रुपया अपने सबसे निचले स्तर पर, समझिए क्यों गिर रहा रुपया और क्या हैं इसके फायदे-नुकसान

Rupee Hits Its Lowest Level: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से एयरलाइन एयर इंडिया की लागत संरचना और लाभप्रदता पर भी दबाव पड़ता है. जानिए क्यों फर्क पड़ता है...

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Rupee Hits Its Lowest Level: रुपया सोमवार को कारोबार के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सर्वकालिक निचले स्तर 86.31 पर आ गया.

मुंबई:

Rupee Hits Its Lowest Level: अमेरिकी मुद्रा के मजबूत रुख और कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के बीच रुपया सोमवार को कारोबार के दौरान अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सर्वकालिक निचले स्तर 86.31 पर आ गया. करीब दो साल में स्थानीय मुद्रा में यह सबसे बड़ी गिरावट है. भारतीय मुद्रा में 30 दिसंबर के 85.52 प्रति डॉलर के बंद स्तर से पिछले दो सप्ताह में एक रुपये से अधिक की बड़ी गिरावट आई है.

अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय बाजार में रुपया 86.12 पर खुला. कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले यह अबतक के सबसे निचले स्तर 86.31 पर पहुंच गया.रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 18 पैसे टूटकर 86.04 पर बंद हुआ था.

इस बीच, छह प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की स्थिति को दर्शाने वाला डॉलर सूचकांक 0.11 प्रतिशत की बढ़त के साथ 109.60.पर रहा. अमेरिका के 10 साल के बॉन्ड पर प्रतिफल बढ़कर अक्टूबर, 2023 के स्तर 4.78 प्रतिशत पर पहुंच गया. अंतरराष्ट्रीय मानक ब्रेंट क्रूड 1.42 प्रतिशत की बढ़त के साथ 80.92 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर रहा.

क्यों गिर रहा रुपया?

भारत समेत दुनिया भर की करेंसी में तेज गिरावट देखने को मिल रही है. क्यों गिर रहा है रुपया? ऑल टाइम लो पर क्यों पहुंच गया है? और रुपया गिरने से नुकसान क्या होता है? एनडीटीवी प्रॉफिट के विकास सिन्हा के अनुसार, ये जो गिरावट है शेयर बाजार की, ये इम्पोर्टेड गिरावट है. अब मैं ये इसको क्यों कह रहा हूं, उसको एक्सप्लेन करता हूं. यूएस की वजह से हम सबसे ज्यादा इस वक्त गिर रहे हैं. यूएस ने जो चीज़ें की हुईं हैं, उसकी वजह से हम गिर रहे हैं.

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यूएस में उम्मीद थी की रेट कट होगा. फेड रेट कट करेगा, लेकिन फेड के रेट कट करने की उम्मीद जो है वो कम हो गई, तब वहां का जो अनएम्प्लॉयमेंट का डाटा आया वो काफी उत्साहवर्धक था. वहां पर बेरोजगारी काफी घटी है. अब बेरोजगारी घटने का इम्पैक्ट ये हुआ कि जो रेट कट की उम्मीद थी, वो रेट कट की उम्मीद अब नहीं रही है. अब लग रहा है कि वो थोड़ा टल सकता है, जिसकी वजह से अब इंडिया के अलावा जितने मार्केट हैं, उन सब पर इम्पैक्ट पड़ रहा है. जो विदेशी निवेशक हैं, वो पैसे निकालेंगे और वो यूएस के मार्केट में शिफ्ट करेंगे पैसे. क्योंकि वो उनके लिए सेफ हैवन है. वहां पर उनको रिटर्न अच्छे मिलेंगे. रेट कट अगर नहीं होता है तो उसकी वजह से एक तो गिरावट चल रही थी. दूसरी जो जियो पॉलिटिकल तमाम चल रही हैं, वो तो इम्पैक्ट कर ही रही हैं. तीसरा ये हुआ कि क्रूड का जो प्राइस है वो लगातार बढ़ता जा रहा है. अभी अगर आप देखेंगे तो अस्सी डॉलर के भी क्रूड पार निकल गया है. तो ये तीन फैक्टर तो हैं ही रुपये की कमजोरी के. 

