कोई किसान की बेटी तो कोई झुग्गी झोपड़ी में पली... मिसाल है वर्ल्ड चैंपियन इन 11 बेटियों के संघर्ष की कहानी

Indian Women World Cup Team: वर्ल्ड चैंपियन बनी टीम की इस कामयाबी के पीछे उनके संघर्ष और अटूट साहस की कहानी भी छिपी है. शेफाली वर्मा हों या राधा यादव, सबकी कहानी आपके दिल को छू लेगी.

विज्ञापन
Read Time: 7 mins
INDW vs SAW Final: जश्न मनाती हुईं भारतीय खिलाड़ी
फटाफट पढ़ें
Summary is AI-generated, newsroom-reviewed
  • मंधाना ने 9 साल की उम्र में महाराष्ट्र की अंडर-15 टीम में जगह बनाई और 2013 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट शुरू किया
  • हरमनप्रीत ने पंजाब के मोगा से संघर्ष कर रेलवे में नौकरी की तथा अर्जुन पुरस्कार के बाद पुलिस में नियुक्ति पाई
  • तेज गेंदबाज रेणुका ठाकुर ने दो साल की उम्र में पिता खो दिए और गांव में लकड़ी के बैट से क्रिकेट खेलना शुरू किया
क्या हमारी AI समरी आपके लिए उपयोगी रही?
हमें बताएं।
नई दिल्ली:

यह सच है कि शिखर तक कोई यूं नहीं पहुंचता, सब कुछ झोंकने के बाद ही कामयाबी कदम चूमती है. वर्ल्ड चैंपियन टीम इंडिया के खिलाड़ियों के शुरुआती संघर्ष की कहानी इसकी तस्दीक करती है. कप्तान हरमनप्रीत कौर हों या शेफाली वर्मा... छोटे परिवार खिलाड़ियों ने बड़े मंच पर सफलता के झंडे गाड़ने के पहले बड़ा संघर्ष झेला. महिला क्रिकेट के लिए फैमिली और सोसायटी के सपोर्ट की कमी, संसाधनों की कमी जैसी चुनौतियों से पार पाते हुए आज ये सिकंदर बन चुकी हैं. हर कोई उनके नाम के कसीदे काढ़ रहा है.


स्मृति मंधाना ने कभी प्लास्टिक बैट से खेला क्रिकेट
टीम इंडिया की ओपनर बाएं हाथ की बल्लेबाज स्मृति मंधाना ने कभी प्लास्टिक बैट से खेलना शुरू किया था और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा. स्मृति ने सिर्फ 9 साल की उम्र में महाराष्ट्र की अंडर-15 और 11 साल की उम्र में अंडर-19 टीम में जगह बनाई. स्मृति मंधाना ने 16 साल की उम्र में अप्रैल 2013 में बांग्लादेश के खिलाफ भारत के लिए पहला इंटरनेशनल मैच खेला.उन्होंने विस्फोटक पारी खेली. 2017 के आईसीसी महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप के दौरान प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट बनीं.भारत 2005 के बाद पहली बार फाइनल में पहुंचा. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 90 रनों और न्यूजीलैंड के खिलाफ 86 रन बनाए.

हरमनप्रीत कौर का हौसला
पंजाब के छोटे से शहर मोगा में जन्मी हरमनप्रीत कौर के पास क्रिकेट की सुविधाओं के लिए पैसे नहीं थे. उनके पिता को कम पैसे की वजह छोटा बल्ला लाकर देना पड़ा. प्रारंभ में उन्होंने पुरुषों के साथ क्रिकेट खेला, क्योंकि महिलाओं के माहौल और सुविधाएं कम थीं.हरमनप्रीत को रेलवे में नौकरी के लिए भी संघर्ष करना पड़ा, लेकिन पूर्व क्रिकेटर डायना एडुल्जी ने उनकी मदद की. 2017 में अर्जुन पुरस्कार मिलने के बाद उन्हें पंजाब पुलिस में डिप्टी एसपी बनाया गया था, लेकिन कुछ कागजी दिक्कतों से उन्हें पद छोड़ना पड़ा.

