मनरेगा में ऐसा काम दिया कि मजदूर खुद छोड़कर भाग जाएं, टीचर ने खोली पंक्चर मरम्मत की दुकान

औद्योगिक शहर गाजियाबाद में बेरोजगारी बढ़ गई, नौकरी करने वाले सैकड़ों लोग लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हो गए

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दिवेश कुमार दिल्ली में गेस्ट टीचर थे, बेरोजगार होने पर इन्होंने पंक्चर रिपेयरिंग का काम शुरू कर दिया है.
नई दिल्ली:

यूपी के गाजियाबाद में मजदूर न मिलने के कारण तीन साल पहले मनरेगा योजना बंद कर दी गई थी लेकिन लॉकडाउन के चलते अब गाजियाबाद के बेरोजगार मनरेगा में रोजगार के अवसर तलाश रहे हैं. लेकिन सरकारी अधिकारी ट्रायल के तौर पर ऐसे काम करवा रहे हैं जिससे मजदूर खुद मनरेगा छोड़कर भाग जाएं. औद्योगिक शहर गाजियाबाद में बेरोजगारी बढ़ गई है. नौकरी करने वाले सैकड़ों लोग लॉकडाउन के दौरान बेरोजगार हो गए. अब वे पेट पालने के लिए छोटे-मोटे व्यवसाय करने को मजबूर हैं.

 गाजियाबाद के मंडोला गांव में बेरोजगारों की टोली है. इसी टोली के सतेंद्र शर्मा तीन महीना पहले तक भगवती जागरण करते थे. लॉकडाउन में मंदिर बंद हो गए और तो सतेंद्र शर्मा अब पुजारी का काम छोड़कर मनरेगा की मजदूरी में अपना भविष्य तलाश रहे हैं. सतेंद्र शर्मा कहते हैं कि ''मरता क्या न करता, बच्चा भूखे मरेंगे तो उसे देख तो सकते नहीं हैं, इसलिए मनरेगा का काम मांगा. लेकिन तालाब की सफाई करवाकर पैसे अब तक नहीं दे रहे हैं.''

दरअसल गाजियाबाद में तीन साल पहले मनरेगा की योजना यह कहकर बंद कर दी गई थी कि मनरेगा की कम मजदूरी के चलते कोई काम करने को तैयार नहीं है. लेकिन लॉकडाउन के चलते बेरोजगार हो चुके नवीन गुप्ता और पवन कुमार जैसे लोगों ने जब प्रधान और प्रशासन पर मनरेगा के रोजगार का दबाव बनाया तो इन लोगों का आधा-अधूरा जॉब कार्ड बनाकर सीवर के पानी से भरे तालाब की सफाई में लगा दिया गया ताकि ये लोग खुद भाग जाएं.

मंडोला गांव के मनरेगा मजदूर नवीन गुप्ता ने बताया कि ''हम वेबसाइट पर गए तो देखा कि मनरेगा के तहत 200 रुपये की मजदूरी मिल रही है. हमें सरकार का ये प्लान अच्छा लगा लेकिन जॉब कार्ड बनने के बावजूद रजिस्टर्ड नहीं है, हमें तो ठगा गया.''  पवन कुमाार कहते हैं कि ''मेरी तबियत खराब हो रही थी. मैंने सेक्रेटरी साहब से पैसे मांगे. उन्होंने मना कर दिया. मैं तो मजदूरी के पैसे मांग रहा हूं, बस.''

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पांच हजार की आबादी वाले मंडोला गांव के ज्यादातर लोगों के खेत अधिग्रहीत होकर वहां इमारतें बन चुकी हैं. इसके चलते फैक्ट्रियों में नौकरी करके ही इनका गुजारा चलता था. राहुल शर्मा अपना छोटा सा घर दिखाते हुए कहते हैं कि ''मनरेगा मजदूर बनना गांव में शर्म की बात मानी जाती है लेकिन अब क्या करें?''

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गाजियाबाद के मनरेगा मजदूर अनुज शर्मा ने कहा कि ''सेक्रेटरी साहब ने बोला जाओ तालाब साफ करो. फिर बोलने लगे कि बाहर मजदूरी करते तो चार सौ पांच सौ मिलते, यहां मनरेगा में काम करने चले आए. बेइज्जत करते रहे वहां बैठकर.''

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एक तरफ यूपी सरकार एक करोड़ रोजगार देने की बात कह रही है तो दूसरी तरफ मनरेगा के तहत काम मांगने वालों को अधूरा जॉब कार्ड देकर टरकाया जा रहा है. हमने जब मनरेगा की साइट पर देखा तो फिलहाल गाजियाबाद में मनरेगा के काम की मांग शून्य दर्शा रहा है. अब गाजियाबाद प्रशासन सफाई दे रहा है. 

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बढ़ती बेरोजगारी के चलते अब गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर जैसे औद्योगिक और विकसित शहरों में मनरेगा के काम की मांग आ रही है जबकि यहां सालों से मनरेगा योजना की डिमांड न के बराबर थी. गाजियाबाद और नोएडा जैसे शहरों की चमकदार इमारतों के नीचे बेरोजगारी का अंधेरा धीरे धीरे बढ़ रहा है. हालांकि सरकार ने मनरेगा का बजट बढ़ाकर एक लाख करोड़ रुपये कर दिया है, लेकिन स्थानीय लेवल पर इसे और असरदार और पारदर्शी बनाने की जरूरत है.

गाजियाबाद स्थित बागू कॉलोनी के पास विजय नगर के दिवेश कुमार दिल्ली में गेस्ट टीचर थे. लॉकडाउन लगने से उनकी नौकरी चली गई है. अब उन्होंने साइकिल के टायर पंचर की दुकान खोल ली है. क्या करें पेट तो पालना ही है और परिवार को भी पालना है.

VIDEO : बड़ी डिग्री वाले अब मनरेगा मजदूर

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