विश्व कप में भारतीय टीम की सफलता में विकेट से पीछे लोकेश राहुल का शानदार योगदान रहा है. राहुल ने बल्ले से कई बार टीम के लिए बेहतरीन पारी खेलने के साथ विकेट के पीछे कुछ कमाल के कैच लपके हैं और डीआरएस (डिसीजन रिव्यू सिस्टम यानी मैदानी अंपायर के फैसले की समीक्षा) से जुड़े फैसलों में वह कप्तान रोहित शर्मा के सच्चे सिपहसालार साबित हुए है. पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के समय डीआरएस पर उनके सही फैसलों के कारण भारतीय क्रिकेट में इसे 'धोनी रिव्यू सिस्टम' कहा जाता था तो वही अब राहुल की काबिलियत से इसे 'डिसीजन राहुल सिस्टम' कहा जाने लगा है.
रोहित की विस्फोटक बल्लेबाजी, विराट कोहली का संयमित खेल और मोहम्मद शमी की कातिलाना गेंदबाजी के सामने भले ही राहुल की बल्लेबाजी की चर्चा अधिक ना हो लेकिन मौजूदा विश्व कप में जब भी टीम को उनके बल्ले से योगदान की जरूरत थी उन्होंने ने अपनी इस भूमिका को पूरी तरह से निभाया.
राहुल ने विश्व कप में इस दौरान 99 की स्ट्राइक रेट और 77 के औसत से 386 रन बनाये. भारतीय टीम के लिए पदार्पण के बाद से ही कौशल के मामले में राहुल को कोहली और रोहित जैसा प्रतिभाशाली खिलाड़ी माना जाता है लेकिन लचर शॉट खेलकर आउट हो जाने के कारण वह अतीत में उस रुतबे को हासिल नहीं कर पाये. यही कारण है कि सिडनी, लॉर्ड्स और सेंचुरियन जैसे मैदान पर शतक लगाने वाले इस खिलाड़ी को भारतीय क्रिकेट में ‘अंडर-अचीवर (उम्मीद से कम सफलता पाने वाला)' माना जाता है.
केएल राहुल के करियर में शानदार बल्लेबाजी के बीच कुछ ऐसे भी क्षण आये जब उन्हें खुद भी अपनी बल्लेबाजी की काबिलियत पर शक होने लगा. ऐसी स्थिति में विकेटकीपर की भूमिका निभाने से उनके मन का संदेह दूर हुआ और बल्ले से भी उनके प्रदर्शन में काफी सुधार आया. सेमीफाइनल में राहुल ने जिस तरह से डेवोन कॉनवे का कैच पकड़ा उसे देख कर महेंद्र सिंह धोनी भी निश्चित रूप से खुश हुए होंगे.
मौजूदा टूर्नामेंट में 10 मैचों में उन्होंने 16 (15 कैच और एक स्टंपिंग) शिकार किये है. वह विकेट के पीछे सबसे ज्यादा शिकार के मामले में सिर्फ दक्षिण अफ्रीका के दिग्गज क्विंटन डिकॉक से ही पीछे है. ऐसे खिलाड़ी जो कुछ समय पहले तक कीपिंग नहीं करता था उसके लिए यह बड़ी उपलब्धि है.
डीआरएस से जुड़े फैसले के बारे में राहुल के निर्णय शानदार रहे हैं. भारत के पूर्व कीपर दीप दासगुप्ता का कहना है कि इसका कारण स्टंप के पीछे उनका 'परफेक्ट फुटवर्क' है क्योंकि उन्हें इस बात का सटीक अंदाजा है कि गेंद कहां खत्म होगी. गुप्ता ने कहा, 'डीआरएस केवल विकेटकीपर का निर्णय नहीं है. विकेटकीपर न तो 'इंपैक्ट' और न ही ऊंचाई का अनुमान लगा सकता है. दासगुप्ता ने पूरी प्रक्रिया समझाते हुए कहा, "स्क्वायर लेग अंपायर के बगल में खड़ा खिलाड़ी गेंद की उंचाई पर नजर रखता है जबकि कीपर को उसके मूवमेंट से पता चल जाएगा कि गेंद कहां खत्म होगी."
डीआरएस से जुड़े सही फैसलों के मामले में धोनी माहिर थे. दासगुप्ता ने कहा कि धोनी के समय डीआरएस से जुड़े फैसले बेकार नहीं जाते थे. उन्होंने कहा,"अगर आप संख्या देखें तो धोनी के अधिकांश डीआरएस की मांग 'अंपायर्स कॉल' के साथ गए हैं. इसलिए जब भारत के पक्ष में कोई निर्णय नहीं मिला, तो भी वह कम से कम डीआरएस को बचाये रखने में सफल रहे. गलती की गुंजाइश काफी कम रहती थी. राहुल के साथ भी ऐसा ही है. वह ऐसे खिलाड़ी है जो इस मामले में अधिक उत्साह दिखाने वाले गेंदबाज पर काबू कर सकते है."
विश्व कप में प्रसारक के रूप में काम कर रहे दासगुप्ता को राहुल के साथ बातचीत करने का मौका मिला और उन्होंने महसूस किया कि मानसिक रूप से उनकी सोच एक विकेटकीपर की है. दासगुप्ता ने कहा,"उन्होंने एक बातचीत के दौरान मुझसे कहा कि वह खुद को 'पार्टटाइम' कीपर के रूप में नहीं देखते हैं और खुद को कीपर-बल्लेबाज के रूप में देखते हैं."
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