भारत के नए आर्थिक दिशा और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम था.आज़ादी के बाद भारत का पहला बजट

भारत के पहले वित्त मंत्री आरके शणमुगम चेट्टी ने 26 नवंबर 1947 को पहला बजट पेश किया, जो एक अंतरिम बजट था. यह बजट 15 अगस्त 1947 से लेकर 31 मार्च 1948 तक के साढ़े सात महीनों के लिए पेश किया गया. हालांकि, इस समय के लिए बजट पहले ही तैयार हो चुका था, लेकिन भारत-पाक विभाजन के कारण उसे लागू नहीं किया जा सका. इस बीच, पहले अंतरिम बजट का उद्देश्य भारत-पाक विभाजन के कारण उत्पन्न वित्तीय संकट से निपटना था, जो आज़ाद भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी.

इसके बाद, आरके शणमुगम चेट्टी ने 28 फरवरी 1948 को आज़ाद भारत का पहला पूर्ण बजट पेश किया. यह बजट नए भारत की नई उम्मीदों और ज़रूरतों को साकार करने की दिशा में पहला बड़ा कदम था.

1957 का बजट: संपत्ति कर की शुरुआत
1957 का बजट खास तौर पर संपत्ति कर (वैल्थ टैक्स) के लिए जाना जाता है. यह बजट टीटी कृष्णामाचारी द्वारा पेश किया गया था, जिसमें व्यक्तिगत संपत्ति के पूरे मूल्य पर कर लगाने का प्रस्ताव रखा गया था. इस बजट के माध्यम से संपत्ति पर कर लगाने की व्यवस्था की शुरुआत हुई, जो 2015 तक भारत की कर प्रणाली का हिस्सा बनी रही, जब इसे समाप्त कर दिया गया.

1957-58 का बजट: वैल्थ टैक्स और कर सुधार
1957-58 का बजट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक अहम मील का पत्थर साबित हुआ. यह बजट टीटी कृष्णाचारी ने पेश किया और इसमें वैल्थ टैक्स (संपत्ति कर) समेत कई महत्वपूर्ण टैक्स सुधारों की घोषणा की गई. इस बजट के तहत व्यक्तिगत संपत्ति के पूरे मूल्य पर कर लगाने का निर्णय लिया गया, जो भारत की कर व्यवस्था का एक अभिन्न हिस्सा बन गया. वैल्थ टैक्स 2015 तक लागू रहा, जब इसे समाप्त कर दिया गया.


1987 का बजट: टैक्स सुधार और लचीलापन
1987 में, प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने स्वयं वित्त मंत्री की हैसियत से बजट पेश किया. इस बजट का मुख्य उद्देश्य टैक्स ढांचे को सुधारना और उसमें लचीलापन लाना था. इस बजट में Minimum Alternate Tax (MAT) को लागू किया गया, जिससे कंपनियों द्वारा अपनी टैक्स देनदारी को टालने की संभावना कम हुई. यह कदम कॉर्पोरेट टैक्स में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण निर्णय साबित हुआ.

1991 का बजट: आर्थिक उदारीकरण का आगाज़

1991 का बजट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ. मनमोहन सिंह द्वारा पेश इस बजट ने भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की.

  • इस बजट में महत्वपूर्ण निर्णय 
  • लाइसेंस-परमिट-कोटा सिस्टम को ख़त्म किया गया.
  • कस्टम और एक्साइज़ टैक्स में बड़ी कटौती की गई.
  • लाइसेंस राज को समाप्त कर दिया गया.
  • विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए नए रास्ते खोले गए.
  • इस बजट ने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया और विदेशी निवेश को आकर्षित किया, जिससे देश का आर्थिक विश्वास मजबूत हुआ.

1991 का बजट: आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत

भारत का 1991 का बजट एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुआ, जब देश बड़े आर्थिक संकट से गुजर रहा था. नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत इस बजट ने भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक उदारीकरण की नींव रखी.

इस बजट के प्रमुख कदम 

  • लाइसेंस-परमिट-कोटा सिस्टम को खत्म किया गया और लालफीताशाही को कम किया गया.
  • कस्टम और एक्साइज़ ड्यूटी में महत्वपूर्ण कटौती की गई.
  • आयात-निर्यात के ढांचे को सुधारने के लिए कई बड़े फैसले लिए गए.
  • इस बजट ने भारत को वैश्विक बाजारों के लिए खोल दिया और विदेशी निवेश में वृद्धि की, जिससे देश का आर्थिक विश्वास मजबूत हुआ. इसके बाद भारत ने दुनिया की एक बड़ी आर्थिक ताकत बनने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए.

भारत के ऐतिहासिक बजट

1997 में पी चिदंबरम का ड्रीम बजट
1997 का बजट पी चिदंबरम द्वारा पेश किया गया और इसे ड्रीम बजट के नाम से जाना गया. इस बजट ने भारतीय मध्यवर्ग को महत्वपूर्ण राहत दी.

  • आयकर की दरों में कटौती की गई.
  • मध्यवर्ग को राहत देने के लिए कई कदम उठाए गए.
  • टैक्स चोरी को रोकने के लिए सख्त उपायों की योजना बनाई गई.
  • यह बजट भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया, जिससे देश के आर्थिक परिदृश्य में एक नई दिशा तय हुई.

2000 में यशवंत सिन्हा का मिलेनियम बजट
2000 का बजट भारतीय इतिहास में इक्कीसवीं सदी का पहला आम बजट था, जिसे यशवंत सिन्हा ने पेश किया. इस बजट में खासतौर पर आईटी सेक्टर के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए.

  • आईटी सेक्टर को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने के लिए बजट में खास प्रावधान किए गए.
  • आईटी से जुड़ी 21 वस्तुओं पर कस्टम ड्यूटी घटाई गई, जिससे इस सेक्टर को बढ़ावा मिला.
  • यह बजट भारत को आईटी हब बनाने के दृष्टिकोण से ऐतिहासिक साबित हुआ.

भारत के ऐतिहासिक बजट

  • 2018 में ग्रामीण भारत को विशेष प्रोत्साहन
  • 2018 का बजट ग्रामीण भारत और कृषि क्षेत्र के लिए ऐतिहासिक था, जिसे वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया.
  • 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया.
  • ग्रामीण भारत के विकास और बुनियादी ढांचे के लिए 14.34 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया.
  • यह बजट ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने और किसानों की आय में सुधार लाने के उद्देश्य से महत्वपूर्ण था.


आम बजट की ख़ास बातें

  • 2016 तक बजट 28 फरवरी को पेश होता था.
  • 2017 से बजट 1 फरवरी को पेश किया जाने लगा.
  • रेल बजट अब आम बजट में शामिल किया गया.
  • इससे पहले, 92 साल तक रेल बजट अलग से पेश किया जाता था.
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