रात में ठंड और दिन में छूटते पसीने.... जनवरी में ये मार्च वाली गर्मी की वजह तो जान लीजिए

मौसम विभाग के अनुसार ला नीना इफेक्ट के ना होने और पश्चिमी विक्षोभ के अधिक सक्रिय होने के कारण इस बार दिल्ली में ठंड में भी तापमान में उतनी गिरावट नहीं आई है.

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दिल्ली में इस बार सर्दी के सीजन में एक भी दिन नहीं चली शीतलहर
नई दिल्ली:

दिल्ली में इस बार ठंड ने अपने आप में एक नया रिकॉर्ड बना लिया है. रिकॉर्ड सर्दी ना पड़ने का है यानी सीधे शब्दों में कहें तो सर्दी में गर्मी का एहसास कराने का है. मौसम विभाग के अनुसार इस बार रात के तापमान के अनुसार पिछले 9 सालों में सबसे कम सर्दी पड़ी है. साथ ही साथ बीते सात सालों में ऐसा पहली बार देखने को मिला है कि जब एक सीजन में ना तो दिन का तापमान अधिक कम हुआ और ना ही किसी दिन कोल्ड वेव यानी शीतलहर चली. मौसम विभाग सर्दियां ना पड़ने के पीछे ला नीना और पश्चिम विक्षोभ को जिम्मेदार मान रहा है. मौसम विभाग के अनुसार इस बार ला नीना के ना होने के कारण सर्दी कम पड़ी है वहीं लगातार आते पश्चिमी विक्षोभ ने भी सर्दी को कम किया है. 

दिन में ठंडक तो रातें रहीं गर्म 

 सर्दी के इस सीजन में रात का तापमान गर्म रही हैं. लेकिन बात अगर दिन के तापमान की करें तो ये सामान्य से कम महसूस की गई हैं. जिस कारण ही दिल्ली में दिन के समय में ठंडक का एहसास हुआ है. सर्दी के इस मौसम औसत अधिकतम तापमान 18.6 डिग्री सेल्सियस रहा, जो सामान्य से 1 डिग्री कम है. तापमान में एक डिग्री की गिरावट की वजह आसमान बादल के छाए रहना या कोहरे की वजह से था. 19 जनवरी को भी तापमान में फिर गिरावट आई लेकिन ये गिरावट एक दो दिन ही रही. इसके बाद से फिर से तापमान बढ़ने लगा.  मौसम विभाग के अनुसार एक पश्चिमी विक्षोभ के कारण मौसम ऐसा अजीब रंग दिखा रहा है. 9 सालों में दिल्ली में इस बार काफी हल्की सर्दी पड़ी. दिल्ली में 27 दिसंबर से 20 जनवरी के बीच कड़ाके की सर्दी पड़ती है, जिसमें मौसम का सबसे कम सामान्य तापमान होता है. इस दौरान, अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से कम होता है, और न्यूनतम तापमान 7 डिग्री सेल्सियस से नीचे चला जाता है. जबकि इस बार रातें गर्म रहीं और औसत न्यूनतम तापमान 9 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया. जो सामान्य से दो डिग्री अधिक है, साल 2015-16 की सर्दी के बाद ऐसा हुआ है.

इस बार क्यों नहीं पड़ी ठंड 

मौसम विभाग के अनुसार दिल्ली में इस बार ठंड ना पड़ने के दो कारण हैं. एक कारण है ला नीला का न होना. इसके कारण दिसंबर के आसपास आने का अनुमान था, जो अभी तक आया नहीं है. आपको बता दें कि ला नीना आमतौर पर उत्तर भारत में सर्दी को बढ़ाता है. वहीं ठंड ना पड़ने की दूसरी सबसे बड़ी वजह है पश्चिमी विक्षोभ हैं. इस बार इस क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभ लगातार आए हैं. इसके आने से हवा की दिशा में बार-बार बदलाव हुआ है. 

पहाड़ों पर भी बढ़ा तापमान 

इस बार मैदानी इलाकों की तरह ही पहाड़ों में सर्दी के मौसम में तापमान अधिक दर्ज किया गया है. हिमाचल प्रदेश में इस बार कम बारिश और बर्फबारी के कारण तापमान बढ़ा है. मौसम विभाग के अनुसार कई इलाके ऐसे हैं जहां औसत से कम बर्फबारी हुई है. इसके कारण भी पहाड़ी इलाकों और मैदानी इलाकों में ठंड का सितम कम देखने को मिला है. उधर,कश्मीर में सर्दियों का सबसे ठंडा दौर कहलाने वाला 40 दिन का चिल्लेकलां 31 जनवरी को शुष्क मौसम के साथ समाप्त होगा क्योंकि मौसम ने इस महीने बर्फबारी की कोई संभावना नहीं जताई है. हिमाचल प्रदेश में बीते गुरुवार को अटल टनल के दोनों छोर सहित पहाड़ी पर बर्फबारी हुई. वहीं शिमला रिज मैदान, संजौली, कुफरी और  नरकंडा में बर्फ गिरी. राज्य में तापमान अधिक होने के कारण कई जगहों पर ग्लेशियर पर जमी बर्फ भी पिघलने लगी है. 

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ला नीनो क्या होता है ? 

कहा जाता है कि अल नीनो का असर जब अपने चरण पर पहुंच जाता है तो फिर ला नीनो कहा जाता है. इससे होता ये है कि जो ट्रेड विंड्स दक्षिण अमेरिका से ऑस्ट्रेलिया और एशिया की तरफ चल रहीं थी वो पहले की तुलना में और तेज चलने लगती हैं. इसका असर ये होता है कि दक्षिण अमेरिका के तटों के पास समुद्र का ठंडा पानी समुद्र के तल से और तेजी से ऊपर की तरफ आता है. वहीं, दूसरी तरफ समुद्र की सतह पर जो गरम पाना था वह मजबूत ट्रेड विंड्स की वजह से ऑस्ट्रेलिया और एशिया के देशों की तरफ तेजी से बढ़ती है और फिर इन महाद्वीप के देशों में जबरदस्त बारिश होती है. मौसम वैज्ञानिक मानते हैं कि अल नीनो की तुलना में ला नीनो का चक्र थोड़ा लंबा होता है. ये एक से चार साल तक भी चल सकते हैं.

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