बंबिहा गैंग: सब्जी मंडी से रंगदारी वसूल कर करते थे 'टेरर फंडिंग', चार्जशीट में NIA का खुलासा

एनआईए को अपनी जांच में ये भी पता चला कि मंडी के अंदर जो जेनरेटर ऑपरेटर काम करते थे उनसे भी हर महीने 1 लाख रुपए रंगदारी के तौर पर मांगे जाते थे. लहसुन और मशरूम बेचने वालों छोटे विक्रेताओं से भी लिये 5000 रुपए महीने के लिए जाते थे. 

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नई दिल्ली:

NIA की तरफ से जांच में दायर चार्जशीट में बंबिहा गैंग पर गंभीर आरोप लगाए गए हैं. एनआईए ने अपनी जांच में पाया कि बंबिहा गैंग से जुड़े कुख्यात गैंगस्टर कौशल चौधरी, अमित डागर और संदीप बंदर गुरुग्राम की खांडसा मंडी से सब्ज़ी बेचने वालों से हर महीने एक फिक्स रकम रंगदारी के तौर पर वसूलते थे. एनआईए ने अपनी चार्जशीट  (charge sheet) में खुलासा किया है कि साल 2010 से गैंगस्टर सब्ज़ी वालो से पैसे वसूलते थे. पहले ये काम सूबे गुर्जर करता था लेकिन 2016 के बाद कौशल चौधरी अमित डगर की मदद से रंगदारी वसूलने लगा,रंगदारी को पूरी तरह संगठित तरीके से वसूला जाता जिसको बाकायदा 'राहत' सेवा का नाम दिया और उसको अमित डगर की पत्नी ट्विंकल कौशिक अपने सहयोगियों के ज़रिए चलाती और रंगदारी वसूलती थी. 

हर ट्रक मालिक से लिए जाते थे 25000 रुपए महीना

एनआईए को जांच के दौरान ये भी पता चला कि गुरुग्राम की खांडसा और दिल्ली की आजादपुर मंडी से कौशल चौधरी और अमित डागर गैंग ट्रक ऑपरेटर्स से हर महीने 1 लाख 25000 रुपए रंगदारी के तौर पर लेते थे. यहां तक कि जांच के दौरान पता चला कि जो पॉलिथीन 120-130 रुपए किलो बिकती थी उसको 160 से 179 किलो के रेट पर बेचे जाता ताकि बड़ा हुआ मुनाफा गैंग मेंबर को दिया जाए. 

जेनरेटर ऑपरेटर से वसूले जाते थे 1 लाख रुपए महीना

एनआईए को अपनी जांच में ये भी पता चला कि मंडी के अंदर जो जेनरेटर ऑपरेटर काम करते थे उनसे भी हर महीने 1 लाख रुपए रंगदारी के तौर पर मांगे जाते थे. लहसुन और मशरूम बेचने वालों छोटे विक्रेताओं से भी लिये 5000 रुपए महीने के लिए जाते थे. 

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कौशल चौधरी और अमित डागर गैंग मंडी से वसूलता था 25 लाख रुपए महीना

एनआईए ने अपनी चार्जशीट में खुलासा किया है कि कौशल चौधरी और अमित डागर गैंग सब्ज़ी मंडियों से हर महीने 25 लाख रुपए की रंगदारी वसूलते थे, अगर कोई सब्ज़ी बेचने वाला इनको रंगदारी देने से मना कर देता तो ये उसके साथ मारपीट और उसकी रेहड़ी को तोड़ देते थे और यही कारण था कि कोई भी इनकी शिकायत पुलिस से नहीं करता था. कौशल चौधरी ने अपने डर के इसी कारोबार को दिल्ली की कई सब्ज़ी की मार्किट में फैला दिया था जिसमे पालम और वसंत कुंज जैसे इलाके भी शामिल है. जिसके बाद ये लोग शराब के ठेको का कॉन्ट्रैक्ट भी लेने लगे ताकि ज्यादा मुनाफा हो सके और उन पैसों से हथियार खरीदे और पैसों को खालिस्तानी आतंकियों तक पहुंचाया जाए.

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