अगर आप भी उन लोगों में से हैं जो इनकम टैक्स के दायरे से बचने के लिए हाउस रेंट की फर्जी रसीद का इस्तेमाल करते हैं तो अब सतर्क हो जाएं. दरअसल सही रसीद तो जमा करवानी होती हैं और यह आईटी कानून के तहत आपका अधिकार भी है. लेकिन यदि रसीद फर्जी है तो आप इस बार दिक्कत में फंस सकते हैं.
ऐसा देखा गया कि कंपनी भी इस बाबत ज्यादा पड़ताल नहीं करती और आईटी विभाग भी इसकी संभवत: अनदेखी सी करता पाया गया लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा. इकनॉमिक टाइम्स की वेबसाइट पर इस संबंध में छपी खबर के मुताबिक, नौकरीपेशा कोई भी शख्स रेंट हाउस अलाउंस जो प्राप्त कर रहा हो, रेंट रसीद देकर इस हिस्से का 60 फीसदी तक टैक्स बचा सकता है. ऐसा देखा गया कि कंपनी भी इस बाबत ज्यादा पड़ताल नहीं करती और आईटी विभाग भी इसकी संभवत: अनदेखी सी करता पाया गया लेकिन अब से ऐसा नहीं होगा. खबर के मुताबिक, इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल की रूलिंग ने सैलरी पाने वाले कर्मचारियों के क्लेम पर विचार करने और जरूरी होने पर उस पर सवाल करने के लिए आकलन अधिकारी के सामने एक मानक रख दिया है. यह छूट लेने वाले की ही जवाबदेही होगी कि वह टैक्स छूट पाने के लिए नियमों का पालन करे.
ट्रिब्यूनल के वर्डिक्ट के हवाले से वेबसाइट ने लिखा है कि आकलन कर रहा अधिकारी रेंट पर रहने का सबूत मांग सकता है. वह हो सकता है कि लाइसेंस अग्रीमेंट मांगे, या फिर हाउसिंग को-ऑपरेटिव सोसायटी को लिखा गया लेटर जिसमें किराए पर होने का जिक्र हो, बिजली का बिल या पानी का बिल मांगा जा सकता है. कुल मिलाकर यह है कि आईटी अधिकारी आपसे आपकी दी गई रसीदों के आधार पर यह सबूत मांगने के लिए स्वतंत्र है कि आप वाकई बताए गए घर में किराए पर रहते हैं कि नहीं. कुछ मामलों में असल में किरायेदार होने पर भी किराये की रकम बढ़ाकर दिखाई जाती है और यह भी इस बार उलटा पड़ सकता है.