रेणुका ठाकुर ने बचपन में ही पिता को खो दिया था
टीम इंडिया की तेज गेंदबाज रेणुका ठाकुर 2 साल की थीं, जब उनके पापा की मौत हो गई थी. मां सुनीता ठाकुर का कहना है कि अगर वो होते तो बहुत खुशी उनको होती लेकिन जो रेणुका ने किया वो उनका सपना पूरा हुआ. रेणुका ने लकड़ी के बैट और कपड़े के बॉल से गांव के ग्राउंड में खेलना शुरू किया था. वो लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थी. उन्होंने रेणुका के चाचा भूपेंद्र सिंह ठाकुर का भी रेणुका को यहां तक पहुंचाने में बड़ा योगदान है.

झोपड़ी में पली बढ़ीं राधा यादव
राधा यादव को अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी. राधा को कोच प्रफुल्ल नाइक ने काफी मदद की. राधा का बचपन मुंबई की कोलिवरी क्षेत्र की झोपड़ी में कटा.पिता के पैसे नहीं थे कि अच्छे स्कूल एडमिशन हो सके या क्रिकेट अकादमी में प्रवेश मिल सके.कोच प्रफुल्ल पटेल ने राधा यादव का साथ दिया. आज राधा यादव अपनी बॉलिंग से विपक्षियों को चित कर रही हैं. राधा का परिवार यूपी के जौनपुर जिले के अजोशी गांव से ताल्लुक रखता है. पिता प्रकाश चंद्र यादव किस्मत बदलने के लिए मुंबई में दूध का कारोबार करने लगे. राधा 17 साल की उम्र में टीम इंडिया में शामिल हुईं.

Advertisement

किसान की बेटी हैं चरणी
आंध्र प्रदेश के येरमल पल्ले गांव की एन चरणी की चकरघिन्नी बना देने वाली गेंदबाजी ने वर्ल्ड कप में सबको हैरान कर दिया. 16 साल की उम्र तक चरणी ने बैडमिंटन, एथलेटिक्स और कबड्डी में किस्मत आजमाई और फिर क्रिकेट में दांव लगाया. पहले वो तेज गेंदबाज बनना चाहती थीं, लेकिन फिर चाचा किशोर कुमार रेड्डी ने क्रिकेट से कनेक्ट हो गईं. जबकि पिता क्रिकेट के खिलाफ थे लेकिन मां के समर्थन से वो इस मुकाम तक पहुंचीं. एक वक्त उनका परिवार काफी कर्ज में डूबा था. पहले वो तेज गेंदबाज बनना चाहती थीं, फिर कामयाबी नहीं मिली तो स्पिनर बन गईं.

शेफाली ने कभी खराब ग्लब्स और बैट से की थी प्रैक्टिस
वीरेंद्र सहवाग की तरह विस्फोटक बल्लेबाज शेफाली वर्मा को तो खराब प्रदर्शन की वजह से वर्ल्ड कप से बाहर बैठाया गया था. हालांकि प्रतिका रावल के चोटिल होने पर किस्मत से उन्हें मौका मिला. फाइनल में तो उन्होंने हॉफ सेंचुरी के साथ 2 विकेट लेकर पासा ही पलट दिया.  शेफाली वर्मा को टीम से ड्रॉप करने के दो दिन पहले उनके पिता को हार्ट अटैक आया था.उन्होंने पिता से यह बात छिपाई थी. रोहतक में जन्मीं शेफाली वर्मा एक साल से ज्यादा वक्त तक वनडे टीम का हिस्सा नहीं थीं. शेफाली शुरुआती दिनों में खराब ग्लब्स और बैट से अभ्यास करना पड़ा. बेटी की शिकायत पर उनके पिता ने मेरठ से छह ब्रांडेड बल्ले लाकर बेटी का हौसला बढ़ाया. 

