- दिल्ली-एनसीआर में त्योहारों के दौरान प्रदूषण बढ़ता है, इसलिए ग्रीन पटाखे कम प्रदूषण फैलाने का विकल्प बने हैं
- ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में 20 से 30 प्रतिशत कम प्रदूषण करते हैं.
- बच्चों का मानना है कि ग्रीन पटाखों से भी हानिकारक गैसें और धूलकण निकलते हैं.
हर साल त्योहारों के मौसम में दिल्ली-एनसीआर की हवा जहरीली हो जाती है. इस बार प्रदूषण कम करने के प्रयास में ‘ग्रीन पटाखे' एक विकल्प के रूप में बाजार में लाए गए हैं. दावा किया जा रहा है कि ये पारंपरिक पटाखों की तुलना में 20-30% कम प्रदूषण फैलाते हैं. हालांकि, चौपाल के दौरान जब बच्चों से पूछा गया कि पटाखों के बारे में तो बच्चों का भी मानना है कि आतिशबाजी से प्रदूषण होता है. इसलिए बहुत से बच्चों ने पटाखों सामानय पटाखों की जगह हल्के आवाज वाले और कम धुन वाले पटाखे जलाने का समर्थन किया और कुछ बच्चों ने दिवाली को प्रकाश पर्व के रूप में पारंपरिक तरीके से मनाने की बात कही.
बच्चों और उनकी अध्यापिकाओं का मानना है ग्रीन पटाखों से भी हानिकारक गैसें व धूलकण निकलते हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये सच में प्रदूषण रोक पाएंगे या सिर्फ नाम बदलकर पुराने तरीके ही वापसी करेंगे.
क्या पहचान पाएंगे लोग ‘ग्रीन' पटाखे? प्रशासन की निगरानी पर सवाल
ग्रीन पटाखों की अनुमति मिलने पर एक नई चुनौती सामने आती है. क्या आम लोग और प्रशासन यह पहचान पाएंगे कि कौन से पटाखे वास्तव में ‘ग्रीन' हैं और कौन पारंपरिक? विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीन पटाखों पर विशेष QR कोड या चिन्ह लगाए जाने का प्रावधान है, लेकिन बाजार में नकली उत्पादों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. ऐसे में नियमों के क्रियान्वयन पर निगरानी को लेकर गंभीर प्रश्न उठ खड़े हुए हैं.