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एयर इंडिया पर भी असर

शेयर बाजार के आंकड़ों के मुताबिक, विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) शुक्रवार को बिकवाल रहे थे और उन्होंने शुद्ध रूप से 2,254.68 करोड़ रुपये के शेयर बेचे. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट से एयरलाइन एयर इंडिया की लागत संरचना और लाभप्रदता पर भी दबाव पड़ता है. कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हालांकि, एयरलाइन के पास कुछ प्राकृतिक बचाव है क्योंकि यह उन अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए अधिक किराया ले सकती है जहां टिकटों की कीमत विदेशी मुद्राओं में होती है.  हाल के सप्ताहों में भारतीय रुपया गिरता रहा है और 10 जनवरी को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 86.04 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. कमजोर रुपये के कारण एयरलाइन कंपनियों के परिचालन खर्च बढ़ता है, क्योंकि उनकी अधिकांश लागत डॉलर में होती है.

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रुपया गिरने से क्या घाटा?

अर्थशास्त्री मिताली ने बताया कि मुझे ये लगता है कि जब तक इंडियन गवर्नमेंट की तरफ से कुछ इन्वेस्टमेंट की अनाउंसमेंट नहीं आती हैं, जो की मुझे लगता है बजट के टाइम पर आएंगी और अभी दो-तीन हफ्ते ही बचे हैं बजट आने के तो, उससे मार्केट का सेंटीमेंट थोड़ा सा अच्छा होगा, लेकिन तब तक हम ये डेफिनिटली देखेंगे की दो तो तीन हफ्ते हमारे लिए कुछ थोड़े मुश्किल होने वाले हैं.

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जब भी डॉलर मजबूत होता है और हमारा रुपया कमजोर होता है तो इसका मतलब है कि अगर आप खरीदने जाते हैं कोई भी सामान विदेशों के बाजार से, जैसे क्रूड हम सबसे ज्यादा खरीदते हैं तो क्रूड जब हम खरीदने जाते हैं तो हमें पहले जहां डॉलर के हिसाब से कम रुपये देने पड़ते थे अब हमें उसकी जगह कमजोर रुपये की वजह से ज्यादा रुपये देने पड़ते हैं. तो इसका सीधा इफेक्ट Trade Deficit पर पड़ता है.

इससे हमारा ट्रेड डेफिसिट बढ़ता है. जब ट्रेड डेफिसिट बढ़ता है और ये चीज़ें हम जब महंगी खरीदते हैं तो उसका इम्पैक्ट धीरे-धीरे आम आदमी के पॉकेट पर होता है और वो सारी चीजों पर पड़ता है. अगर आप कोई चीज़ महंगी खरीद रहे हैं तो उससे जो रिलेटेड चीज़ें होंगी, वो सारी चीज़ें महंगी होंगी. इकोनॉमिक एक्टिविटी में वो सारी चीज़ें महंगी मिलेंगी.

रुपया गिरने से क्या फायदा?

मिताली ने आगे बताया कि डॉलर जब भी मजबूत होता है और रुपया कमजोर होता है तो आपको ज्यादा पैसे देकर चीज़ें खरीदनी पड़ती है पहले के मुकाबले. तो अगर हम ये एक बात समझें कि हमारा ऑयल प्राइस का जो हम लोग पेमेंट करते हैं वो डेफिनिटली हमारे लिए ज्यादा एक्सपेंसिव हो जाता है, लेकिन जब ये एक्सचेंज रेट गिरता है मतलब की हमें ज्यादा रुपये देने पड़ते हैं एक डॉलर के लिए तो हमारे एक्सपोर्ट्स जो हैं वो ग्लोबल मार्केट में और सस्ते हो जाते हैं.

तो जैसे अगर आप कोई स्टील एक्सपोर्ट कर रहे हैं, आप खाने के पदार्थ एक्सपोर्ट कर रहे हैं, वो सारे पूरे ग्लोबल मार्केट में और सस्ते हो जाते हैं जो भी हमसे डॉलर देके खरीद रहा है तो हम ये डेफिनिटली देखते हैं कि एक इम्पैक्ट और आता है कि हमारे एक्सपोर्ट बढ़ जाते हैं.

और अगर हम लास्ट एक साल का डाटा देखें तो हमने ये देखा है कि हमारे एक्सपोर्ट छह पर्सेंट बढ़े हैं, लेकिन इंपोर्ट्स दो पर्सेंट गिरे हैं यानी की नेट एक्सपोर्ट्स आठ पर्सेंट बढ़े हैं.

तो एक्चुअली इस एक्सचेंज रेट के वर्जन होने का फायदा ही हो रहा है इंडिया को. मतलब इस एक्सचेंज रेट का हमें एक्चुअली नेट नेट बहुत फायदा हो रहा है और हमारे एक्सपोर्ट बढ़ रहे हैं. तो मुझे ये लगता है कि अभी आरबीआई को मॉनिटरी मार्केट में इंटरवेंशन करने की जरूरत नहीं है.