Bihar News: बिहार के समस्तीपुर जिले के कल्याणपुर थाने में पिछले कुछ दिनों से हलचल तेज थी. जिले के एसपी अरविंद प्रताप सिंह ने एक कड़ा फैसला लेते हुए थानाध्यक्ष राकेश कुमार शर्मा को तत्काल प्रभाव से उनके पद से हटा दिया है. इस फैसले के बाद जिले के पुलिस गलियारों में सन्नाटा पसरा है. एसपी के आदेश के बाद अब कल्याणपुर थाने की कमान वहां के अपर थानाध्यक्ष दीपक झा को सौंप दी गई है.
क्या है पूरा मामला?
इस पूरी कहानी की शुरुआत समस्तीपुर से नहीं, बल्कि गोपालगंज जिले से होती है. साल 2020 में राकेश कुमार शर्मा गोपालगंज जिले में पदस्थापित थे. उस दौरान उनके खिलाफ कोर्ट में एक मामला दर्ज कराया गया था. हालांकि, उस समय मामला प्रक्रिया में था और इसी बीच उनका तबादला समस्तीपुर जिले में हो गया.
समस्तीपुर आने के बाद उनकी कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें कल्याणपुर थाने का थानाध्यक्ष (SHO) बना दिया गया. सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन कानून के हाथ लंबे होते हैं. हाल ही में कोर्ट ने पुराने मामले का संज्ञान लिया और राकेश कुमार शर्मा पर विभागीय कार्रवाई (Departmental Action) चलाने का कड़ा निर्देश जारी कर दिया.
क्यों गंवानी पड़ी SHO की कुर्सी?
जैसे ही कोर्ट के आदेश की सूचना और डीओ (District Order) समस्तीपुर पुलिस कार्यालय पहुंची, एसपी अरविंद प्रताप सिंह ने बिना देरी किए एक्शन लिया. पुलिस विभाग के कड़े नियमों के मुताबिक, 'यदि किसी पुलिस अधिकारी पर कोई विभागीय जांच या अनुशासनात्मक कार्रवाई चल रही हो, तो वह किसी भी थाने का थानाध्यक्ष (SHO) नहीं बना रह सकता.'
इसी नियम का पालन करते हुए राकेश शर्मा को पद से हटाया गया. अब सबसे दिलचस्प बात यह है कि उन्हें कहीं बाहर नहीं भेजा गया है, बल्कि वे कल्याणपुर थाने में ही जेएसआई (Junior Sub-Inspector) के रूप में तैनात रहेंगे.
नए थानाध्यक्ष दीपक झा के सामने चुनौतियां
राकेश कुमार शर्मा की जगह अब दीपक झा को थाने का प्रभार दिया गया है. दीपक झा पहले इसी थाने में अपर थानाध्यक्ष के पद पर तैनात थे. अब उनके कंधों पर इलाके की कानून व्यवस्था बनाए रखने और लंबित मामलों को निपटाने की बड़ी जिम्मेदारी है. स्थानीय लोगों और पुलिस कर्मियों के बीच यह चर्चा का विषय बना हुआ है कि कैसे एक पुराने केस ने 'साहब' की कुर्सी छीन ली.
एसपी अरविंद प्रताप सिंह का सख्त रुख
मीडिया से बात करते हुए एसपी अरविंद प्रताप सिंह ने स्पष्ट किया कि यह कार्रवाई पूरी तरह से नियमों के तहत की गई है. उन्होंने बताया कि जैसे ही गोपालगंज से विभागीय कार्रवाई के आदेश प्राप्त हुए, नियमों के आलोक में थानाध्यक्ष को पद से हटाना अनिवार्य था.
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