IND vs NZ: 'पांच नवंबर 1987 को वानखेड़े की वह शाम...', पूर्व कप्तान अज़हरुद्दीन ने भारत बनाम न्यूजीलैंड के बीच सेमीफाइनल से पहले सुनाई वो दास्तान

IND vs NZ WC 2023 Semifinal: भारत ने इसके बाद हालांकि 2 अप्रैल 2011 को वानखेड़े स्टेडियम में ही फाइनल में श्रीलंका को हराकर खिताब जीता था

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Mohammad Azharuddin on IND vs NZ WC 2023

Wankhede Stadium WC 2023 IND vs NZ: संन्यास की घोषणा कर चुका एक दिग्गज आहत था, एक बेहद प्रतिभाशाली स्पिनर फिर से कभी अपना पुराना जलवा नहीं दिखा सका, एक प्रेरणादायी कप्तान को अपना पद छोड़ना पड़ा और वानखेड़े स्टेडियम की सीमा रेखा के पार से सब कुछ देख रहा 14 वर्ष का एक किशोर संभवत: यह सौगंध खा रहा था कि उनकी कहानी इससे भिन्न होगी. किशोर खिलाड़ी निश्चित तौर पर सचिन तेंदुलकर था जबकि हार से आहत दिग्गज सुनील गावस्कर, जिन्होंने पहले ही अपने संन्यास की घोषणा कर दी थी तथा 1987 के विश्व कप सेमीफाइनल में भारत की इंग्लैंड के हाथों पराजय के बाद वह कभी भारतीय टीम की तरफ से नहीं खेले.

बाएं हाथ के विश्व स्तरीय स्पिनर मनिंदर सिंह इसके बाद कभी अपना खास जलवा नहीं दिखा पाए जबकि कपिल देव को अपनी कप्तानी गंवानी पड़ी थी. यह पांच नवंबर 1987 को वानखेड़े स्टेडियम में घटी घटना है जब इंग्लैंड के ग्राहम गूच ने स्वीप शॉट का शानदार नमूना पेश करके 115 रन बनाए और इंग्लैंड ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. भारत यह मैच हार गया और दर्शकों को निराश होकर अपने घर लौटना पड़ा.

बुधवार को जब रोहित शर्मा (Rohit Sharma on IND vs NZ) की अगुवाई वाली भारतीय टीम विश्व कप सेमीफाइनल (WC 2023 Semifinal) में न्यूजीलैंड का सामना करेगी तो घरेलू प्रशंसक यही प्रार्थना कर रहे होंगे कि उन्हें निराश होकर घर नहीं लौटना पड़े. भारत ने इसके बाद हालांकि 2 अप्रैल 2011 को वानखेड़े स्टेडियम में ही फाइनल में श्रीलंका को हराकर खिताब जीता था लेकिन 1987 के सेमीफाइनल में शामिल रहे कुछ खिलाड़ियों को उस दिन की हार आज भी कचोटती है.

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तीन विश्व कप में भारत की कप्तानी करने वाले एकमात्र खिलाड़ी मोहम्मद अजहरूद्दीन ( Mohammad Azharuddin on IND vs NZ WC 2023 Semifinal) ने पीटीआई से कहा,‘‘मैं अपने करियर में दो बार बेहद आहत हुआ. पहली बार 1987 में वानखेड़े में सेमीफाइनल में हारने पर और दूसरी बार 1996 में ईडन गार्डंस में श्रीलंका से हार झेलने पर.'' उन्होंने कहा,‘‘दोनों अवसर पर हमारी टीम काफी मजबूत थी और हम परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ थे. किसी को विश्वास नहीं था कि हम हार जाएंगे. हमने 1987 में 15 रन के अंदर पांच विकेट गंवाए. पाजी (कपिल देव) के आउट होने के बाद मैच का पासा पलट गया.''

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मनिंदर को भी 1987 की हार का मलाल है, लेकिन उनका मानना है क्या अगर उस जमाने में निर्णय समीक्षा प्रणाली (डीआरएस) होती तो कहानी भिन्न हो सकती थी. मनिंदर ने कहा,‘‘लोग आज तक कहते हैं कि गूच ने पूरे मैच में हमारी गेंदों को स्वीप किया लेकिन अगर कोई वह मैच देखेगा तो आपको पता चल जाएगा कि वह कई बार टर्न लेती गेंदों से परेशानी में रहा. कुछ गेंद विकेट के करीब से होकर निकल गई. कुछ सीधी गेंद को स्वीप करने के प्रयास में वह चूक गया था लेकिन तब डीआरएस नहीं था. उस समय आपको फ्रंट फुट के लिए एलबीडब्ल्यू नहीं मिलता था.''

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उन्होंने कहा,‘‘उस दिन चार-पांच खिलाड़ियों की आंखों में आंसू थे. वह टीम बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही थी जैसे कि मौजूदा टीम कर रही है. हम एक दूसरे की सफलता का भरपूर आनंद लेते थे.'' तो क्या वर्तमान टीम को न्यूजीलैंड से सतर्क रहना चाहिए, मनिंदर ने कहा,‘‘ नहीं इस बार न्यूजीलैंड को भारत से सावधान रहना होगा.''

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