Advertisement

ऋचा घोष ने छत पर प्रैक्टिस की
टीम इंडिया की विकेटकीपर ऋचा घोष के अंदर इतना जज्बा था कि कोरोना काल के दौरान उन्होंने छत पर प्रैक्टिस कर खेल को निखारा. घरवालों का सपना पूरा करने के लिए ऋचा ने इंटरमीडिएट में 92 फीसदी अंक हासिल कर लोहा मनवाया और फिर साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन किया. घरेलू क्रिकेट में दमदार प्रदर्शन के बावजूद उन्हें सेलेक्शन में काफी संघर्ष करना पड़ा. लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई. आज वो महिला वनडे क्रिकेट में 1 हजार रन बनाने वाली सबसे तेज भारतीय और साझा तौर पर दुनिया की खिलाड़ी बन गई हैं.ऋचा के पिता मानवेंद्र घोष ने कहा कि उन्होंने तकनीकी प्रैक्टिस के साथ बेबाकी से क्रिकेट खेलने की सलाह दी. 

Team India

हरलीन देओल फुटबॉल छोड़ क्रिकेटर बनीं
पंजाब के पटियाला जिले की हरलीन देओल का ननिहाल संगरूर में है, लेकिन वो हिमाचल से खेलती हैं और अभी मोहाली में फैमिली रहती है. कारोबारी पिता बीएस देओल और सरकारी कर्मचारी की बेटी हरलीन की दिलचस्पी बचपन से खेलकूद में थी. जबकि परिवार में कोई ऐसे बैकग्राउंड से नहीं था. चरणजीत कौर के मुताबिक, उनके परिवार में किसी की दिलचस्पी खेलकूद में नहीं थी लेकिन हरलीन बचपन से ही स्पोर्ट्स से जुड़ गई थीं.हैरी नाम से मशहूर हरलीन बचपन में क्रिकेट नहीं फुटबॉल खेलती थीं. 4 साल की उम्र से ही वो लड़कों के साथ फुटबॉल खेलने लगी थीं. स्कूली दिनों में कई सालों तक वो बेस्ट फुटबॉलर रहीं.

Advertisement

जेमिमा रोड्रिग्ज की मानसिक जंग
जेमिमा 5 सितंबर 2000 को मुंबई के भांडुप इलाके में मिडिल क्लास परिवार में जन्मी थीं. क्रिकेट कोच पिता इवान रॉड्रिग्ज ने उन्हें सिखाया. स्कूल में लड़कियों की क्रिकेट टीम नहीं थी तो पिता ने खुद टीम बनाई और बेटी को प्रैक्टिस कराई. जेमिमा ने 10 साल की उम्र से क्रिकेट खेलना शुरू किया और अंडर-19 में जगह बनाई.वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में उनकी यादगार पारी के बाद उन्होंने मानसिक संघर्ष का जिक्र किया. वो एंग्जायटी से जूझ रही थीं. कई बार वो मां को कॉल करके सिर्फ रोती रहती थीं. उन्हें सब कुछ सुन्न लग रहा था, जैसे शरीर चल रहा हो, लेकिन मन कहीं और हो, लेकिन माता-पिता ने उन्हें हौसला दिया. 

अमनजोत कौर की ताकत
पंजाब के मोहाली शहर की रहने वाली अमनजोत कौर ने संगरूर से क्रिकेट का सफर शुरू किया. घर की आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं थी, लेकिन पिता के हौसले ने उन्हें आगे बढ़ाया. अब वो मध्यम तेज गति की गेंदबाजी के साथ टीम इंडिया की मध्यम क्रम बल्लेबाजी की जान हैं.

भारत की सबसे युवा खिलाड़ी हैं शेफाली

शेफाली वर्मा भारतीय महिला टीम की निडर और आक्रामक सलामी बल्लेबाज हैं. जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के तीनों प्रारूपों में भारत की सबसे युवा खिलाड़ी के तौर पर खेलने का रिकॉर्ड बनाया है.

Advertisement

यह भी पढ़ें- कहानी गुरु अमोल मजूमदार की: वो गुमनाम 'अगला सचिन', जिसकी 'शेरनियों' ने जीत लिया वर्ल्ड कप

Featured Video Of The Day
India Wins Women ODI World Cup: 52 साल का सूखा खत्म, चैंपियन बेटियों की जीत के जश्न में डूबा देश
Topics mentioned in this article