एक तरह इंटरनेशनल क्रिकेट चल रही है, तो घरेलू क्रिकेटर में भी कुछ खिलाड़ी धूम मचाए हुए हैं. और इनमें सबसे ऊपर नाम है पृथ्वी शॉ (Prithvi Shaw) का, जिन्होंने चल रही विजय हजारे ट्रॉफी में इस सेशन में चार शतकों के साथ सबसे ज्यादा रन बनाए हैं. और अभी रविवार को फाइनल खेला जाना बाकी है. पृथ्वी ने टूर्नामेंट के 7 मैचों में 188.5 के औसत से 754 र बनाए हैं. और जिस तरह की फॉर्म में पृथ्वी हैं, उसे देखते हुए अगर वह फाइनल में भी शतक बना देते हैं, तो हैरानी की बात बिल्कुल भी नहीं होगी. हां हैरानी की बात कुछ समय पहले जरूर थी, जब उनका बल्ला आईपीएल और भारत के लिए बेदम हो गया था और वह बहुत ही संघर्षरत दिखाई पड़ रहे थे. बहरहाल, खराब समय से उबरने के लिए शॉ ने कड़ी मेहनत की. अवसाद से भी गुजरे, लेकिन अब फिर से उन्होंने फॉर्म पकड़ ली है. शॉ ने एक अखबार को दिए इंटरव्यू में बताया कि कैसे-कैसे उन्होंने काम किया और किसकी सलाह से उन्हें खोयी फॉर्म हासिल करने में मदद मिली.
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पृथ्वी बोले कि खराब दिनों में उन्होंने खुद के भीतर के भरोसे को मरने नहीं दिया. रवि सर (शास्त्री) और विक्रम सर (राठौर) ने मुझे एहसास कराया कि मैं कहां गलत हूं. मुझे इसका समाधान ढूंढना था. मेरी बल्लेबाजी में छोटी तकनीकी खामी हो रही थी और मुझे इसे नेट में दुरुस्त करना था. एडिलेड में पिंक गेंद से दो खराब पारियों ने मेरी अच्छी तस्वीर नहीं बनायी. मेरी बैकलिफ्ट ठीक पहले जैसी ही थी, लेकिन यह शरीर से थोड़ा दूर से आ रही थी. मेरे शुरुआत मूवमेंट को लेकर भी कुछ समस्या थी. और मझे अपने बल्ले को शरीर के नजदीक रखना था, जो नहीं हो पा रहा था.
पृथ्वी ने कहा कि पहले टेस्ट के बाद टीम से बाहर होने पर मैं पूरी तरह से तनाव में था. मुझे अपने भीतर खालीपन का एहसास हो रहा था, लेकिन टीम के लिए मैं खुश था. मैंने अपने आप से कहा कि टैलेंट होना बढ़िया बात है, लेकिन अगर मैं मेहनत नहीं करता, तो इसका इस्तेमाल न होने पर कोई मोल नहीं है. टीम से बाहर किया जाना मेरे लिए सबसे दुखद दिन था. मैं अपने कमरे में गया और फूट-फूटकर रोया. मैंने महसूस किया कि कुछ गलत हो रहा था और इसके जल्द ही समाधान की जरूरत थी.
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पृथ्वी ने खुलासा करते हुए बताया कि कैसे सचिन की एक सलाह ने उनकी बहुत मदद की. पृथ्वी बोले की टीम से बाहर होने के बाद मुझे लगातार फोन आ रहे थे, लेकिन मैंने किसी से बात नहीं की. मैं बात करने की मनोदशा में नहीं था. दिमाग में अलग-अलग बातें चल रही थीं. बातें हो रही थीं कि मेरा बल्ला गली की तरफ से आता है, लेकिन मैंने अपने जीवन में हमेशा इसी ही शैली और तकनीक से रन बनाए. समस्या यह थी कि मैं आउट हो रहा था और मुझे इसे जल्द सुधारना था. लौटने के बाद मैं सचिन सर (तेंदुलकर) से मिला. उन्होंने मुझसे ज्यादा बदलाव न करने को कहा और शरीर के नजदीक गेंद कोखेलने की सलाह दी. ऑस्ट्रेलिया दौरे में मैं गेंद को देरी से खेल रहा था. इसलिए पूरे ऑस्ट्रेलिया दौरे में मैंने इसी पहलू पर काम किया.
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