मुंबई (Mumbai) में भारत के सबसे पुराने रेसकोर्सों में से एक “महालक्ष्मी रेसकोर्स” (Mahalaxmi Racecourse) है. इस 211 एकड़ में फैले रेसकोर्स की 120 एकड़ जमीन महाराष्ट्र सरकार ने बीएमसी को ट्रांसफर कर दी है. इससे क्या 140 वर्षों का इतिहास समेटे रेसकोर्स के अस्तित्व का संघर्ष समाप्त हो गया है? इस मुद्दे पर विपक्ष क्यों हमलावर है? पर्यावरणविद क्यों लड़ाई आगे ले जाने की चेतावनी दे रहे हैं? कई सवा हैं जो सरकार के फैसले से उपजे हैं.
भारतीयों की पहली घुड़दौड़ के गवाह मुंबई के महालक्ष्मी रेसकोर्स की 120 एकड़ भूमि आखिरकार महाराष्ट्र सरकार ने मुंबई नगर निगम को सौंपने के लिए मंजूरी दे दी है. इस पर विपक्ष के हमलों के जवाब में सरकार दावा करती है कि इस जमीन का उपयोग सेंट्रल पार्क, खुली जगहों और उद्यानों के लिए किया जाएगा.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि, ''विपक्ष कुछ भी कहे, यह निर्णय लिया गया है कि प्रस्तावित केंद्रीय पार्क स्थल पर कोई निर्माण गतिविधि नहीं की जाएगी.''
मुंबई के महालक्ष्मी रेसकोर्स की 211 एकड़ भूमि में से 91 एकड़ भूमि रॉयल वेस्टर्न इंडिया टर्फ क्लब (RWITC) को 30 साल के पट्टे पर दी जाएगी. रेसकोर्स का प्रबंधन देखने वाला टर्फ क्लब घुड़दौड़ ट्रैक पर रेस आयोजित करता है.
रेसकोर्स की बाकी 120 एकड़ जमीन अंतरराष्ट्रीय मानकों पर केंद्रीय पार्क के निर्माण के लिए बीएमसी को ट्रांसफर की जाएगी. अभी तक यह जगह लीज पर दी जाती थी.
महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और शिवसेना के उद्धव ठाकरे गुट के नेता आदित्य ठाकरे ने सरकार की मंशा पर शक जताया. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार लौटी तो इसकी प्राकृतिक स्थिति को बहाल किया जाएगा.
'साइट पर कोई थीम पार्क नहीं होना चाहिए'
आदित्य ठाकरे ने कहा कि, “शर्मनाक है कि भाजपा-शिवसेना सरकार अपने पसंदीदा बिल्डरों और ठेकेदारों के लिए खुली जगहों पर कब्जा करने की कोशिश कर रही है. जब हम राज्य में सरकार बनाएंगे तो हम इसकी प्राकृतिक स्थिति को बहाल करेंगे और उन लोगों को कानूनी रूप से दंडित करेंगे जिन्होंने अपने निजी लाभ के लिए रेसकोर्स को देने के लिए मिलीभगत की. साइट पर कोई थीम पार्क नहीं होना चाहिए, जमीन के ऊपर या नीचे कोई निर्माण नहीं होना चाहिए और विरासत संरचनाओं को कोई नुकसान नहीं होना चाहिए.”
मुंबई के महालक्ष्मी इलाके में बना महालक्ष्मी रेसकोर्स एक घुड़दौड़ ट्रैक है जिसका निर्माण और उद्घाटन वर्ष 1883 में किया गया था. सन 1914 में इसकी जमीन रॉयल वेस्टर्न इंडिया टर्फ क्लब को 99 साल की लीज पर दी गई थी. सन 2013 में यह लीज समाप्त हो गई.
दक्षिण मुंबई में बसे लोगों के लिए यह रेसकोर्स उनके जीवन का अहम हिस्सा है. इसके अंदर वॉकिंग-रनिंग ट्रैक से लेकर मौजूद प्ले ग्राउंड बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों के लिए अहम है. पर्यावरणविद कहते हैं कि अगर इस खुली जगह पर किसी तरह का निर्माण हुआ तो लड़ाई आगे लेकर जाएंगे.
ओपन स्पेस की तरह इस्तेमाल हो रहे रेसकोर्स में क्या ओपन स्पेस बनेगा?
पर्यावरणविद जोरू बथेना ने कहा कि, ''जो पहले से ओपन स्पेस की तरह इस्तेमाल होता है वहां वे क्या ओपन स्पेस बनाएंगे? यानी कि जो ओरिजिनल प्लान उनका थीम पार्क, लंदन आई व्हील की तरह यहां झूले लगाने का प्लान था, उसमें विरोध के बाद शायद थोड़ी तब्दीली कर रहे हैं, लेकिन कोई भरोसा नहीं. इसलिए निर्माण अगर किया तो लड़ाई आगे बढ़ाएंगे.''
मुंबई के महालक्ष्मी रेसकोर्स के एक हिस्से को एक बड़े थीम पार्क में बदलने के महाराष्ट्र सरकार के पहले के कथित प्रस्ताव ने तीव्र विवाद को जन्म दिया था. इसके खिलाफ सिग्नेचर कैंपेन शुरू हुए थे. नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित आलोचकों ने तर्क दिया था कि इस योजना से लैंड डेवलपर्स द्वारा वाणिज्यिक शोषण के द्वार खुलने का जोखिम है, जो शहर की बची-खुची खुली जगह में से इस एक जगह को खत्म कर सकता है. सरकार ने फिलहाल यहां वादा सेंट्रल पार्क, उद्यान बनाए जाने का किया है, लेकिन लोगों में शक कायम है.
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