प्रतीकात्मक चित्र
नई दिल्ली:
आपमें कुछ पाने की जिद्द हो और आप उसके लिए दिन रात एक कर कड़ी मेहनत करना जानते हों तो आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता. कुछ ऐसा ही कर दिखाया है पश्चिम बंगाल की 30 वर्षीय जोइता मंडल ने. अपनी मेहनत की वजह से जोइता देश की पहली ट्रांस्जेंटर जज बन गई हैं. वह सामाजिक कार्यों में भी काफी सक्रिय रही हैं. उन्होंने वृद्धाश्रम के संचालन के साथ साथ रेड लाइट इलाके में रह रहे परिवारों के लिए भी काफी काम किया है. खास बात यह है कि जोइता पहले एक आम किन्नर की तरह ही अपने इलाके में बच्चों के पैदा होने पर घर-घर जाकर तालियां बजाती थीं. उनके इसी सेवा और समर्पण के भाव को देखते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने उनका सम्मान करते हुए उन्हें लोक अदालत का न्यायाधीश नामांकित किया है.
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जोइता पश्चिम बंगाल सरकार के इस फैसले से काफी खुश हैं. जोइता ने बताया कि वे भी अपने आप को आम लड़की की तरह ही समझती थीं,.बचपन इसी तरह बीता, जब उम्र 18 वर्ष के करीब थी, तब उनका भी मन दुर्गा पूजा के वक्त सजने संवरने का हुआ, वे ब्यूटी पार्लर जा पहुंचीं, लौटकर आई तो घर के लोग नाराज हुए. दरअसल, घर वाले उन्हें लड़का मानते थे. उस वक्त उन्हें इसके लिए पिटाई की गई. उन्होंने कहा, "जब कॉलेज जाती थी तो सभी उनका मजाक उड़ाया करते थे, इसके चलते पढ़ाई छोड़ दी. वर्ष 2009 में उन्होंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया, कहां जाएंगी कुछ भी तय नहीं था, इतना ही नहीं एक रुपये भी पास में नहीं था. दिनाजपुर पहुंची तो होटल में रुकने नहीं दिया गया, बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं."
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जोइता बताती हैं कि दिनाजपुर में हर तरफ से मिली उपेक्षा के बाद उन्होंने किन्नरों के डेरे में जाने का फैसला किया और फिर वही सब करने लगीं जो आम किन्नर करते हैं, बच्चे के पैदा होने पर बधाई गाना, शादी में बहू को बधाई देने जाना. आम किन्नर की तरह ही उन्होंने भी नाचना गाना शुरू कर दिया.हालांकि उन्होंने इसके बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसी के साथ उन्होंने वर्ष 2010 में दिनाजपुर में एक संस्था बनाई जो किन्नरों के हक के लिए काम करती है. इसके बाद उन्होंने बुजुर्गो के लिए वृद्धाश्रम भी स्थापित किया.
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इसके अलावा रेड लाइट इलाके में रहने वाली महिलाओं, उनके बच्चों के राशन कार्ड, आधार कार्ड बनवाए और पढ़ाई के लिए प्रेरित किया."जोइता अपनी सफलता का श्रेय अपनी जिद्द और कड़ी मेहनत को देती हैं. (इनपुट आईएएनएस से)
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जोइता पश्चिम बंगाल सरकार के इस फैसले से काफी खुश हैं. जोइता ने बताया कि वे भी अपने आप को आम लड़की की तरह ही समझती थीं,.बचपन इसी तरह बीता, जब उम्र 18 वर्ष के करीब थी, तब उनका भी मन दुर्गा पूजा के वक्त सजने संवरने का हुआ, वे ब्यूटी पार्लर जा पहुंचीं, लौटकर आई तो घर के लोग नाराज हुए. दरअसल, घर वाले उन्हें लड़का मानते थे. उस वक्त उन्हें इसके लिए पिटाई की गई. उन्होंने कहा, "जब कॉलेज जाती थी तो सभी उनका मजाक उड़ाया करते थे, इसके चलते पढ़ाई छोड़ दी. वर्ष 2009 में उन्होंने घर छोड़ने का फैसला कर लिया, कहां जाएंगी कुछ भी तय नहीं था, इतना ही नहीं एक रुपये भी पास में नहीं था. दिनाजपुर पहुंची तो होटल में रुकने नहीं दिया गया, बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पर रातें गुजारीं."
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जोइता बताती हैं कि दिनाजपुर में हर तरफ से मिली उपेक्षा के बाद उन्होंने किन्नरों के डेरे में जाने का फैसला किया और फिर वही सब करने लगीं जो आम किन्नर करते हैं, बच्चे के पैदा होने पर बधाई गाना, शादी में बहू को बधाई देने जाना. आम किन्नर की तरह ही उन्होंने भी नाचना गाना शुरू कर दिया.हालांकि उन्होंने इसके बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी. इसी के साथ उन्होंने वर्ष 2010 में दिनाजपुर में एक संस्था बनाई जो किन्नरों के हक के लिए काम करती है. इसके बाद उन्होंने बुजुर्गो के लिए वृद्धाश्रम भी स्थापित किया.
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इसके अलावा रेड लाइट इलाके में रहने वाली महिलाओं, उनके बच्चों के राशन कार्ड, आधार कार्ड बनवाए और पढ़ाई के लिए प्रेरित किया."जोइता अपनी सफलता का श्रेय अपनी जिद्द और कड़ी मेहनत को देती हैं. (इनपुट आईएएनएस से)
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