- पंजाब के फिरोजपुर में मां-बेटे ने भारतीय वायुसेना की हवाई पट्टी बेची
- 28 साल बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर मामले का पर्दाफाश हुआ है.
- शिकायत सेवानिवृत्त कनूंगो निशान सिंह ने की थी.
- उषा अंसल और उनके बेटे ने फर्जी दस्तावेज़ों से जमीन बेची.
अब तक आपने बॉलीवुड फिल्मों में ही देखा होगा कि कैसे बंटी-बबली की सुपरहिट जोड़ी जैसे किरदार चालाकी से लोगों को बड़ा चूना लगाते हैं. मगर पंजाब के फिरोजपुर में असल ज़िंदगी का एक मामला तो इन सबको भी पीछे छोड़ गया. दरअसल यहां एक मां-बेटे की जोड़ी ने ऐसी ठगी कर डाली, जिसे सुनकर ही लोगों को दिमाग घूम जाएगा. कमाल ये है कि, इन्होंने किसी दुकान, खेत, या इमारत को नहीं बेचा — बल्कि भारतीय वायुसेना की ऐतिहासिक हवाई पट्टी ही बेच डाली, जहां से हमारे जांबाज़ फाइटर पायलट तीन-तीन युद्धों (1962, 1965 और 1971) में दुश्मनों के दांत खट्टे कर चुके थे. 28 साल पहले हुए इस मां-बेटे के कारनामे का पर्दाफाश अब जाकर हाईकोर्ट के निर्देश और विजिलेंस जांच के बाद हुआ है. मां-बेटे के खिलाफ गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज हो चुकी है.
कैसे हुआ खुलासा?
इस मामले के खुलासे की शुरूआत एक व्हिसलब्लोअर की शिकायत से हुई. दरअसल इस पूरे मामले का पर्दाफाश हुआ निशान सिंह नामक एक सेवानिवृत्त कनूंगो की शिकायत से, जिन्होंने पंजाब विजिलेंस ब्यूरो के निदेशक को पत्र लिखकर मामले में जांच कराने की मांग की. उन्होंने बताया कि किस तरह दुमनी वाला गांव की उषा अंसल और उनके बेटे नवीन चंद अंसल ने रेवेन्यू ऑफिसर्स की मिलीभगत से इस जमीन पर झूठा मालिकाना हक साबित कर उसे बेच डाला.
हाईकोर्ट की सख्ती
हालांकि इस मामले में शिकायत मिलने के बाद भी जब कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो निशान सिंह ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी. कोर्ट ने इस मामले को गंभीर मानते हुए पंजाब विजिलेंस ब्यूरो के मुख्य निदेशक को स्वयं इसकी सच्चाई की जांच कर रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया.
क्या कहती है जांच रिपोर्ट? जमीन की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
जांच में सामने आया कि यह हवाई पट्टी फत्तूवाला गांव, जो पाकिस्तान सीमा के बेहद करीब है, वहां पर स्थित है. इस जमीन को 12 मार्च 1945 को ब्रिटिश शासन ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रॉयल एयर फोर्स के लिए अधिग्रहित किया गया था. बाद में यही जमीन भारतीय वायुसेना के अधीन आ गई और तीन युद्धों में इसका इस्तेमाल लैंडिंग ग्राउंड के तौर पर किया गया.
फर्जीवाड़े की परतें खुलीं
जब मामले की जांच की गई तो यह भी स्पष्ट हुआ कि उषा अंसल और नवीन चंद अंसल ने कुछ निचले स्तर के अधिकारियों की मिलीभगत से हेरफेर करके खुद को इस जमीन का मालिक दिखा दिया. इसके बाद 1997 में इसे दूसरों को बेच भी दिया. हैरानी की बात यह रही कि असली मालिक मदन मोहन लाल की मृत्यु तो 1991 में ही हो गई थी, फिर भी 1997 में बोगस बिक्री के दस्तावेज बनाए गए.
कानूनी शिकंजा कसना शुरू
हाईकोर्ट के आदेश पर विजिलेंस जांच पूरी होने के बाद अब इस मामले में एफआईआर दर्ज कर ली गई है. केस में आईपीसी की धारा 419 (छलपूर्वक स्वांग धारण करना), 420 (धोखाधड़ी व बेइमानी से संपत्ति दिलवाना), 465, 467, 471 (जालसाजी व जाली दस्तावेजों का प्रयोग) तथा 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) लगाई गई हैं. अब इस केस की जांच डीएसपी करन शर्मा के नेतृत्व में की जा रही है. उनका कहना है कि अभी यह पता लगाया जा रहा है कि और कौन-कौन इस षड्यंत्र में शामिल थे.
रक्षा मंत्रालय को फिर से सौंप दी गई जमीन
हाईकोर्ट की फटकार और विस्तृत जांच के बाद मई 2025 में आखिरकार यह जमीन औपचारिक रूप से फिर रक्षा मंत्रालय को सौंप दी गई. पंजाब प्रशासन ने भी अपनी रिपोर्ट में माना कि यह जमीन अभी भी रिकॉर्ड में वैसी ही है जैसी 1958-59 में थी और उस पर सेना का ही कब्जा है.
राष्ट्रीय सुरक्षा पर भी उठा सवाल
हाईकोर्ट ने फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर को भी फटकार लगाई कि उन्होंने इतनी गंभीर शिकायत पर समय रहते कैसे कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा तक को खतरा पहुंच सकता था, क्योंकि सीमा के नजदीक की ऐसी अहम जमीन अगर गलत हाथों में चली जाए तो भारी मुश्किल हो सकती है. ऐसे मामले को अनदेखा नहीं किया जा सकता है.