नयी दिल्ली:
देश में समय-समय पर असहनशीलता को लेकर छिड़ने वाली बहस और सोशल मीडिया के दौर में ‘बढ़ रही धार्मिक कट्टरता’ की पृष्ठभूमि में जामिया मिलिया इस्लामिया का इस्लामी अध्ययन विभाग देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में ग्रेजुएट लेवल के छात्रों को ‘सहनशीलता और सह-अस्तिव’ के मूल्य समझाएगा ताकि युवा बेहतर समाज के निर्माण में सकारात्मक योगदान दे सकें.
‘सहिष्णुता और सह-अस्तिव’ से जुड़े इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोजेक्ट के तहत देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में कार्यशालाओं और संगोष्ठियों का आयोजन किया जाना है जिनमें विभिन्न धर्मों से ताल्लुक रखने वाले विशेषज्ञ और बुद्धिजीवी छात्रों को धार्मिक सद्भाव और भारत के बहुसांस्कृतिक समाज के महत्व से अवगत कराएंगे.
इसके अलावा छात्रों के लिए एक पुस्तिका भी तैयार की जा रही है जिसमें धार्मिक जानकारों के लेख होंगे जो भारत के बहुसांस्कृतिक समाज और मूल्यों को समर्पित होंगे. जामिया के इस प्रोजेक्ट में ब्रिटिश उच्चायोग सहयोग कर रहा है.
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क्यों महसूस हुई इसकी जरूरत
जामिया के इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर और इस प्रोजेक्ट के निदेशक जुनैद हारिस ने से कहा, ‘‘देश में कई बार असहिष्णुता और धार्मिक कट्टरता बढ़ने की बात की जाती है. इसी को ध्यान में रखते हुए इस तरह के प्रोजेक्ट की जरूरत महसूस हो रही थी और हमने इसको लेकर प्रयास किया. पहले जामिया की तरफ से इसे मंजूरी मिली और फिर ब्रिटिश उच्चायोग ने हमारी इस पहल में सहयोग का फैसला किया.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने ग्रेजुएशन में पढ़ाई करने वाले छात्रों को इस प्रोजेक्ट से जोड़ने का फैसला किया है क्योंकि जीवन का यह मुकाम (ग्रेजुएशन) समाज एवं देश को लेकर दृष्टिकोण बनाने के लिए काफी अहम होता है. हम यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पूजा-पाठ के तौर-तरीकों को छोड़ दें तो समाज के सभी वर्गों के बुनियादी मुद्दे समान हैं. इसलिए हमें धार्मिक टकराव की बजाय सबके महत्व के मुद्दों को हल करने पर ध्यान देना चाहिए.’’
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एएमयू, जोधपुर, पटियाला, लखनऊ में भी होगी वर्कशॉप
जामिया के इस्लामी अध्ययन विभाग के इस प्रोजेक्ट के तहत पहली वर्कशॉप अभी इसी केंद्रीय विश्वविद्यालय में हुई. आने वाले दिनों में एएमयू, जोधपुर, पटियाला, लखनऊ तथा देश के कुछ अन्य प्रमुख शिक्षण संस्थानों में ‘सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व’ पर केंद्रित वर्कशॉप्स का आयोजन किया जाएगा. प्रोफेसर हारिस ने कहा, ‘‘सोशल मीडिया के इस दौर में धार्मिक कट्टरता बढ़ने की बात की जा रही है. आज के समय में युवाओं को आसानी से गुमराह किया जा सकता है. इसके मद्देनजर भी हमारे इस प्रयास का बहुत महत्व है. हमारी कोशिश है कि हमारे युवा बेहतर समाज और राष्ट्र निर्माण में सकारात्मक योगदान दें.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जामिया मिलिया इस्लामिया की बुनियाद ही समाज और भारत के निर्माण में सकारात्मक योगदान के मकसद से हुई है और इस संस्थान ने समय-समय पर इस बात को साबित भी किया है. यह प्रोजेक्ट इसी प्रयास का हिस्सा है.’’
‘सहिष्णुता और सह-अस्तिव’ से जुड़े इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोजेक्ट के तहत देश के प्रमुख शिक्षण संस्थानों में कार्यशालाओं और संगोष्ठियों का आयोजन किया जाना है जिनमें विभिन्न धर्मों से ताल्लुक रखने वाले विशेषज्ञ और बुद्धिजीवी छात्रों को धार्मिक सद्भाव और भारत के बहुसांस्कृतिक समाज के महत्व से अवगत कराएंगे.
इसके अलावा छात्रों के लिए एक पुस्तिका भी तैयार की जा रही है जिसमें धार्मिक जानकारों के लेख होंगे जो भारत के बहुसांस्कृतिक समाज और मूल्यों को समर्पित होंगे. जामिया के इस प्रोजेक्ट में ब्रिटिश उच्चायोग सहयोग कर रहा है.
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जामिया के इस्लामी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर और इस प्रोजेक्ट के निदेशक जुनैद हारिस ने से कहा, ‘‘देश में कई बार असहिष्णुता और धार्मिक कट्टरता बढ़ने की बात की जाती है. इसी को ध्यान में रखते हुए इस तरह के प्रोजेक्ट की जरूरत महसूस हो रही थी और हमने इसको लेकर प्रयास किया. पहले जामिया की तरफ से इसे मंजूरी मिली और फिर ब्रिटिश उच्चायोग ने हमारी इस पहल में सहयोग का फैसला किया.’’ उन्होंने कहा, ‘‘हमने ग्रेजुएशन में पढ़ाई करने वाले छात्रों को इस प्रोजेक्ट से जोड़ने का फैसला किया है क्योंकि जीवन का यह मुकाम (ग्रेजुएशन) समाज एवं देश को लेकर दृष्टिकोण बनाने के लिए काफी अहम होता है. हम यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि पूजा-पाठ के तौर-तरीकों को छोड़ दें तो समाज के सभी वर्गों के बुनियादी मुद्दे समान हैं. इसलिए हमें धार्मिक टकराव की बजाय सबके महत्व के मुद्दों को हल करने पर ध्यान देना चाहिए.’’
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जामिया के इस्लामी अध्ययन विभाग के इस प्रोजेक्ट के तहत पहली वर्कशॉप अभी इसी केंद्रीय विश्वविद्यालय में हुई. आने वाले दिनों में एएमयू, जोधपुर, पटियाला, लखनऊ तथा देश के कुछ अन्य प्रमुख शिक्षण संस्थानों में ‘सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व’ पर केंद्रित वर्कशॉप्स का आयोजन किया जाएगा. प्रोफेसर हारिस ने कहा, ‘‘सोशल मीडिया के इस दौर में धार्मिक कट्टरता बढ़ने की बात की जा रही है. आज के समय में युवाओं को आसानी से गुमराह किया जा सकता है. इसके मद्देनजर भी हमारे इस प्रयास का बहुत महत्व है. हमारी कोशिश है कि हमारे युवा बेहतर समाज और राष्ट्र निर्माण में सकारात्मक योगदान दें.’’ उन्होंने कहा, ‘‘जामिया मिलिया इस्लामिया की बुनियाद ही समाज और भारत के निर्माण में सकारात्मक योगदान के मकसद से हुई है और इस संस्थान ने समय-समय पर इस बात को साबित भी किया है. यह प्रोजेक्ट इसी प्रयास का हिस्सा है.’’
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