कप्तान गिल का फॉर्मूला: ‘जीत प्रथम’ इसलिए 7 में से 6 टेस्ट पांचवें दिन तक खिंचे 

IND vs WI 2nd Test: टीम इंडिया के खिलाड़ी मानते हैं कि उन्हें 5 दिनों तक मैदान पर रहकर जीत के लिए सोचने की आदत पड़ गई है.

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Shubman Gill IND vs WI 2nd Test
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  • चौथे दिन वेस्ट इंडीज़ की टीम दूसरी पारी में 390 रन बनाकर ऑल आउट हुई, भारत को 121 रनों का लक्ष्य मिला
  • जीत पर फोकस के साथ कप्तान गिल और कोच सौरभ गांगुली की जोड़ी मैच को पांचवें दिन तक खिंचने पर भरोसा रखती है
  • गिल की कप्तानी में खेले गए सात में से छह मैच पांचवें दिन तक चले, पहली पारी में बड़े स्कोर पर ध्यान रहा
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IND vs WI 2nd Test: दिल्ली टेस्ट के चौथे दिन जब विंडीज़ टीम दूसरी पारी में 390 रन बनाकर ऑल आउट हुई तो भारत को जीत के लिए 121 रनों का लक्ष्य मिला. चौथे दिन वेस्ट इंडीज़ को 18 ओवर करने का टारगेट मिला. टीम इंडिया इन 18 ओवर में भी मैच पर कब्ज़ा जमाकर मैच को पांचवें दिन तक जाने से रोक भी सकती थी. लेकिन क्रिकेट के जानकार टीम इंडिया की नई सोच के मुताबिक आश्वस्त दिखे कि मैच का नतीजा पांचवें दिन ही निकलेगा.  

‘हर हाल में जीत चाहिए'

फ़ैन्स चौथे दिन के मैच खत्म होने की उम्मीद लगाये रहे. लेकिन कोच-कप्तान यानी गंभीर-गिल की जोड़ी ऐसे नहीं सोचती. कप्तान शुभमन बराबर कहते आये हैं विपक्षी कोई भी हो ना तो टीम को कभी भी अपना तेवर या इंटेनसिटी कम करनी है ना ही जीत से कम कभी कुछ भी सोचना है. ये नई टीम इंडिया है जहां टीम के लिए सभी मैच का एक ही फॉर्मूला है- ‘हर हाल में जीत' का फॉर्मूला.   

टीम इंडिया के खिलाड़ी मानते हैं कि उन्हें 5 दिनों तक मैदान पर रहकर जीत के लिए सोचने की आदत पड़ गई है. वाशिंगटन सुंदर ने दिल्ली टेस्ट के चौथे दिन 36 ओवर गेंदबाजी करने के बाद कहा, "इंग्लैंड सीरीज ने हमें वास्तव में समझाया कि पांच दिनों तक मैदान पर रहना कैसा होता है, क्योंकि इंग्लैंड में भी हमने हर मैच में लगभग 180-200 घंटे बिताए थे."

मुझे मेरे एक्शन से परखें, बयानों से नहीं: लॉर्ड रिपन 

इंग्लैंड दौरे से पहले 25 साल के शुभमन गिल को टेस्ट कप्तान नियुक्त किया गया तो ये सवाल बना रहा कि गिल किस तरह के कप्तान होंगे. उनकी तुलना सौरव गांगुली, एमएस धोनी और विराट कोहली के साथ रोहित शर्मा तक से होती रही. इन कप्तानों की सोच की बड़ी रेंज को देखते हुए ये भी कयास लगाये जाते रहे कि इनमें से किस कप्तान की सोच मौजूदा कप्तान में ज़्यादा झलकेगी. कप्तान गिल अपनी बैटिंग के वक्त एकदम सॉलिड और कप्तानी के बोझ से एकदम बेफिक्र दिखकर खुद को पिछले सभी कप्तानों से जुदा साबित कर देते हैं. 

ब्रिटिश गवर्नर जनरल लॉर्ड रिप्पन ने कहा था, “मुझे मेरे एक्शन से परखें, बयानों से नहीं.” ये बात शुभमन गिल पर भी फिट बैठती है. बोलते वो नाप-तोल कर हैं. लेकिन, बतौर बैटर-कप्तान वो जो करते हैं उसमें एक अलग सोच ज़रूर नज़र आती है. 

कप्तान के लिए भी दूसरे टेस्ट के शुरू होने से पहले कहा था, "ईमानदारी से कहूं तो शारीरिक रूप से यह कम थकाऊ रहा है, मानसिक रूप से अधिक थकाऊ है, क्योंकि जब आप खिलाड़ी होते हैं, तो आप बस कुछ होने का इंतजार कर रहे होते हैं, गेंद आपके पास आने का इंतजार कर रहे होते हैं. जबकि कप्तान के रूप में, आप अधिकतर सोचते रहते हैं, इसलिए आप मानसिक रूप से अधिक शामिल होते हैं." 

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इसलिए खिंच गए 7 टेस्ट में से 6 टेस्ट पांचवें दिन तक 

कप्तान शुभमन गिल की कप्तानी में खेले गए 7 में से 6 टेस्ट मैच हैरतअंगेज़ तरीके से पांचवें दिन तक खिंचे हैं. माना जा सकता है कि जीत के मंत्र साथ खेलती इस टीम की कप्तानी सतर्क रहती है, रन बटोरने के लिए मजबूत बल्लेबाजी पर फोकस होता है और मज़बूत या कमज़ोर विपक्षी टीम के बावजूद टीम इंडिया की सोच नहीं बदलती. 

पहली पारी में बड़ा स्कोर

इन सातों टेस्ट की पहली पारी में टीम इंडिया बड़े स्कोर खड़े करने के नीयत से मैदान पर उतरी है. ऐसे में कप्तान गिल या टीम मैनेजमेंट का फोकस पहली पारी में टीम के बड़े स्कोर पर ज़्यादा रहा है. ये टीम जोखिम से ज़्यादा आश्वस्त होकर ‘समझदारी भरा फैसला' लेती दिखी है. इंग्लैंड में इसके बेहतर नतीजे भी देखने को मिले हैं. 

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दूसरी पारी में विकेट निकालना हुआ है मुश्किल

एक और बात खास दिखी है कि भारतीय गेंदबाज कई बार दूसरी पारी में विकेट की तलाश में रही है और विपक्षी टीम कई बार पांव जमाकर खेलती दिखी है. दूसरी पारी में जल्दी विकेट नहीं निकाल पाना टीम इंडिया की गेंदबाज़ी में उतने ही पैनेपन की कमी के तौर पर देखा जा सकता है. हालांकि पिच, मौसम, टॉस और हालात के भी रोल से इंकार नहीं किया जा सकता. कप्तान गिल ये भी कहते रहे हैं कि टीम मैनेजमेंट तेज़ गेंदबाज़ी का बेंच और मज़बूत करने का इरादा रखती है. 

जो जीता वही सिकंदर

टीम इंडिया के फैंस भी आखिरकार जीत ही चाहते हैं और ब्रैंड टीम इंडिया का खेल आखिरकार जीत और हार की कसौटी पर ही परखा जाना है. इसलिए खेल का पांचवें दिन तक खिंचना कोई दाग या स्टिग्मा नहीं. टेस्ट मैच देखने वाले फ़ैंस में वैसे भी धैर्य की कमी नहीं होती. हां, इससे 5 दिन के टेस्ट का मज़ा और बाज़ार का फ़ायदा ज़रूर बढ़ता नज़र आता है.

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