ग्राउंड रिपोर्ट: रसोई में झूठे बर्तन का ढेर, मायके से पानी लाने की मजबूरी...सीलमपुर के हर घर में प्यास और परेशानी की कहानी

सीलमपुर में पानी का संकट गहराता जा रहा है और यहां के चौहान बांगर और गौतमपुरी जैसे इलाकों में हर गली में वॉटर कैन वाले ठेले घूमते दिखते हैं.

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नई दिल्‍ली:

दिल्ली के सीलमपुर इलाके की संकरी गलियों में रहने वाली रजिया की सुबह नल के नीचे इंतजार से शुरू होती है. इस उम्मीद में कि शायद आज पानी आ जाए. लेकिन नल सूखा रहता है, और रसोई में झूठे बर्तन का ढेर लगा रहता है. 'घर में सात लोग हैं, पांच बच्चे हैं...नहाने तक का पानी नहीं है,' रजिया बताती हैं. जो थोड़ा बहुत पानी मिलता है, वो वो अपनी मां के घर से लाती हैं या खरीद कर भरवाती हैं. 

मायके जाने को मजबूर 

ये परेशानी सिर्फ रजिया की नहीं है. पड़ोस में रहने वाली शगुफ्ता बताती हैं कि पिछले 15 दिन से ठीक से पानी नहीं आया. 'जो आता है वो भी गंदा होता है… मजबूरन बच्चों को लेकर मायके जाना पड़ता है.' यहां ग्राउंड फ्लोर पर पानी 20-25 रुपये में बिकता है, ऊपर के फ्लोर पर हर मंजिल के साथ 10-10 रुपये ज्‍यादा.  

इलाके में रहने वाले लोगों का कहना है कि गंदे और मिलावटी पानी की वजह से उन्हें बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है. स्थानीय डॉक्टर डॉ. शकील बताते हैं, 'पानी से जुड़ी बीमारियों के मरीज लगातार आते हैं… मुझे खुद पानी खरीदना पड़ता है.' 

सीलमपुर के चौहान बांगर और गौतमपुरी जैसे इलाकों में हर गली में वॉटर कैन वाले ठेले घूमते दिखते हैं. एक स्थानीय निवासी का कहना है, 'मैं सिर्फ इसी गली में 50 कैन पानी सप्लाई करता हूं.' बावजूद इसके हालात नहीं सुधरते. 'बहुत शिकायत की जल बोर्ड से…कोई सुनवाई नहीं होती,' एक बुज़ुर्ग महिला गुस्से और थकान के साथ कहती हैं. 

क्‍या बोले विधायक और मंत्री 

जब इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के विधायक चौधरी ज़ुबैर अहमद से बात की गई तो उन्होंने सीधे-सीधे बीजेपी सरकार पर आरोप लगाया.'समस्या पहले भी थी लेकिन अब और बढ़ गई है। हम लगातार जल बोर्ड से संपर्क में हैं लेकिन सरकार की तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा.' 

वहीं दिल्ली के जल मंत्री प्रवेश साहिब सिंह वर्मा का कहना है कि 'सरकार को बने अभी सिर्फ 4 महीने हुए हैं. हम पानी और सीवर लाइनों को बदलने का काम कर रहे हैं ताकि आने वाले सालों में ये समस्या खत्म हो सके.'  हालांकि चुनावी वादों में पानी बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन जमीनी हालात बताते हैं कि राजधानी में अभी भी हजारों परिवारों की जिंदगी हर दिन पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष से शुरू होती है. 

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