​आउटर नॉर्थ जिला बना दिल्ली का पहला जिला, जहां नए कानून BNSS का हुआ इन-एब्सेंटिया इस्तेमाल

​दिल्ली पुलिस के लिए यह पल खास है. इस उपलब्धि में जज निशा सहाय सक्सेना, प्रभावी बहस करने वाले पहले पब्लिक प्रोसिक्यूटर  गिरीश गिरी, और केस को मज़बूती से पेश करने वाले इंस्पेक्टर सुधीर राठी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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दिल्ली पुलिस ने नए क्रिमिनल लॉ भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) के तहत देश में  इतिहास रच दिया है. पहली बार, किसी फरार आरोपी पर उसकी गैर-मौजूदगी (In-Absentia) में अदालत ने आरोप तय कर दिए हैं, जिससे अब आरोपी के बिना भी मुकदमे की कार्यवाही आगे बढ़ सकेगी. ​यह ऐतिहासिक फैसला 68 साल के रमेश भारद्वाज मर्डर केस से जुड़ा है. इस मामले के मुख्य आरोपी जीतेन्द्र मेहतो के फरार होने के बावजूद, रोहिणी कोर्ट ने BNSS की नई व्यवस्था के तहत उसके खिलाफ मुकदमा आगे बढ़ाने की हरी झंडी दे दी है.

​यह सनसनीखेज मामला 28 जनवरी 2025 को शुरू हुआ, जब रमेश भारद्वाज नरेला गए और घर वापस नहीं लौटे. गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज होने के बाद, पुलिस का शक जल्द ही मृतक के पुराने नौकर जीतेन्द्र मेहतो की तरफ गया, जो उसी दिन से लापता था. ​जांच में पता चला कि मृतक ने हाल ही में एक प्लॉट के बदले ₹4.5 लाख रुपये लिए थे और आखिरी बार वह जीतेन्द्र के साथ ही देखा गया था.

​डिजिटल ट्रैकिंग से खुला राज

कई दिनों तक सुराग न मिलने पर पुलिस ने डिजिटल सर्विलांस का सहारा लिया. 12 फरवरी 2025 को पुलिस को एक बड़ा ब्रेकथ्रू मिला,तकनीकी जांच के आधार पर जीतेन्द्र के बेटे अभिषेक उर्फ विशाल को पकड़ा गया. ​पूछताछ में अभिषेक ने सनसनीखेज खुलासा किया कि उसके पिता जीतेन्द्र ने ही रमेश भारद्वाज की हत्या की थी और दोनों ने मिलकर शव को बोरे में भरकर नाले में फेंक दिया था. उसने मृतक के बेटे लव भारद्वाज की साजिश में भूमिका भी बताई. अभिषेक की निशानदेही पर पुलिस ने नाले से सड़ी-गली लाश बरामद की.

​BNSS और 'ट्रायल इन एब्सेंटिया': क्यों है यह ऐतिहासिक

​पुराने कानून CRPC (दंड प्रक्रिया संहिता) में आरोपी की गैर-मौजूदगी में गंभीर मामलों में ट्रायल आगे बढ़ाना लगभग असंभव था, जिससे न्याय प्रक्रिया में देरी होती थी. ​लेकिन नया BNSS, 2023 एक क्रांतिकारी बदलाव लाया है,ये "ट्रायल इन एब्सेंटिया" (गैर-मौजूदगी में ट्रायल) का प्रावधान देता है.

​BNSS की नई व्यवस्था के मायने

​अगर आरोपी फरार है और कोर्ट ने उसे प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर  यानी भगोड़ा अपराधी घोषित कर दिया है, तो कोर्ट उसकी गैर-मौजूदगी में भी चार्ज फ्रेम कर सकती है, गवाहों के बयान रिकॉर्ड कर सकती है और यहां तक कि निर्णय भी दे सकती है. ​यह प्रावधान माफिया, गैंगस्टर्स और संगठित अपराध से जुड़े ऐसे आरोपियों से निपटने में बेहद कारगर माना जा रहा है जो कानून से भागकर न्याय प्रक्रिया को बाधित करते हैं.

​दिल्ली पुलिस और कोर्ट की प्रक्रिया इस तरह आगे बढ़ी

​25 मार्च 2025: जीतेन्द्र के खिलाफ नॉन-बेलेबल वॉरंट जारी
​11 जुलाई 2025: कोर्ट ने उसे प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर घोषित किया
​25 अगस्त 2025: पुलिस ने BNSS की धारा 355 के तहत चार्जशीट दाखिल की
​18 नवंबर 2025: रोहिणी कोर्ट की प्रिंसिपल डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन जज निशा सहाय सक्सेना ने दिल्ली में पहली बार BNSS की धारा 356 के तहत फरार आरोपी के खिलाफ इन-एब्सेंटिया चार्ज फ्रेम किया
​यह चार्ज हत्या, अपहरण, सबूत मिटाने और आपराधिक साजिश जैसे गंभीर अपराधों से जुड़े हैं.

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​दिल्ली पुलिस के लिए यह पल खास है. इस उपलब्धि में जज निशा सहाय सक्सेना, प्रभावी बहस करने वाले पहले पब्लिक प्रोसिक्यूटर  गिरीश गिरी, और केस को मज़बूती से पेश करने वाले इंस्पेक्टर सुधीर राठी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. बाहरी उतरी दिल्ली के ​DCP हरेश्वर स्वामी ने BNSS प्रावधानों को लागू कराने में लगातार सक्रियता दिखाई. ​इस फैसले से संदेश साफ है न्याय रोका नहीं जाएगा चाहे आरोपी हाजिर हो या नहीं.

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