सीवर की सफाई करते समय मजदूरों की जान जाना कोई नहीं बात नहीं है. ये बात सुनने में थोड़ी कड़वी जरूर है, लेकिन है बिल्कुल सच. सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने गुरुवार को संसद में 1993 से अब तक देश में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय जाने वाली जानों का आंकड़ा (Sewer Cleaning Labour Death) जारी किया है. जिससे पता चलता है कि पिछले 31 सालों में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 1200 से ज्यादा जानें जा चुकी हैं.
सीवर की सफाई के दौरान 1 मजदूर की मौत
दक्षिण-पूर्वी दिल्ली के न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी में सीवर की सफाई करते समय दम घुटने से 43 साल के एक मजदूर की मौत हो गई, जबकि दो अन्य मजदूर गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती हैं. पुलिस ने एक बयान में कहा कि रविवार शाम करीब 5.45 बजे दिल्ली जल बोर्ड के सीवर की सफाई करते समय पंथ लाल चंद्र नाम के मजदूर की मौत हो गई. वहीं दो अन्य मजदूर रामकिशन चंद्र और शिव दास का इलाज अस्पताल में चल रहा है.
जहरीली गैस से बेहोश हो गए 3 मजदूर
अधिकारियों ने बताया कि दमकल विभाग और स्थानीय पुलिस की टीमों ने तीनों को बेहोशी की हालत में मेनहोल से बाहर निकाला. इस संबंध मामला दर्ज किया गया है और आगे की कार्रवाई की जा रही है. जानकारी के मुताबिक, पुलिस ने BNS की धारा 105 और मैला ढोने वालों के नियमन और पुनर्वास अधिनियम, 2013 की धारा 7 और 9 के तहत केस दर्ज किया है.
दिल्ली जल बोर्ड के सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस का रिसाव होने की वजह से तीनों मजदूर बेहोश हो गए. घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस और दमकल विभाग की टीम तुरंत मौके पर पहुंची और उनको बाहर निकालकर अस्पताल में भर्ती करवाया.लेकिन तब तक एक मजदूर की मौत हो चुकी थी. हैरानी की बात यह है कि देश में मैनुअ सीवर की सफाई पर कानूनन बैन है, लेकिन फिर भी अक्सर ऐसे हादसे होते रहते हैं.
1993 से अब तक 1200 से ज्यादा मौतें
इससे पहले भी सीवर में सफाई के दौरान जानें जाने के मामले अलग-अलग जगहों से सामने आते रहे हैं. सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने राज्यसभा में आंकड़े शेयर कर बताया कि पिछले 31 सालों में 1248 जानें जा चुकी हैं. सीवर और सेप्टिक टैंक में सफाई के दौरान सबसे ज्यादा 253 जानें तमिलनाडु में गई. उसके बाद गुजरात में 183, उत्तर प्रदेश में 133 और दिल्ली में 116 लोगों की मौत हो चुकी है.
देश के पास चांद तक पहुंचने की तकनीक है. लेकिन सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए आज भी मशीनों की कमी है. यही वजह है कि मजदूर इस जहरीली गैस वाले टैंकरों में खुद उतरकर सफाई करते हैं. कई बार तो उनकी जान तक चली जाती है.
1993 में लगा था सीवरों की मैनुअल सफाई पर बैन
देश में साल 1993 में पहली बार सीवरों की मैनुअल सफाई और मैला ढोने की प्रथा पर बैन लगाया गया था. इसके 20 साल बाद मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट, 2013 के जरिए इस पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी गई. कानून के मुताबिक, अगर मजदूरों को परिस्थितिवश अगर सीवर में उतरना पड़ता है को उनको 27 दिशानिर्देशों का पालन करना होगा.
संसद में एक सवाल के जवाब में आठवले ने कहा कि हाथ से मैला उठाने की वजह से किसी की मौत की सूचना नहीं मिली है, इसका मतलब है कि अस्वच्छ शौचालयों से मानव मल उठाने का काम नहीं किया गया है. कोई भी व्यक्ति या एजेंसी कानूनी रूप से किसी को भी मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए हायर नहीं कर सकती.
"हाथ से मैला ढोने की कोई रिपोर्ट नहीं"
इस पर उन्होंने लिखित जवाब में कहा, " अगर कोई व्यक्ति या एजेंसी एमएस अधिनियम, 2013 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए किसी भी व्यक्ति को मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए नियुक्त करती है, उसे अधिनियम की धारा 8 के तहत दो साल तक की कैद या 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जिलों से हाथ से मैला ढोने की कोई रिपोर्ट नहीं मिली है."